विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल।
दतिया में खैर की लकड़ी की तस्करी का मामला सामने आया था। 5 जून की शाम निचरौली के जंगल में जब वन विभाग की टीम पहुंची, तो तस्करों ने उस पर फायरिंग कर दी। सूचना पर पहुंची पुलिस पर भी गोलियां चलाई गईं। तीन घंटे तक चली इस मुठभेड़ के दौरान तस्कर ट्रक में लक
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तस्करों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए जंगल में आग भी लगा दी। इससे पुलिस को लगा कि लकड़ी जला दी गई है और सबूत मिटा दिए गए हैं। जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की, लेकिन तस्कर अंधेरे का फायदा उठाकर भाग निकले।
घटना के बाद जब पुलिस और वन विभाग ने सर्चिंग की, तो करीब 10 ट्रॉली खैर की लकड़ी बरामद की गई।
एफआईआर में नहीं नाम, न ही खेत मालिक का जिक्र वन विभाग के पास तस्करों के नाम-पते होने के बावजूद एफआईआर में सभी को अज्ञात बताया गया है। यहां तक कि जिस खेत में लकड़ी रखी थी, उसके मालिक का नाम भी नहीं लिखा गया है।
एफआईआर का समय 4:30 बजे, फिर भी अंधेरे का हवाला एफआईआर में घटना का समय 4:30 बजे लिखा गया है, जबकि विभाग का कहना है कि अंधेरे के कारण तस्करों की पहचान नहीं हो सकी। इस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
डीएफओ और एसपी के बयान डीएफओ मोहम्मद माज ने कहा कि रात में लकड़ी जब्त की गई और सुबह 5 बजे तक जंगल से लाने का काम चला। अंधेरे के कारण तस्करों की पहचान नहीं हो सकी। एसपी सूरज कुमार वर्मा ने बताया कि अभी आरोपियों की पहचान की जा रही है, जल्द गिरफ्तारी होगी। उन्होंने जांच के लिए कोई विशेष टीम बनाने या इनाम घोषित करने से इनकार किया है।

स्थानीय लोगों में आक्रोश और भय इस घटना के बाद से दतिया में लोगों में डर और गुस्सा है। अधिवक्ता जितेंद्र त्रिपाठी ने कहा, जब तस्कर पुलिस पर गोली चला सकते हैं, तो आम जनता कैसे सुरक्षित रहेगी। लोगों का कहना है कि यह तस्करी लंबे समय से चल रही थी। ट्रक में लकड़ी भरने की तैयारी एक दिन का काम नहीं है।
विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने उठाए सवाल विपक्षी दल और समाजसेवी संगठनों ने वन विभाग और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। आरोप है कि जानबूझकर नाम न लेकर मामले को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। लोगों ने मांग की है कि तस्करों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए और जंगलों में चल रही ऐसी अवैध गतिविधियों पर रोक लगे।