Saturday, May 31, 2025
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When the producer of Amitabh’s film was kidnapped in broad daylight | जब अमिताभ की फिल्म के प्रोड्यूसर का दिनदहाड़े हुआ अपहरण: किडनैपर्स ने मांगे 20 लाख, जांच के लिए खुद दिलीप कुमार पहुंचे थे पुलिस स्टेशन


22 मिनट पहले

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साल 1982 में डायरेक्टर रमेश सिप्पी की फिल्म ‘शक्ति’ रिलीज हुई थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार जैसे सुपरस्टार्स थे। इसे सलिम-जावेद ने लिखा था। खास बात ये थी कि शक्ति पहली और एकमात्र फिल्म थी जिसमें दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन एक साथ स्क्रीन पर दिखाई दिए थे। इस फिल्म के प्रोड्यूसर मुशीर-रियाज की जोड़ी थी। मुशीर आलम को 70 और 80 के दशक में बॉलीवुड के सबसे हाई-प्रोफाइल और सबसे सफल प्रोड्यूसर में से एक थे। उनका प्रोडक्शन लेबल “मुशीर-रियाज” था, जो साथी प्रोड्यूसर मोहम्मद रियाज के साथ एक ज्वाइंट वेंचर था।

बता दें कि 1982 में ही प्रोड्यूसर मुशीर एक साथ एक ऐसी घटना हुई, जिसने सबको चौंका दिया। ‘शक्ति’ फिल्म के प्रोड्यूसर मुशीर आलम को दिनदहाड़े मुंबई की सड़क से किडनैप कर लिया गया था।

कैसे हुआ किडनैप?

मशहूर क्राइम पत्रकार एस हुसैन जैदी ने अपने यूट्यूब चैनल इस घटना को लेकर बताया था कि मुशीर आलम रोज की तरह ऑफिस जा रहे थे। रास्ते में एक सफेद एम्बेसडर कार आई और 4 हथियारबंद लोग बाहर निकले। उन्होंने मुशीर को जबरदस्ती गाड़ी में बैठा लिया और आंखों पर पट्टी बांध दी, लेकिन मुशीर ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने रास्ते के कुछ संकेत याद रखने की कोशिश की। उन्होंने आंखों पर पट्टी होने के बावजूद एक ‘शोले’ फिल्म का पोस्टर देखा। उन्होंने लकड़ी की सीढ़ियों पर चढ़ते समय आवाज सुनी और बच्चों की आवाज में कुरान की आयतें पढ़ी जाती सुनीं। ये सारी बातें बाद में बहुत काम आईं।

मुशीर को छोड़ने के लिए किडनैपर्स ने 20 लाख रुपए मांगे

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, किडनैपर्स ने मुशीर से 20 लाख रुपए की फिरौती मांगी। मुशीर ने अपने एक सहयोगी को कॉल किया, जिसने करीब 3 लाख रुपए का इंतजाम किया। पैसे लेकर बदमाशों ने मुशीर को एक चौराहे पर छोड़ दिया।

मामले को दिलीप कुमार ने गंभीरता से लिया था ये खबर मीडिया में नहीं आई, लेकिन दिलीप कुमार ने इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने मुंबई पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की और मुशीर के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचे। इस घटना के बारे में मुंबई पुलिस के पूर्व अफसर इसाक बगवान की किताब में शेयर किया गया है। इसाक बगवान अपनी किताब में लिखते हैं, “24 सितंबर 1982 को एक कॉन्स्टेबल ने बताया कि दिलीप कुमार कमिश्नर ऑफिस आए हैं। हमें लगा कि शायद वो अपने हथियार का लाइसेंस रिन्यू करवाने आए होंगे या किसी सुरक्षा से जुड़ा मसला होगा, लेकिन बात कुछ और ही थी।” बगवान ने आगे लिखा, “जब हम कमिश्नर के ऑफिस पहुंचे, तो देखा कि दिलीप कुमार दो लोगों के साथ बैठे हैं। कमिश्नर रिबेरो ने कहा, ‘ये मिस्टर मुशीर और मिस्टर रियाज हैं।’”

पुलिस की जांच और खुलासा पुलिस अफसर इसाक बगवान ने मुशीर से बारीकी से पूछताछ की। उन्होंने पूछा कि हाजी अली से गाड़ी कितने समय में पहुंची, कितनी सीढ़ियां चढ़ीं, कौन-कौन सी आवाजें आईं। इन सभी संकेतों से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह जगह नागपाड़ा इलाके में हो सकती है। जब वहां पहुंचे तो उन्हें वही कमरा मिला जैसा मुशीर ने बताया था। वहां लोगों से पूछा गया कि यह कमरा किसका है, तो जवाब मिला – “यह अमीरजादा-आलमजेब गैंग की पूछताछ रूम है।” इन चार लोगों की पहचान अमीरजादा, आलमजेब, अब्दुल लतीफ और शहजाद खान के रूप में हुई है।

गैंग की असली मंशा इसाक बगवान ने ये भी लिखा था, “जब पूरे मामले की गहराई से जांच हुई, तो पता चला कि ये गैंग पहले दाऊद इब्राहिम को मारने की कोशिश कर चुका था, जिससे उनके पास पैसे नहीं बचे थे। उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उन्होंने अहमद सय्यद खान को कहा कि फिल्म इंडस्ट्री के अमीर लोगों को ढूंढ़े और इस तरह वे मुशीर तक पहुंचे।”



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