पर्यावरण संरक्षण के तमाम दावों के बीच एक खतरनाक और गुपचुप धंधा तेजी से पनप रहा है। विदेशों (खासकर यूनाइटेड किंगडम) में कबाड़ घोषित हो चुके टायर भारत में डंप किए जा रहे हैं।
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रीसाइक्लिंग के बहाने आने वाले इन टायरों को पायरोलिसिस प्लांट्स में टायर ऑयल निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कि प्रतिबंधित है। मप्र में 64 पायरोलिसिस प्लांट हैं, जिनमें से 37 फिलहाल सक्रिय हैं। अकेले मुरैना में ही 10 से ज्यादा प्लांट नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए प्रतिबंधित विदेशी टायरों का उपयोग कर रहे हैं।
रिसाइक्लिंग के नाम पर स्क्रैप टायर ब्रिटेन से भारत भेजे जा रहे हैं। बीबीसी ने इन पर ट्रैकर लगाए। ये टायर गुजरात के मुंद्रा पोर्ट उतरे। कंटेनर्स में लोड हुए। कंटेनर्स को ड्रोन से ट्रैक किया। ये मुरैना के पायरोलिसिस प्लांट पहुंचे।
सबसे चिंताजनक है कि इन प्लांट से खतरनाक धुआं और विषैले तत्व निकल रहे हैं। बीबीसी के सहयोग से दैनिक भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद मप्र समेत पूरे देश में विदेशी टायरों को जलाकर भारी मात्रा में टायर ऑयल निकाला जा रहा है। यह पर्यावरण के लिए तो खतरनाक है ही, भारत को वैश्विक ‘टायर डंप यार्ड’ बनाने की दिशा में ले जा रहा है।
इस कालाबाजारी से जुड़े लोग कबाड़ टायरों को काला सोना कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अनुमान के मुताबिक, भारत में टायर पायरोलिसिस का वर्तमान बाजार करीब 4000 करोड़ का है। एक्सपर्ट मानते हैं कि जिस तरह बेरोकटोक यह बढ़ रहा है, 5 साल में यह 30 हजार करोड़ तक पहुंच सकता है।
प्रतिबंध के बावजूद इन टायर से ऑयल निकाला जा रहा है। यह डीजल का विकल्प है। भास्कर पड़ताल में सामने आया कि प्रदेश में ऐसे 37 प्लांट हैं। मप्र विदेशी टायरों का डंप यार्ड बन रहा है। पढ़ें रिपोर्ट…
मुरैना के जदेरुआ प्लांट में काम करके निकला युवक। शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं जहां कालिख न लगी हो।
रोजाना लाखों की संख्या में प्लांट तक ऐसे पहुंचते हैं विदेशी टायर
भास्कर टीम ने खुद को व्यापारी और फैक्ट्री मालिक बताकर मुरैना और आसपास के पायरोलिसिस प्लांटों की जांच की। मुरैना के इंडस्ट्रियल एरिया में पता चला कि गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह और मुंबई के जेएनपीटी से रोज लाखों विदेशी टायर अवैध रूप से आ रहे हैं। ये टायर धौलपुर बॉर्डर से मुरैना पहुंचते हैं, जहां 10 से ज्यादा प्लांटों में जलाकर तेल निकाला जा रहा है। जबकि सिर्फ भारत में इस्तेमाल हुए टायरों के उपयोग की मंजूरी है।
डील- 1 : भास्कर ने खुद को फैक्ट्री मालिक बताकर सप्लायर से डील की
मुंबई से विदेशी टायर भेजने वाले निसार खान से बातचीत…
रिपोर्टर : क्या आपके पास पुराने विदेशी टायर हैं?
खान: हां, मैं विदेशों से पुराने टायर मंगाकर देशभर में सप्लाई करता हूं। आप बताइए कितना माल चाहिए?
रिपोर्टर: कैसे यकीन करें कि टायर विदेशी ही हैं?
खान: पहले फोटो भेजे जाएंगे। सभी टायर बंडल में होंगे। दिक्कत नहीं होगी। मैं मप्र, यूपी, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, हैदराबाद तक सप्लाई करता हूं। हर माह 2000 टन माल देता हूं।
रिपोर्टर: हमारे यहां विदेशी टायरों की मांग क्यों ज्यादा है?
खान: विदेशों में टायरों की तय उम्र होती है, जबकि भारत में तब तक इस्तेमाल होता है, जब तक पूरी तरह खराब न हो जाएं। यूके के टायर में सबसे ज्यादा 40% तेल निकलता है।

मुरैना के जदेरुआ प्लांट से विदेशी टायरों से तेल निकाला जा रहा है।
डील-2 : रिपोर्टर ने खुद को टायर विक्रेता बताकर फैक्ट्री संचालक कपिल गोयल से किया सौदा
राजगढ़ की फैक्ट्री दार्शी एनर्जी के संचालक से बातचीत…
रिपोर्टर: हमारे पास यूके के टायर हैं। क्लाइंट के लिए मंगाए थे, अब उसने मना कर दिया है। आप खरीदेंगे?
गोयल : लोकल मार्केट से सस्ते में मिलते हैं, आपसे क्यों लें?
रिपोर्टर: लेकिन ये यूके के टायर हैं।
गोयल: वो ठीक है, लेकिन पहले रेट बताओ।
रिपोर्टर: पोर्ट पर ये हमें 16.50 रुपए प्रति किलो के रेट में मिला है, हम कम रेट में दे सकते हैं।
गोयल: रेट कम करोगे तो हम लेने को तैयार हैं। फोटो भेजो।
रिपोर्टर: हम आपको 15 के रेट से दे देंगे। लेकिन डिलीवरी के बाद टायर वापस नहीं होंगे।
गोयल: ठीक है, फोटो भेजिए। हमें लेने में कोई दिक्कत नहीं है।

इस तरह ट्रकों में भरकर आते हैं यूनाइटेड किंगडम से स्क्रैप टायर।
500 डिग्री तापमान पर टायरों को जलाकर निकालते हैं ऑयल पायरोलिसिस प्रक्रिया में टायरों को 500 डिग्री पर गर्म किया जाता है। इससे 3 चीजें निकलती हैं- टायर ऑयल, स्टील वायर और कार्बन ब्लैक। टायर ऑयल का उपयोग सीमेंट, कांच, सिरेमिक संयंत्रों, जनरेटर और भारी मशीनरी में ईंधन के रूप में होता है। यह डीजल के मुकाबले आधे दाम (45 रु./लीटर) पर उपलब्ध होता है। कार्बन ब्लैक का इस्तेमाल रबर, प्लास्टिक, खिलौने और जूते के सोल आदि बनाने में होता है।

मुरैना के लोग भी ये चर्चा करते हैं कि टायरों से तेल निकालने की प्रक्रिया से यहां पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। उसमें काम करने वाले मजदूरों के लिए भी ये ठीक नहीं है।
विदेशी टायर ही प्रतिबंधित क्यों? सरकार का मानना है कि विदेशी टायरों को भारत में जलाने की मंजूरी दी तो देश में इनका डंपिंग ग्राउंड बन जाएगा। विदेशी टायरों में हानिकारक रसायनों की मात्रा अधिक होती है, जिससे वायुमंडल में घातक गैसें फैलती हैं और भूमिगत जल भी दूषित होता है। स्थानीय टायरों पर यह प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि उनका उपयोग पहले ही लंबी अवधि तक किया जा चुका होता है। उनमें तेल और विषैले तत्वों की मात्रा कम होती है।