Thursday, June 26, 2025
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पांच-साल में आरटीई की 37 हजार से ज्यादा सीटें घटीं: दो चरण की प्रक्रिया के बावजूद प्रदेश के 44% पात्र विद्यार्थियों को नहीं मिला मुफ्त दाखिला – Bhopal News


गरीब बच्चों के लिए लौट रहा सरकारी स्कूलों का दौर, निजी स्कूलों में आरटीई के तहत प्रवेश में गिरावट

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भास्कर नेटवर्क मध्यप्रदेश में राइट टू एजुकेशन (आरटीई) यानी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राइवेट स्कूलों में होने वाले दाखिलों में लगातार गिरावट हो रही है। वहीं गरीब बच्चों के लिए सालों बाद वापस सरकारी स्कूलों का दौर लौट रहा है, क्योंकि यहां नामांकन बढ़ रहे हैं। आरटीई के तहत गरीब परिवारों के बच्चों को मिलने वाले 25% आरक्षण पर दाखिले बीते पांच वर्षों में 37 हजार तक कम हो गए।

वर्ष 2020-21 में 1.29 लाख बच्चों को दाखिला मिला था, जो 2025-26 में घटकर 92,673 रह गया। यह गिरावट 29% से अधिक है। 2025-26 में कुल 1.66 लाख आवेदन पात्र पाए गए थे, उनमें से प्रथम चरण में 83,483 और द्वितीय चरण में 9190 बच्चों को और दाखिला दिया गया। इसके बावजूद 44% यानी 74,078 बच्चे प्रवेश से वंचित रह गए।

सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा: पिछले तीन वर्षों के नामांकन आंकड़े बताते हैं कि मध्यप्रदेश में प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों की हिस्सेदारी 2% से ज्यादा बढ़ी, जबकि निजी स्कूलों की हिस्सेदारी में गिरावट आई। वर्ष 2021–22 में प्राथमिक स्तर पर 58.41% बच्चों ने सरकारी स्कूलों में प्रवेश लिया था, जो 2022–23 में बढ़कर 60.74% हो गया।

2023–24 में यह आंकड़ा 60.37% रहा। वहीं, निजी स्कूलों में नामांकन इसी अवधि में 40.12% से घटकर 38.68% तक आ गया।

पांच वर्षों में एडमिशन में 24 फीसदी की गिरावट

वर्ष 2021-22 में आरटीई के तहत पात्र आवेदनों की संख्या 1,74,948 थी। इनमें से 74% यानी 1,29,690 को दाखिला मिला। सिर्फ 26% बच्चे ही दाखिला नहीं ले पाए, लेकिन पांच सालों में सीटें घटने से स्थिति और बिगड़ गई है। 2025-26 में पात्र आवेदनों की संख्या 1,66,751 रही। जिसमें से करीब 56% को दाखिला मिला और करीब 44 फीसदी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में नि:शुल्क एडमिशन नहीं ले पाए। आवंटन और दाखिला नहीं मिलने के बीच सबसे कम अंतर वर्ष 2022-23 में देखने को मिला था।

नियमों की सख्ती से कम होते गए एडमिशन

  • पहले आरटीई की सीटें स्कूल की मान्यता में दर्ज आवेदन के आधार पर तय होती थीं। अब यह UDISE पोर्टल पर दर्ज पहली कक्षा के नामांकन के आधार पर होती है।
  • पहले स्कूल संचालक अपने वाहनों की पहुंच वाले गांवों को खुद ‘पड़ोस की सीमा’ में शामिल कर लेते थे। अब यह अधिकार छीन लिया गया है।
  • पहले ऑनलाइन लॉटरी में पेरेंट्स द्वारा दिए गए पहले और दूसरे विकल्पों में से ही किसी में एडमिशन होता था। अब यह तय नहीं कि कौन सा विकल्प चुना जाएगा – इससे पसंद का स्कूल मिलने की संभावना बेहद कम हो गई है।
  • सरकार प्राइवेट स्कूलों को आरटीई के तहत एडमिशन लेने वाले छात्र के 500 रुपये प्रति महीने की दर से भुगतान करती है। ये बेहद कम राशि है और समय पर भी नहीं मिलती। छोटे स्कूलों को दिक्कत होने से तेजी से वे बंद हो रहे हैं। जिससे सीटें घट रही है।



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