वह एक होनहार और सबका ख्याल रखने वाला बच्चा था। इतनी कम उम्र में उसने ऐसा काम कर दिखाया कि हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उसका जन्म यूएई में हुआ था, लेकिन उसकी संस्कृति और जड़ें मातृभूमि भारत से जुड़ी थीं। दो साल की उम्र में ही उसने हनुमान चालीसा कं
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वह अपने तीन माह के छोटे मासूम भाई को, जिसे कुछ समझ नहीं थी, लोरी के रूप में हनुमान चालीसा सुनाता था। उसे कई भजन भी याद थे। वह इतना प्रतिभाशाली था कि UAE’s गॉट टैलेंट के फाइनल तक पहुंच गया था। 26 अप्रैल को उसका फाइनल परफॉर्मेंस होना था, लेकिन उससे पहले ही वह एक हादसे का शिकार हो गया।
मौत के बाद भी वह चार बच्चों को नई जिंदगी देकर चला गया। उसने हमें रुलाकर नहीं, बल्कि सभी को खुश कर दिया। अब वह एक नहीं, चार नई जिंदगियों के रूप में जीवित रहेगा। हमें बेटे को खोने का गम है, लेकिन उस पर गर्व भी अपार है।”
यह बात यूएई निवासी विवेक छापरवाल ने ‘दैनिक भास्कर’ से साझा की। 10 साल पहले अयान्वित के माता-पिता विवेक और पूजा छापरवाल इंदौर से शारजाह शिफ्ट हो गए थे। विवेक वहां एक अकाउंट ऑफिसर हैं। उनके दोनों बेटों, अयान्वित और अतुलित (2 वर्ष) का जन्म भी वहीं हुआ था।
29 मार्च को वे अपने दोनों बेटों के साथ एक दोस्त से मिलने आबूधाबी गए थे। जिस बिल्डिंग में वे गए थे, उसकी पांचवीं मंजिल पर एक स्विमिंग पूल था। अयान्वित ने पूल देखा और उसमें कूद पड़ा। इस दौरान उसके सिर में चोट आई और उसकी धड़कनें रुक गईं। उसे वहीं सीपीआर दिया गया और फिर तत्काल शेख खलीफा अस्पताल ले जाया गया। उपचार के दौरान, 5 अप्रैल को डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया।
दादा-दादी का चहेता इसलिए अंतिम संस्कार इंदौर में
माता-पिता की सहमति के बाद 9 अप्रैल को सभी औपचारिकताएं पूरी की गईं और अयान्वित का दिल, लिवर और दोनों किडनी सुरक्षित निकाल ली गईं। चूंकि अयान्वित अपने दादा-दादी (श्याम और लाजवंती छापरवाल) और परिवार का बेहद चहेता था, इसलिए माता-पिता ने उसका अंतिम संस्कार इंदौर में करने का निर्णय लिया।
चार दिन तक इमिग्रेशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 12 अप्रैल को अयान्वित का पार्थिव शरीर फ्लाइट से इंदौर लाया गया। 13 अप्रैल को तिलक नगर मुक्तिधाम में उसका अंतिम संस्कार हुआ। उसे दो साल के छोटे भाई अतुलित ने मुखाग्नि दी, जिससे हर आंख नम हो गई।
अब जानिए पिता विवेक से पूरी घटना
इंदौर पहुंचने के बाद लोगों का सांत्वना देने का सिलसिला लगातार जारी रहा। मां पूजा, पिता विवेक, दादा-दादी और बुआ, अयान्वित के बचपन से लेकर अंतिम क्षणों तक के वीडियो देखकर भावुक हो जाते हैं। विवेक ने बताया कि ईद की छुट्टियां होने वाली थीं, इस कारण आबूधाबी में रहने वाले दोस्त ने विशेष आग्रह कर दो दिन रुकने का निवेदन किया था। उसने यह भी बताया कि उसकी बिल्डिंग में स्विमिंग पूल है, इसलिए हम उसी तैयारी के साथ वहां गए थे।
29 मार्च को हम वहां पहुंचे। सभी ने भोजन किया और शाम को स्विमिंग पूल जाने की योजना बनाई। इस दौरान अयान्वित और अतुलित अन्य बच्चों के साथ पूल में चले गए। वहां लाइफ गार्ड मौजूद थे, लेकिन उन्हें यह पता नहीं चला कि बच्चे कब पूल में उतर गए।
कुछ देर बाद मेरा दोस्त वहां पहुंचा तो उसने देखा कि अयान्वित दिखाई नहीं दे रहा। जब उसने पूल में देखा तो अयान्वित पानी में नीचे पड़ा था। उसने तुरंत छलांग लगाकर उसे बाहर निकाला, लेकिन तब तक उसकी धड़कन बंद हो चुकी थी। लाइफ गार्ड ने तुरंत सीपीआर देना शुरू किया।
काफी समय बाद धड़कनें लौटीं
एम्बुलेंस स्टाफ ने अयान्वित को लाइफ सेविंग ड्रग दी और सीपीआर जारी रखा। उसे तुरंत शेख खलीफा अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने पूरी घटना की जानकारी ली और विशेष रूप से यह जानना चाहा कि वह कितनी देर तक पानी में डूबा रहा।
डॉक्टरों ने बताया कि घटना को 45 मिनट बीत चुके थे। उनके प्रयासों से उसकी धड़कनें लौटीं, जिससे थोड़ी राहत मिली, लेकिन उन्होंने यह भी साफ किया कि ब्रेन डैमेज हो सकता है।
कुछ मूवमेंट हुआ लेकिन बच न पाया
एक सप्ताह तक वह अस्पताल में भर्ती रहा। इस दौरान उसने कुछ मूवमेंट किया जिससे उम्मीद जगी। लेकिन उसके ब्रेन की सूजन बढ़ती गई और डॉक्टरों ने बताया कि उसके ब्रेन स्टेम्स डैमेज हो चुके हैं और अब वह सामान्य स्थिति में नहीं लौट सकता। अंततः 5 अप्रैल को उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
उसके ‘शेयरिंग एंड केयरिंग’ स्वभाव से मिली प्रेरणा
जब डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, तब मैंने और पूजा ने काफी विचार किया। चूंकि अयान्वित का स्वभाव बेहद शेयरिंग और केयरिंग था, उसकी मां ने उसे हमेशा यही सिखाया था। इसी कारण उसने अंगदान के ज़रिए चार बच्चों को जीवनदान दिया।
UAE’s गॉट टैलेंट में सिलेक्शन हुआ था
अयान्वित UAE’s गॉट टैलेंट में मार्च में सिलेक्ट हुआ था। उसे एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी कैटेगरी में चुना गया था। छह साल की उम्र में ही वह 15 तक की मल्टीप्लिकेशन टेबल्स जानता था। 26 अप्रैल को उसका फाइनल होना था। उसकी तैयारियों के वीडियो देख आज भी दादा-दादी भावुक हो जाते हैं।
वह अपनी मां से हनुमान चालीसा सीखता था और उसका छोटा भाई अतुलित भी अब सीख रहा है। अयान्वित पूजा-पाठ में रुचि रखता था और मैथिली ठाकुर सहित कई भजन गायकों के भजन गाता था। उसके अंतिम संस्कार को भारत में करने का निर्णय इसलिए भी लिया गया ताकि परिवार और रिश्तेदार उसे अंतिम बार देख सकें।
मिनिस्ट्री और प्रवासी भारतीयों ने दिया साथ
विवेक ने बताया कि अंगदान का निर्णय लेने के बाद यूएई की हेल्थ मिनिस्ट्री ने पूरा सहयोग दिया। उन्होंने इमिग्रेशन और अंतिम यात्रा के सारे खर्चे उठाए। ‘हयात’ नामक एक कार्यक्रम के तहत चार बच्चों को उसके अंगों से नई ज़िंदगी मिली।
विवेक ने आगे बताया कि इस कठिन समय में हमें यह महसूस नहीं हुआ कि हम भारत से दूर हैं। इंदौर के कई लोग और उनके दोस्त, जिनमें जितेंद्र-लीना वैघ, स्नेहल सोनी जैसे लोग शामिल हैं, जो हमें जानते भी नहीं थे, उन्होंने हर संभव सहायता की। सभी ने पूजा-पाठ कर अयान्वित की सलामती के लिए प्रार्थनाएं कीं।