Wednesday, May 7, 2025
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The story of the darkest period of Indian politics, Kangana Ranaut’s strong acting and direction, the film is a little long | मूवी रिव्यू – इमरजेंसी: भारतीय राजनीति के सबसे काले दौर की कहानी, कंगना रनौत का दमदार अभिनय और निर्देशन, फिल्म थोड़ी सी लंबी


13 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजेंसी’ आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में कंगना ने इंदिरा गांधी का किरदार निभाया है। फिल्म में कंगना रनौत के साथ अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, विषाक नायर, महिमा चौधरी, मिलिंद सोमन और सतीश कौशिक की मुख्य भूमिकाएं हैं। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटे 28 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इसे 5 में से 3.5 स्टार रेटिंग दी है।

फिल्म की कहानी क्या है?

कंगना रनौत की फिल्म “इमरजेंसी” भारतीय राजनीति के उस काले अध्याय को पर्दे पर लेकर आती है, जिसने 1975 से 1977 के बीच भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला दिया। यह फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सख्त शासन और तानाशाही फैसलों पर केंद्रित है। कहानी का फोकस 21 महीने तक चले आपातकाल पर है, जिसमें नागरिक स्वतंत्रताएं खत्म कर दी गई थीं।

फिल्म में बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध, ऑपरेशन ब्लू स्टार, खालिस्तानी आंदोलन और इंदिरा गांधी की हत्या जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया गया है। लेकिन इन घटनाओं के बीच कहानी इमरजेंसी के दौर के राजनीतिक और भावनात्मक पहलुओं पर ज्यादा जोर देती है।

स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?

कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के किरदार में जान डाल दी है। उनका लुक, हावभाव और संवाद अदायगी बेहतरीन है। विषाक नायर ने संजय गांधी के विवादास्पद व्यक्तित्व को बेहद सटीक तरीके से निभाया है। अनुपम खेर ने जयप्रकाश नारायण के संघर्षशील व्यक्तित्व को बड़े प्रभावशाली ढंग से पेश किया है। महिमा चौधरी ने इस फिल्म में इंदिरा गांधी की करीबी मित्र पूपुल जयकर की भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने अभिनय से भावनात्मक गहराई जोड़ी है। मिलिंद सोमन ने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का किरदार बखूबी निभाया है। वहीं, सतीश कौशिक ने जगजीवन राम के किरदार में प्रभावशाली छाप छोड़ी है।

डायरेक्शन कैसा है?

कंगना रनौत ने फिल्म का डायरेक्शन खुद ही किया है। उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं और मानवीय पहलुओं के बीच शानदार संतुलन बनाया है। फिल्म की हर फ्रेम में 1970 के दशक के भारत की झलक साफ दिखती है। कंगना ने कहानी को निष्पक्ष रहते हुए भारतीय राजनीति के जटिल पहलुओं को सामने रखा है। हालांकि फिल्म थोड़ी लंबी है, जिसकी वजह से कुछ जगह यह धीमी महसूस होती है, लेकिन यह खामी इसके प्रभावशाली कंटेंट के आगे छोटी लगती है। कंगना के डायरेक्शन के अलावा फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी कमाल की है। जो उस दौर को जीवंत करने में पूरी तरह सफल रही है। इसमें बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी और ऐतिहासिक घटनाओं की सटीक प्रस्तुति देखने को मिलेगी।

फिल्म का म्यूजिक कैसा है?

फिल्म का म्यूजिक बेहद ही प्रभावशाली है। खास करके ‘सिंहासन खाली करो’ और ‘सरकार को सलाम है’ जैसे गाने फिल्म के संदेश को असरदार तरीके से दर्शकों तक पहुंचाते हैं। बैकग्राउंड स्कोर कहानी में गहराई जोड़ता है।

फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं?

भारतीय इतिहास के सबसे विवादित दौर की झलक पाने के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है। खास करके राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए यह फिल्म एक गहन अनुभव है।



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