Benefits Ganesha Chalisa : हम सबकी ज़िंदगी में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब काम अटकने लगते हैं, परेशानियां बढ़ जाती हैं और समझ नहीं आता कि क्या करें. ऐसे समय में अगर किसी का नाम सबसे पहले याद आता है तो वो हैं विघ्नहर्ता श्री गणेश. गणेश जी को हर शुभ काम से पहले याद करना जरूरी माना गया है क्योंकि वे हर अड़चन को दूर करने वाले माने जाते हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
गणेश जी सिर्फ बाधाएं ही नहीं हटाते, बल्कि बुद्धि, समझ और सौभाग्य भी बढ़ाते हैं. इसलिए बच्चे जब पढ़ाई में मन नहीं लगाते या कोई नौकरी या व्यापार में दिक्कत महसूस करता है, तो उन्हें गणेश जी की आराधना करने की सलाह दी जाती है. बुधवार के दिन पीले या हरे रंग के कपड़े पहनकर भगवान गणेश को दूर्वा, लड्डू और सिंदूर अर्पित करें और साफ-सुथरी जगह बैठकर चालीसा का पाठ करें.
गणेश चालीसा का पाठ क्यों है खास?
ज्योतिष के जानकार भी मानते हैं कि बुधवार के दिन चालीसा का पाठ करने से बुध ग्रह की स्थिति बेहतर होती है. खासकर जिनकी कुंडली में बुध दोष है, उन्हें ये उपाय जरूर करना चाहिए. इससे वाणी में मधुरता, समझदारी में बढ़ोतरी और फैसले लेने की ताकत आती है.
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जै गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥
गौरी ललन विश्व-विख्याता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे।
मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
अति शुचि पावन मंगलकारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्ह भारी॥
तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा॥
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।
बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण यहि काला॥
पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै।
पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥
बालक, देखन चाहत नाहीं॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
बालक सिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरिजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटि चक्र सो गज शिर लाये॥
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वन दीन्हे॥
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
शेष सहसमुख सके न गाई॥
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥