रांची स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ (एनयूएसआरएल) की पहचान अब ग्लोबल लेवल पर भी बन रही है। यूनिवर्सिटी के लीगल एड सेंटर ‘सीएलैप’ (CLAP) को ‘मैकजैनेट प्राइज फॉर ग्लोबल सिटीजनशिप 2025’ में दूसरा स्थान मिला है। इस सम्मान के साथ यूनिवर
.
92 देशों के 400 विश्वविद्यालयों में स्थान
यह पुरस्कार टैलोयर्स नेटवर्क ऑफ एंगेज्ड यूनिवर्सिटीज और मैकजैनेट फाउंडेशन मिलकर देते हैं। इस नेटवर्क में 92 देशों के 400 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज शामिल हैं। इन देशों में समाज सेवा से जुड़ा बेहतरीन काम करने वाले संस्थानों को यह पुरस्कार दिया जाता है। इससे पहले भारत के बेंगलुरु स्थित NLSIU को यह सम्मान 2014 में मिला था।
सीएलैप का सामाजिक न्याय के लिए शानदार योगदान
CLAP यानी ‘सेंटर ऑफ लीगल एड प्रोग्राम’ की शुरुआत साल 2011 में हुई थी। यह एक छात्र-नेतृत्व वाला और फैकल्टी-गाइडेड प्लेटफॉर्म है। इसका मकसद कानून की पढ़ाई को समाजिक न्याय से जोड़ना है। इस सेंटर ने झारखंड में कई महत्वपूर्ण काम किए हैं।
गांव गोद लेने से लेकर जेलों में मदद तक
CLAP की पहल पर गांव गोद लेना, वरिष्ठ नागरिक कल्याण कार्यक्रम, विधिक जागरूकता अभियान, कारा भ्रमण, प्रोजेक्ट सारथी (जेल आधारित कानूनी सहायता और पुनर्वास), क्लाइंट काउंसलिंग, स्पीड मेंटरिंग, ट्रेनिंग सेशन और नेशनल सेमिनार जैसी गतिविधियां चलाई जाती हैं।
छात्रों की मेहनत से मिली यह कामयाबी
CLAP की इस सफलता के पीछे यूनिवर्सिटी के छात्रों की मेहनत रही है। इस टीम में स्टूडेंट कन्वीनर अनन्या के संगरा, सेक्रेटरी अमन आयुष, कोषाध्यक्ष वैष्णवी भारद्वाज, स्टूडेंट एडवाइजर हर्ष अनमोल और दिवांशी अग्रवाल शामिल हैं। इनके साथ फैकल्टी कन्वीनर डॉ. मृत्युंजय मयंक और डॉ. श्वेता मोहन ने भी अहम भूमिका निभाई। टीम के वरिष्ठ सदस्य सेजल, आकाश कच्छप और विश्रुत वीरेंद्र ने भी बड़ी जिम्मेदारी निभाई।
कुलपति ने कहा- छात्रों पर गर्व है
एनयूएसआरएल के कुलपति प्रो. (डॉ.) अशोक आर. पाटिल ने इस उपलब्धि पर खुशी जताई और टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा, “यह पुरस्कार CLAP की सामाजिक न्याय के प्रति निष्ठा का सबूत है। हमारे छात्र जिस ईमानदारी और समर्पण से काम कर रहे हैं, वह यूनिवर्सिटी के विजन को आगे बढ़ा रहा है। हमें उन पर गर्व है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस पुरस्कार से CLAP को अपनी परियोजनाएं आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी, खासकर प्रोजेक्ट सारथी और झारखंड के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में नई पहलें शुरू करने में।