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Ram Bhakt Hanuman : रामायण के सुन्दर-काण्ड में हनुमानजी के साहस का वर्णन है. उन्होंने रामजी से मिलकर सीता की खोज में मदद की. लंका जाकर सीता को ढूंढा और लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाकर रामजी का स्नेह पाया.
हाइलाइट्स
- हनुमान ने राम और लक्ष्मण से वनवास के दौरान मुलाकात की.
- हनुमान ने सीता की खोज में राम की मदद की.
- हनुमान ने संजीवनी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए.
रामायण युद्ध में हनुमान : रामायण के सुन्दर-काण्ड में हनुमान जी के साहस और देवाधीन कर्म का वर्णन किया गया है. हनुमानजी की भेंट रामजी से उनके वनवास के समय तब हुई जब रामजी अपने भ्राता लछ्मन के साथ अपनी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे. सीताजी को खोजते हुए दोनो भ्राता ॠषिमुख पर्वत के समीप पहुच गये, जहा सुग्रीव अपने अनुयाईयों के साथ अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे. वानर-राज बाली ने अपने छोटे भ्राता सुग्रीव को एक गम्भीर मिथ्याबोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वो किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिये तैयार नहीं था. साथ ही बाली ने सुग्रीव की पत्नी को भी अपने पास बलपूर्वक रखा हुआ था.
सुग्रीव ने भेजा हनुमान को राम के पास : राम और लछ्मण को आता देख सुग्रीव ने हनुमान को उनका परिचय जानने के लिये भेजा. हनुमान् एक ब्राह्मण के वेश में उनके समीप गये. हनुमान के मुख़ से प्रथम शब्द सुनते ही श्रीराम ने लछ्मण से कहा कि कोई भी बिना वेद-पुराण को जाने ऐसा नहीं बोल सकता जैसा इस ब्राह्मण ने बोला.रामजी ने लछ्मण से कहा कि इस ब्राह्मण के मन्त्रमुग्ध उच्चारण को सुनके तो शत्रु भी अस्त्र त्याग देगा. श्रीराम के मुख़ से इन सब बातों को सुनकर हनुमानजी ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और श्रीराम के चरणों में नतमष्तक हो गये. श्रीराम ने उन्हें उठाकर अपने ह्र्दय से लगा लिया. उसी दिन एक् भक्त और भगवान का हनुमान और प्रभु राम के रूप मे अटूट और अनश्वर मिलन हुआ.
हनुमान ने अपना रूप विस्तार किया : सीता माता की खोज में वानरों का एक दल दक्षिण तट पे पहुंच गया. मगर इतने विशाल सागर को लांघने का साहस किसी में भी नहीं था. स्वयं हनुमान भी बहुत चिन्तित थे कि कैसे इस समस्या का समाधान निकाला जाए. उसी समय जामवन्त और बाकी अन्य वानरों ने हनुमान को उनकी अदभुत शक्तियों का स्मरण कराया. अपनी शक्तियों का स्मरण होते ही हनुमान ने अपना रूप विस्तार किया और पवन-वेग से सागर को उड़के पार करने लगे. रास्ते में उन्हें एक पर्वत मिला और उसने हनुमान से कहा कि उनके पिता का उसके ऊपर ॠण है, साथ ही उस पर्वत ने हनुमान से थोड़ा विश्राम करने का भी आग्रह किया मगर हनुमान ने किन्चित मात्र भी समय व्यर्थ ना करते हुए पर्वतराज को धन्यवाद किया और आगे बढ़ चले. आगे चलकर उन्हें एक राक्षसी मिली जिसने कि उन्हें अपने मुख में घुसने की चुनौती दी, परिणामस्वरूप हनुमान ने उस राक्षसी की चुनौती को स्वीकार किया और बड़ी ही चतुराई से अति लघुरूप धारण करके राक्षसी के मुख में प्रवेश करके बाहर आ गये.
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जब लंका पहुंचे हनुमान : आखिरकार हनुमान सागर पार करके लंका पहुचे और लंका की शोभा और सुंदरता को देखकर आश्चर्यचकित रह गये. और उनके मन में इस बात का दुःख भी हुआ कि यदि रावण नहीं माना तो इतनी सुन्दर लंका का सर्वनाश हो जायेगा. ततपश्चात हनुमान ने अशोक-वाटिका में सीता जी को देखा और उनको अपना परिचय बताया. साथ ही उन्होंने माता सीता को सांत्वना दी और साथ ही वापस प्रभु श्रीराम के पास साथ चलने का आग्रह भी किया. मगर माता सीता ने ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि ऐसा होने पर श्रीराम के पुरुषार्थ् को ठेस पहुचेगी. हनुमान ने माता सीता को प्रभु श्रीराम के सन्देश का ऐसे वर्णन किया जैसे कोई महान ज्ञानी लोगों को ईश्वर की महानता के बारे में बताता है.
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जब राम ने कहा भरत की भांति प्रिय हो हनुमान : लंका युद्ध में जब लछमण मूर्छित हो गये थे तब हनुमान जी को ही द्रोणागिरी पर्वत पर से संजीवनी बूटी लाने भेजा गया मगर वो बूटी को भली-भांती पहचान नहीं पाये और पुनः अपने पराक्रम का परिचय देते हुए वो पूरा पर्वत ही रण-भूमि में उठा लाये. परिणामस्वरूप लक्ष्मण के प्राण की रक्षा की. भावुक होकर श्रीराम ने हनुमान को ह्र्दय से लगा लिया और बोले कि हनुमान तुम मुझे भ्राता भरत की भांति ही प्रिय हो.