.
ये कहना है दीपक यादव का। 21 मई को छिंदवाड़ा जिले के परासिया में दीपक की पत्नी नीलम ने ऐसे ही बच्चे को जन्म दिया था। ये बच्चा ‘हार्लेक्विन इचिथियोसिस’ नामक दुर्लभ बीमारी के साथ पैदा हुआ था। रिसर्च कहती है कि दुनिया भर में करीब 5 लाख में एक बच्चा इस बीमारी से पीड़ित से होता है, मगर परासिया में तीन साल में ये तीसरा मामला है।
एक्सपर्ट के मुताबिक ये एक जेनेटिक(आनुवांशिक) बीमारी है। माता या पिता दोनों में से किसी एक के जीन्स की वजह से ये बच्चे में आती है। उनके मुताबिक इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है। गर्भावस्था में भी इसे डाइग्नोज करना मुश्किल है। आखिर परासिया में ही इस बीमारी से पीड़ित बच्चे क्यों पैदा हो रहे हैं।
भास्कर ने जब एक्सपर्ट से बात की तो उन्होंने कहा कि ये उनके लिए भी जांच का विषय है। साथ ही परासिया में उन परिवारों से बात की जिनके यहां इन दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चों ने जन्म लिया। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट….
अब सिलसिलेवार जानिए तीनों परिवारों के बारे में

दीपक की तीसरी संतान दुर्लभ बीमारी के साथ पैदा हुई परासिया के सिविल अस्पताल में पैजनवाड़ा गांव के रहने दीपक की पत्नी नीलम की डिलीवरी परासिया के सिविल अस्पताल में हुई थी। यही से दीपक के घर का पता मिला। भास्कर की टीम जब पैजनवाड़ा पहुंची, तो गांव के सभी लोगों को इस दुर्लभ बीमारी के साथ पैदा हुए बच्चे के बारे में पता था। गांव का एक युवक हमें दीपक के घर लेकर गया।
दीपक का छोटा-मोटा टेंट का व्यवसाय है। तीन कमरे के मकान में दीपक और उसकी पत्नी के साथ दो बच्चे और माता-पिता रहते हैं। दीपक के बड़े बेटे का नाम कौशिक है। दीपक के पिता जगमोहन यादव ने बताया कि कौशिक चार साल का है लेकिन उसने अभी तक बोलना नहीं सीखा मगर समझता सब है।
दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चे के बारे में उनसे पूछा तो बोले- वो अजीब सा दिख रहा था, यहां तक कि पैदा होते ही रोया भी नहीं। डॉक्टरों ने उसे आईसीयू में रख दिया था। ये भी बताया था कि वह ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहेगा। दीपक की मां रमादेवी कहती है- जब घर में दूसरे बेटे के जन्म की सूचना मिली तो हम खुश थे, लेकिन जैसे ही डॉक्टरों ने कहा कि इसे बीमारी है तो हम लोग मायूस हो गए।
मेरी बहू ( दीपक की पत्नी) को तो उसे देखने तक नहीं दिया। मैंने ही उसे गोद में लेकर चम्मच से पानी पिलाया।

मां बोली- मुझे बच्चे को देखने तक नहीं दिया भास्कर ने जब नीलम यादव से बात की तो बोली कि ये तीसरा बच्चा था। बड़ा बेटा चार साल का है और बेटी 2 साल की है, लेकिन उसका वजन सामान्य से काफी कम है। नीलम से पूछा कि प्रेग्नेंसी के दौरान कोई तकलीफ थी तो बोली कि आठ महीने पूरे हो गए थे। डॉक्टरों ने जांच की तो बोला कि नॉर्मल डिलीवरी होगी।
प्रेग्नेंसी के दौरान अस्पताल नहीं जा पाई थी। यहां से कुछ ही दूरी पर कारीडोंगरी गांव है। वहां अस्पताल में चली जाती थी।पत्नी नीलम ने कहा कि जब डिलीवरी हुई तो मुझे उसे देखने तक नहीं दिया था।

पति बोला- पास के अस्पताल जाते तो कोई नहीं मिलता था पति दीपक ने बताया कि प्रेग्नेंसी के दौरान पत्नी की किसी तरह की सोनोग्राफी नहीं हुई थी। परासिया का सिविल अस्पताल मेरे गांव से काफी दूर है, लेकिन जब भी मैं नजदीकी कारिडोंगरी अस्पताल गया, वहां मुझे कोई डॉक्टर नहीं मिला। हर बार पत्नी को आयरन की गोली देकर लौटा देते थे।
दीपक ने कहा कि एक भी स्टाफ मौजूद नहीं मिला। हर बार मुझे पत्नी को डॉक्टर को दिखाए बिना ही वापस लौटना पड़ा। दीपक ने कहा कि जब बच्चा पैदा हुआ तो डॉक्टरों ने कहा कि यह बचेगा नहीं, इसे एडमिट करना पड़ेगा। मैंने मना कर दिया। मेरी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं है कि मैं उसका इलाज करवा सकता। मैं उसे लेकर घर आ गया।

इकराम की दूसरी संतान के रूप में लड़की हुई थी दीपक से पहले पिछले साल परासिया के ही रहने वाले इकराम कुरैशी के घर भी इसी दुर्लभ बीमारी के साथ एक बच्ची ने जन्म लिया था। इकराम की मां ने बताया कि मेरी तीसरे नंबर की बहू नसीम ने बेटी को जन्म दिया था। वो दिखने में बड़ी अजीब थी। डॉक्टरों ने बताया कि ये ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहेगी।
हमें समझ नहीं आया कि हमारी तरफ से क्या कमी रह गई कि ऐसी बेटी पैदा हुई। कुछ देर बाद नसीम से बात हुई तो उसने कहा कि जब पहली बेटी हुई थी तब भी मैंने सोनोग्राफी नहीं कराई थी। मुझे लगा कि इस बार भी सब नॉर्मल होगा। मैंने दवाई वगैरह सब समय पर खाई थी। बस मैंने सोनोग्राफी नहीं कराई।
मैंने बच्ची को देखा भी था और उसे गोद में भी उठाया था। परिजन उसे छिंदवाड़ा ले गए। पांच दिन बाद जब वापस लौटे तो बच्ची की मौत हो चुकी थी।

डॉक्टर बोले- ये अनुवांशिक बीमारी है हार्लेक्विन इचिथोसिस नाम की इस दुर्लभ बीमारी को लेकर जब हमने परासिया की ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर शशि अतुलकर से बात की, तो उन्होंने कहा- तीनों बच्चे जन्मजात बीमारी लेकर पैदा हुए थे। ये जेनेटिकल बीमारी है। ऐसे बच्चों के माता या पिता में से किसी एक का प्रोटीन डेवलप करने वाला जीन्स संक्रमित होता है।
इस प्रोटीन का काम होता है स्किन को डेवलप करना। जब स्किन ही डेवलप नहीं होती तो शरीर के बाकी अंग जैसे पलकें, नाखून, कान भी डेवलप नहीं हो पाते। हमारे शरीर की त्वचा तापमान को नियंत्रित करने का काम करती है, इसलिए बच्चा जन्म लेने के बाद ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाता है।

एक ही ब्लॉक में तीन केस से डॉक्टर भी हैरान बीएमओ शशि अतुलकर बताती हैं कि हार्लेक्विन इचिथियोसिस बीमारी 5 लाख में से किसी एक बच्चे को होती है। बीमारी दुर्लभ है और जीन्स में गड़बड़ी की वजह से ही होती है। उनसे पूछा कि परासिया में तीन-तीन केस आने की क्या वजह मानती हैं, तो बोलीं- ये हैरानी की बात है। यहां जीन्स का म्यूटेशन( गड़बड़ी) क्यों हुआ और इसके पीछे क्या वजह है? ये तो रिसर्च से ही पता चलेगा।
फिलहाल परासिया जैसी छोटी जगह पर तो ऐसी रिसर्च की कोई संभावना नजर नहीं आती। महिला के गर्भ में बच्चा इस बीमारी के साथ पल रहा है ये पता लगाना भी बेहद मुश्किल है। डॉ. अतुलकर के मुताबिक गर्भ में आठ हफ्ते में बच्चे की ग्रोथ का पता चलता है। इस वक्त तक उसके आंख और कान डेवलप होना शुरू हो जाते है। स्किन डेवलप होने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है।
