हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है और यह तिथि पितरों को समर्पित मानी जाती है. इस दिन सुबह पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों के नाम का तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से मुक्ति भी मिलती है. दरअसल जब अमावस्या तिथि शनिवार के दिन पड़ती है तब उसे शनि अमावस्या या शनिश्चरी अमावस्या कहते हैं. साथ ही आज साल 2025 का पहला सूर्य ग्रहण लगने वाला है और शनि भी मीन राशि में गोचर करने वाले हैं. शनि अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा अर्चना करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और शनि दोष के अशुभ प्रभाव में कमी भी आती है. आइए जानते हैं शनि अमावस्या का पूजा मुहूर्त, महत्व और शनि दोष के उपाय…
शनि अमावस्या का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, शनि अमावस्या के दिन विधिवत पूजा अर्चना करने से शनिदेव सभी को अभय प्रदान करते हैं और सभी तरह की चिंता व कष्टों को दूर करते हैं. शनि दोष, शनि की ढैय्या व साढ़ेसाती के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए शनि अमावस्या के दिन का विशेष महत्व है. शनि और अमावस्या तिथि के गुणधर्म एक समान हैं इसलिए यह तिथि शनिदेव को अधिक प्रिय है. शनि अमावस्या का व्रत करके शनि मंत्र का जप व सरसों का तेल अर्पित करें. साथ शनि से संबंधित चीजों का दान करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और शनिदेव के अशुभ प्रभाव में कमी भी आती है. शनिदेव के आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और हर कष्ट से मुक्ति मिलती है.
शनिश्चरी अमावस्या 2025
अमावस्य तिथि का प्रारंभ – 28 मार्च, शाम 7 बजकर 55 मिनट से
अमावस्या तिथि का समापन – 29 मार्च, शाम 4 बजकर 27 मिनट पर
उदिया तिथि को मानते हैं शनि अमावस्या का पर्व आज यानी 29 मार्च को मनाया जा रहा है.
शनि अमावस्या का स्नान मुहूर्त – 29 मार्च, सुबह 4 बजकर 42 मिनट से 5 बजकर 29 मिनट तक
शनि अमावस्या पूजा मुहूर्त – 29 मार्च, सुबह 5 बजकर 6 मिनट से 10 बजकर 12 मिनट तक
शनि अमावस्या पूजा मंत्र
1- ॐ शं शनैश्चराय नमः
2- ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि ।
3– ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं शनैश्चराय नमः
4- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
5- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
शनि स्तोत्र
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।
शनिश्चरी अमावस्या पूजा विधि
1- शनि अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी व तालाब में स्नान करें. अगर ऐसा संभव नहीं है तो आप घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल डाल लें और स्नान कर लें और सूर्यदेव को अर्घ्य दें.
2- व्रत का संकल्प लें और घर के मंदिर में दीपक जलाएं. फिर सुबह सुबह शनि मंदिर में जाकर मंदिर की साफ सफाई भी करें.
3- शनिदेव की विधिवत रूप से पूजा अर्चना करें और शनिदेव का सरसों का तेल में काले तिल मिलाकर अभिषेक करें.
4– शनि अमावस्या के दिन पितृ दोष से संबंधित कार्य करें और उनके निमित्त तर्पण करें और पितरों के नाम का दान करें.
5- शनिदेव पर नीले फूल अर्पित करें और शनि चालीसा या शनि स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं.
6- शनि अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
7- शनि मंत्रों का जप करें और शनि से संबंधित चीजों का दान करें.
शनि अमावस्या पर करें ये उपाय
1- शनि अमावस्या पर पीपल के पेड़ पर जल और दूध अर्पित करें और फिर सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
2- शनि अमावस्या पर तेल में बनी हुई पूड़ी का शनिदेव को भोग लगाएं. साथ ही गाय, कुत्ता और कौवा को भी भोजन कराएं.
3- शनिदेव की सरसों के तेल का दीपक जलाकर आरती करें और शनि मंत्र व दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें.
4- पितृ दोष से मुक्ति के लिए शनि अमावस्या के दिन चावल की खीर बनाकर गोबर के उपले जला लें और फिर पितरों के नाम की खीर का भोग लगाएं.
5- कांसे के कटोरे को सरसों या तिल के तेल से भरकर उसमें अपना चेहरा देखकर दान कर दें.
श्री शनि चालीसा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई।
रामचंद्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पांडव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जंबुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥