Thursday, June 26, 2025
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Stree Actor Abhishek Banerjee Success Story | Amitabh Bachchan | अभिषेक बनर्जी ने फर्जी डिग्री दिखाई, खूब पिटाई हुई: अमिताभ बच्चन के पैर छुए तो डांट पड़ी, बॉलीवुड में पांच 100 करोड़ी फिल्में दीं


1 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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कास्टिंग डायरेक्टर से एक्टर बने अभिषेक बनर्जी ने पिछले साल रिलीज फिल्म ‘स्त्री 2’ और ‘वेदा’ में अपनी परफॉर्मेंस के जरिए खूब सराहना बटोरी है।

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बच्चन साहब को अपना गुरु मानता हूं। वो मेरी लाइफ के द्रोणाचार्य हैं। बच्चन साहब से पहली बार मिला तो उनके पैर छुए, उन्होंने मुझे डांटा और कहा- ये सब मत किया करो।

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यह बात एक्टर अभिषेक बनर्जी ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान कही। दिल्ली की रंगमंच की गलियों से होते हुए अभिषेक ने बॉलीवुड में अपनी एक अलग जगह बनाई है। हर तरह के चुनौतीपूर्ण किरदार में खुद को तराशा है। साल 2024 उनके लिए काफी शानदार रहा है। ‘स्त्री 2’ ने कमाई के मामले में कई फिल्मों का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इसी के साथ अभिषेक बॉलीवुड में 100 करोड़ क्लब में शामिल होने वाली 5 फिल्मों में काम कर चुके हैं। जिनमें ‘स्त्री 2’ के अलावा ‘स्त्री’, ‘ड्रीम गर्ल’, ‘बाला’ और ‘ड्रीम गर्ल 2’ जैसी फिल्में हैं। अभिषेक आज बॉलीवुड में उस मुकाम पर हैं, जहां वो अपने काम से दुनिया के लोगों को चकाचौंध से भरी दुनिया में आने के लिए इंस्पायर कर रहे हैं।

आइए जानते हैं अभिषेक बनर्जी की सफलता की कहानी, उनकी जुबानी..

पहला नाटक रॉबिनहुड पर किया था

मेरी पैदाइश पश्चिम बंगाल के खड़कपुर की है। मेरे पापा सीआरपीएफ में थे। उनका ट्रांसफर जहां-जहां होता था। वहां-वहां मैं रहा। मैं कोलकाता, दिल्ली और तमिलनाडु के कलपक्कम में रहा। इससे मुझे हर जगह की भाषा और कल्चर सीखने को मिला। कलपक्कम में जब छठी क्लास में था तब पहला नाटक रॉबिनहुड पर किया था। तारीफ मिली तो मुझे लगा कि यह तो बहुत अच्छी चीज है। हालांकि वहां स्पोर्ट्स में भी काफी इन्वॉल्व था। क्रिकेट और हॉकी खेलता था, लेकिन धीरे-धीरे मुझे एक्टिंग में मजा आने लगा। मुझे लगने लगा कि यह काफी इंटरेस्टिंग चीज है जिसे हमेशा करते रहना है।

अभिषेक बनर्जी का जन्म 5 मई 1985 को पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में हुआ था।

अभिषेक बनर्जी का जन्म 5 मई 1985 को पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में हुआ था।

टीचर का ताना मारना गुरुमंत्र जैसा लगा

कलपक्कम से दिल्ली आने के बाद 11वीं के एनुअल डे पर एक नाटक किया। मैं साइंस का स्टूडेंट्स था, लेकिन मेरी रुचि आर्ट्स में थी। साइंस मेरी समझ में नहीं आ रहा था। मेरा ध्यान पढ़ाई में कम, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में ज्यादा रहता था। उसी दौरान एंकरिंग करने का मौका मिला तो मैथ की टीचर ने पीछे से ताना मार दिया कि अभिषेक अब यही करो तुम। उनकी बात मुझे गुरुमंत्र जैसी लगी। मुझे लगा कि उन्होंने बहुत सही बात कही है।

जिस कॉलेज में बच्चन साहब पढ़ें, उसी में एडमिशन लिया

इसके बाद मैंने एक्टिंग को गंभीरता से लेना शुरू किया। मेरा सपना किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ना था, क्योंकि उस कॉलेज में अमिताभ बच्चन साहब पढे हैं। मैं उनका बहुत बड़ा फैन था। जीशान अयूब भी उस कॉलेज में पढ़ चुके हैं, उन्होंने मुझे किरोड़ीमल कॉलेज की नाट्य संस्था के बारे में बताया था। वहां पर एडमिशन मिलना बहुत मुश्किल होता है। मेरा एडमिशन कॉलेज की नाट्य संस्था में तीन राउंड ऑडिशन क्लियर करने के बाद हुआ। कॉलेज में मेरी बॉडी लैंग्वेज देखकर लोग दीवार का अमिताभ कहकर चिढ़ाते थे।

पेपर पर लिखा ‘आई बायकॉट एग्जाम’

फर्स्ट और सेकेंड ईयर में मार्क्स ठीक-ठाक आए थे। थर्ड ईयर तक बोर होने लगा था। उसी दौरान दिल्ली में ‘चक दे इंडिया’ का ऑडिशन चल रहा था। वहां जाने के बाद मुझे समझ में आया कि जैसे हर फील्ड के लिए इंटर्न एग्जाम होता है। वैसे ही फिल्म इंडस्ट्री के लिए इंटर्न एग्जाम का मतलब ऑडिशन होता है।

ऑडिशन के समय कोई डिग्री और पढ़ाई के बारे में नहीं पूछता है। वो सिर्फ यह देखते हैं कि एक्टिंग ठीक से आती है कि नहीं। मुझे लगा कि जिस फील्ड में मुझे जाना है उसका इंटर्न एग्जाम यही है। उसी समय मैंने पेपर पर लिखा ‘आई बायकॉट एग्जाम’।

डिग्री देखते ही पिताजी ने थप्पड़ जड़ दिए

मैंने पेरेंट्स को कुछ नहीं बताया। जब रिजल्ट का समय आया तब पिताजी को फर्जी डिग्री दिखा दी। 10 सेकेंड के बाद थप्पड़ जड़ दिए। मैं सोच रहा था कि उनको पता कैसे चला? दरअसल, मैंने एक दोस्त की पिछले साल की डिग्री में कंप्यूटर की मदद से अपना नाम डाल दिया, लेकिन डेट चेंज करना भूल गया था। उस दिन मेरी खूब पिटाई हुई थी।

लड़की छेड़ने वाला सीन नहीं कर पाया

दिल्ली में कॉलेज के दौरान ही राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘रंग दे बसंती’ में काम कर चुका था। तुषार पांडे के बड़े भाई सुनील पांडे ने बताया था कि राकेश ओम प्रकाश मेहरा आने वाले हैं। मुझे उनके सामने जाते ही कुछ लाइंस बोलनी थी, लेकिन फंबल कर गया। वो फिल्म में लड़की छेड़ने वाले किरदार में मुझे लेना चाह रहे थे। लड़की छेड़ने वाला डायलॉग जब नहीं बोल पाया, तब डॉक्यूमेंट्री वाला रोल दिया था।

पहली फिल्म में काम करने के 1500 रुपए मिले

‘रंग दे बसंती’ में एक दिन काम किया था। उसके मुझे 1500 रुपए मिले थे। उसमें से 500 रुपए भगवान को चढ़ा दिए, 500 मम्मी को दिए और बाकी 500 की पार्टी की। इस फिल्म के बाद दिल्ली में सेलिब्रिटी बन गया था।

डेढ़ लाख रुपए इकट्ठा करके मुंबई आया

मैं गार्गी कॉलेज में थिएटर सिखाता था। वहां इतनी सैलरी मिलती थी कि आराम से खर्चा निकल जाता था। मैंने वॉयस ओवर किए। उसमें मिनट के हिसाब से पैसे मिलते थे। उसी दौरान दूरदर्शन के शो ‘जीना इसी का नाम है’ में काम किया था। मैंने डेढ़ लाख रुपए इकट्ठा किए और मुंबई आ गया। मुंबई आया तो रूम के डिपॉजिट और ब्रोकरी में सारे रुपए खर्च हो गए। दिल्ली में फिल्म ‘देव डी’ के लिए गौतम किशनचंदानी ने ऑडिशन लिया था। उस फिल्म में छोटा सा रोल भी किया। वहीं से मुझे कास्टिंग का ऑफर मिला था। गौतम सर ने कहा था कि जब भी मुंबई आना, बताना तुम्हारे लिए जॉब रखूंगा।

असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर के काम से निकाल दिया गया

पैसे खत्म हो गए तो सोचा कि अब कैसे कमाया जाए? दिल्ली से दूरदर्शन के एक सीरियल के लिए कॉल आया। मुझे बताया गया कि ट्रेन से आना पड़ेगा। मैं तो मुंबई का आर्टिस्ट बन चुका था। मैंने कहा कि फ्लाइट से आऊंगा। ट्रेन की टिकट भेजी गई थी, लिहाजा मैंने ट्रेन नहीं पकड़ी। मुंबई आने के छह महीने के अंदर ही मुझे सिनेविस्टा में असिस्टेंट कास्टिंग डायरेक्टर का काम मिल गया, लेकिन काम के प्रति मेरी लापरवाही को देखते हुए वहां से निकाल दिया गया।

20 हजार रुपए महीने की सैलरी पर मिली पहली जॉब

उसी समय गौतम किशनचंदानी फिल्म ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ की कास्टिंग कर रहे थे। उन्होंने मुझे असिस्टेंट रख लिया। मैं अजय देवगन, इमरान हाशमी और दूसरे कलाकारों और लड़कियों की लाइंस पढ़ रहा था। मुझे बहुत मजा आ रहा था। 20 हजार रुपए महीने सैलरी भी मिल रही थी। फिल्म के डायरेक्टर मिलन लुथरिया ने ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ में एक रोल भी ऑफर किया था, लेकिन बाद में क्या हुआ, मुझे नहीं पता। वह रोल फिर अंजुम शर्मा को मिला, जिसने ‘मिर्जापुर’ में शरद की भूमिका निभाई है। ‘मिर्जापुर’ की कास्टिंग मैंने ही की है।

लगने लगा कि एक्टिंग नहीं हो पाएगी, डिप्रेशन में चला गया था

कास्टिंग डायरेक्टर गौतम किशनचंदानी के साथ चार साल तक काम कर चुका था। इस दौरान मुझे समझ में आ गया था कि आसानी से रोल मिल जाएंगे। मेरा ‘घनचक्कर’ फिल्म में काम करने का बहुत मन था, लेकिन मेरी जगह नमित दास का सिलेक्शन हो गया था। मेरा चयन नहीं हुआ तब मुझे समझ में आया कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है। शायद मैं कैमरा एंगल को समझ नहीं पा रहा था। मुझे लगने लगा कि एक्टिंग नहीं हो पाएगी। उस समय डिप्रेशन में चला गया था। सोचने लगा कि डायरेक्शन और राइटिंग में कुछ करना चाहिए।

फिल्मों में दोस्त के किरदार नहीं करने थे

राजकुमार गुप्ता की फिल्म ‘घनचक्कर’ से पहले उनकी फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में पॉकेट मार का किरदार निभा चुका था। उस सीन को अमर कौशिक ने डायरेक्ट किया था, जो फिल्म में एसोसिएट डायरेक्टर थे। हालांकि उस फिल्म में मुझे दोस्त का रोल ऑफर किया गया था, लेकिन मुझे दोस्त का रोल नहीं करना था। हमारी फिल्म इंडस्ट्री में दोस्त के रोल को शैडो रोल कहा जाता है। उसकी अपनी कोई पहचान नहीं होती है। दोस्त का बड़ा रोल करने के बजाय मैंने पॉकेट मार का छोटा सा रोल करना पसंद किया।

‘अज्जी’ में​ बड़ा किरदार मिला तो डर गया

मैंने काम के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। रोल को लेकर मेरी अपनी चॉइस थी, लेकिन जब अच्छे रोल नहीं मिले तो एक कलाकार के तौर पर टूट चुका था। तभी मुझे टीवीएफ पिचर्स में सिर्फ एक सीन का रोल मिला। उस एक सीन की वजह से लोग पहचानने लगे, तब वापस कॉन्फिडेंस आया। उसके बाद देवाशीष मखीजा की शॉर्ट फिल्म ‘अगली बार’ और ‘तांडव’ में काम किया।

इस शॉर्ट फिल्म की वजह से देवाशीष मखीजा ने फिल्म ‘अज्जी’ में मौका दिया। इस फिल्म में जब मौका मिला तो डर रहा था कि पहली बार फिल्म में बड़ा किरदार मिला है, पता नहीं कर पाऊंगा या नहीं। देव ने मुझे थोड़ा संभाला, हिम्मत दी। पहले सीन के बाद मेरा कॉन्फिडेंस वापस आ गया। इस फिल्म में रेपिस्ट का किरदार निभाया था। जिसे लोग नफरत भरी निगाहों से देखते थे।

अमर कौशिक ने कहा कि अमरीश पुरी साहब की याद दिला दी

अमर कौशिक ने मेरी फिल्म ‘अज्जी’ देखने के बाद कहा था कि तुमने अमरीश पुरी साहब की याद दिला दी। वह मेरी लाइफ का बहुत बड़ा कॉम्प्लिमेंट था। कुछ महीने बाद ही उनकी फिल्म ‘स्त्री’ शुरू हो रही थी। मैंने उनको फोन किया तो उन्होंने जना के ऑडिशन के लिए बुलाया। हालांकि पहली बार मेरा चयन नहीं हुआ था। वह रोल कोई और कर रहा था। प्रोड्यूसर दिनेश विजान को लगा कि जना के किरदार के लिए एक और ऑप्शन रखना चाहिए। अमर ने मेरा ऑडिशन दिनेश विजान को दिखाया और इस तरह से फिल्म के लिए फाइनल हुआ।

100 करोड़ क्लब में शामिल हुईं फिल्मों के बाद भी करियर खत्म होने का डर था

‘स्त्री’, ‘ड्रीम गर्ल’ और ‘बाला’ के बाद मुझे कॉमेडी भूमिकाएं ऑफर हो रही थीं। ये तीनों फिल्में 100 करोड़ क्लब में शामिल हुई थीं। मैं एक ही तरह की भूमिकाएं नहीं निभाना चाह रहा था। इसलिए मैंने बहुत सारी फिल्में मना भी कर दीं। मुझे लग रहा था कि ऐसे तो मेरा करियर खत्म हो जाएगा। मुझे दूसरे कोई किरदार नहीं मिलेंगे, लेकिन कोविड के दौरान वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ रिलीज हुई, तो हथौड़ा त्यागी का किरदार देखकर लोगों की धारणा बदली। हालांकि इस सीरीज में इमरान अंसारी की भूमिका निभाना चाह रहा था, जिसे इश्वाक सिंह ने निभाया है।

अलग किरदार के साथ एक्सपेरिमेंट करने लगा

‘पाताल लोक’ के बाद साइको किरदार मिलने लगे। मन में फिर ख्याल आने लगा कि अब क्या करूं? उसी दौरान मेरी फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ आई, जिसमें लॉयर का बहुत अलग तरह का किरदार था। मेरे लिए वह एक अलग ही अनुभव रहा। उसके बाद तो अलग-अलग किरदार के साथ एक्सपेरिमेंट करने लगा।

अभिषेक बनर्जी का अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का सपना फिल्म ‘सेक्शन 84' में पूरा हुआ।

अभिषेक बनर्जी का अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का सपना फिल्म ‘सेक्शन 84′ में पूरा हुआ।

बच्चन साहब मेरी लाइफ के द्रोणाचार्य हैं

वेब सीरीज हो या फिर फिल्में, मुझे अलग-अलग किरदार निभाने के मौके मिले हैं। अमिताभ बच्चन साहब के साथ काम करना मेरा सपना था। वह फिल्म ‘सेक्शन 84′ में पूरा हो गया। मैं उनको अपना गुरु मानता हूं। दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में मैंने इसीलिए एडमिशन लिया था, क्योंकि वहां बच्चन साहब पढ़े हैं। बच्चन साहब मेरी लाइफ के द्रोणाचार्य हैं। उनके साथ काम करके मुझे यह एहसास हुआ कि कैसे वो इतने महान कलाकार हैं। फिल्म में हम दोनों के कई बेहतरीन सींस हैं जिन्हें देखकर दर्शकों को मजा आएगा।

पैर छुए तो डांट पड़ी

मैं बच्चन साहब से मिला तो उनके पैर छुए, उन्होंने मुझे डांटा और कहा- ये सब मत किया करो। बच्चन साहब को यह कतई नहीं पसंद कि कोई उनके पैर छुए। थोड़ी देर के बाद फिल्म के डायरेक्टर रिभु दासगुप्ता ने हमारा परिचय कराया और कहा कि हम दोनों एक ही कॉलेज से पढ़े हुए हैं। बच्चन साहब को यह बात बहुत अच्छी लगी। उस समय मुझे लगा कि मैं इतने बड़े स्टार से नहीं, बल्कि अपने कॉलेज के सीनियर से बात कर रहा हूं। उनके अंदर अभी भी एक जवान इंसान के जैसी एनर्जी है।

मोनोलॉग सुनकर भावुक हो गया और रोने लगा

फिल्म के एक सीन में बच्चन साहब का 10 मिनट का मोनोलॉग है। बच्चन साहब को वह मोनोलॉग किसी और को देखकर बोलना था, लेकिन उनके लिए मेरे प्यार और इज्जत को देखते हुए उन्होंने वो मुझे देखकर बोलने का फैसला किया। बच्चन साहब समझ चुके थे कि मैं उनको अपना गुरु मानता हूं। वह डायलॉग सुनकर मैं इतना भावुक हो गया कि रोने लगा।

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