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गणेश चालीसा से बदलें अपनी किस्मत, बुधवार को मिलेगी बुद्धि और सुख-समृद्धि, बुध दोष से मिलेगी राहत


Benefits Ganesha Chalisa : हम सबकी ज़िंदगी में ऐसे कई मोड़ आते हैं जब काम अटकने लगते हैं, परेशानियां बढ़ जाती हैं और समझ नहीं आता कि क्या करें. ऐसे समय में अगर किसी का नाम सबसे पहले याद आता है तो वो हैं विघ्नहर्ता श्री गणेश. गणेश जी को हर शुभ काम से पहले याद करना जरूरी माना गया है क्योंकि वे हर अड़चन को दूर करने वाले माने जाते हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

बुधवार का दिन खासतौर पर गणेश जी को समर्पित होता है. इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है अगर आप किसी परेशानी से गुजर रहे हैं या कोई काम बार-बार रुक रहा है तो इस दिन भगवान गणेश की पूजा जरूर करें. मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति हर बुधवार को पूरे मन से गणेश जी की पूजा करता है और चालीसा का पाठ करता है तो उसे जीवन में शांति, सफलता और सुख मिलते हैं.
क्या करें?
गणेश जी सिर्फ बाधाएं ही नहीं हटाते, बल्कि बुद्धि, समझ और सौभाग्य भी बढ़ाते हैं. इसलिए बच्चे जब पढ़ाई में मन नहीं लगाते या कोई नौकरी या व्यापार में दिक्कत महसूस करता है, तो उन्हें गणेश जी की आराधना करने की सलाह दी जाती है. बुधवार के दिन पीले या हरे रंग के कपड़े पहनकर भगवान गणेश को दूर्वा, लड्डू और सिंदूर अर्पित करें और साफ-सुथरी जगह बैठकर चालीसा का पाठ करें.

गणेश चालीसा का पाठ क्यों है खास?

गणेश चालीसा के हर शब्द में शक्ति छिपी होती है. जब आप भाव से इसका पाठ करते हैं तो आपकी सोच में सकारात्मकता आती है और मन मजबूत बनता है. कई लोग इसे सिर्फ धार्मिक कर्मकांड समझते हैं, लेकिन असल में यह हमारे मानसिक और आत्मिक बल को बढ़ाता है.

ज्योतिष के जानकार भी मानते हैं कि बुधवार के दिन चालीसा का पाठ करने से बुध ग्रह की स्थिति बेहतर होती है. खासकर जिनकी कुंडली में बुध दोष है, उन्हें ये उपाय जरूर करना चाहिए. इससे वाणी में मधुरता, समझदारी में बढ़ोतरी और फैसले लेने की ताकत आती है.

बुधवार के दिन गणेश चालीसा का पाठ विधिवत रूप से करें और हर चौपाई पढ़ने के बाद भगवान गणेश को दुर्वा जरूर चढ़ाएं.

॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥

॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू॥

जै गजबदन सदन सुखदाता।
विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

राजत मणि मुक्तन उर माला।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित।
चरण पादुका मुनि मन राजित॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।
गौरी ललन विश्व-विख्याता॥

ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे।
मूषक वाहन सोहत द्वारे॥

कहो जन्म शुभ कथा तुम्हारी।
अति शुचि पावन मंगलकारी॥

एक समय गिरिराज कुमारी।
पुत्र हेतु तप कीन्ह भारी॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।
तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा॥

अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।
बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥

अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।
मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।
बिना गर्भ धारण यहि काला॥

गणनायक गुण ज्ञान निधाना।
पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै।
पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।
लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।
नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं।
सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा।
देखन भी आये शनि राजा॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।
बालक, देखन चाहत नाहीं॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो।
उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई।
का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।
शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥

पड़तहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा।
बालक सिर उड़ि गयो आकाशा॥

गिरिजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।
सो दुख दशा गयो नहीं वरणी॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा।
शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।
काटि चक्र सो गज शिर लाये॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो।
प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वन दीन्हे॥

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

चले षडानन, भरमि भुलाई।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।
तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।
नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।
शेष सहसमुख सके न गाई॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी।
करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।
जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥



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