Saturday, April 19, 2025
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प्रतापगढ़ फोर्ट-उग्रसेन की बावली पर खत्म होगा वक्फ का दावा: न दान में मिलीं, न कागजात; ये 256 प्रॉपर्टीज वक्फ से छिनेंगी


दिल्ली में उग्रसेन की बावली हो या पुराना किला, महाराष्ट्र में प्रतापगढ़ गोंदिया फोर्ट हो या बुलढाना की फतेहखेड़ा मस्जिद, अब इन पर वक्फ बोर्ड का दावा खत्म हो जाएगा। यही नहीं, देश में ऐसे 256 राष्ट्रीय स्मारक हैं, जिनका वक्फ के हाथ से निकलना तय माना जा

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ये सभी ASI संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक हैं, जिन पर वक्फ बोर्ड ने भी दावा कर रखा है। ये वक्फ बोर्ड को दान में नहीं मिली हैं। इन पर वक्फ के दावे का एक ही आधार है। इसे पहले कभी मुस्लिम धर्म के लोग इस्तेमाल करते थे। इसलिए वक्फ बाई यूजर नियम के तहत बोर्ड ने इसे अपनी प्रॉपर्टी बता दिया।

अब जब वक्फ (संशोधन) बिल 8 अप्रैल को नया कानून बन चुका है। तब नए कानून के तहत वक्फ बोर्ड को अगले 6 महीने में अपनी सभी प्रॉपर्टीज की डिटेल और डॉक्यूमेंट्स सेंट्रल ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करना होगा। अगर वक्फ बाई यूजर वाली प्रॉपर्टी के डॉक्यूमेंट्स नहीं होंगे, तो उन पर बोर्ड का दावा खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगा। वो ASI के पास चली जाएंगी।

पोर्टल पर डिटेल अपलोड करने के लिए 6 महीने के बाद फिर 6 महीने का एक्सटेंशन दिया गया है। यानी ज्यादा से ज्यादा एक साल में वक्फ बोर्ड के दावे खत्म हो जाएंगे। दैनिक भास्कर ने ASI के ऑफिशियल सोर्सेज से इन स्मारकों पर वक्फ के दावों से जुड़ी डिटेल निकाली। हमने ग्राउंड पर जाकर इन दावों की पड़ताल की। साथ ही ASI अधिकारियों से लेकर वक्फ मामलों के जानकारों से बात की।

सबसे पहले ‘वक्फ बाई यूजर‘ का मतलब, इस पर नए कानून का असर समझिए हमने वक्फ बाई यूजर और ऐसी स्मारकों पर वक्फ बोर्ड के दावे को लेकर सेंट्रल वक्फ काउंसिल के पूर्व सेक्रेटरी डॉ. एम.आर. हक उर्फ डॉ. कैसर शमीम से बात की। हमने उनसे पूछा कि आखिर ये वक्फ बाई यूजर का मतलब क्या होता है। नए कानून से इस पर क्या फर्क पड़ेगा।

डॉ. कैसर कहते हैं, ‘वक्फ बाई यूजर का मतलब है, कोई ऐसी जगह जहां सदियों पहले से नमाज की जा रही हो। या काफी सालों से मुसलमान उस जगह का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उस प्रॉपर्टी के डॉक्यूमेंट्स नहीं हैं। इसलिए उस जगह को वक्फ बाई यूजर बताया जाता है।‘

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अब नए बिल में ये कह दिया गया है कि सभी प्रॉपर्टी के कागजात पोर्टल पर अपलोड करना जरूरी है। ऐसे में सदियों पुरानी मस्जिदें और जगहें सरकारी प्रॉपर्टी हो जाएंगी।

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देश की 256 राष्ट्रीय स्मारकों पर वक्फ और ASI दोनों की ओनरशिप किस तरह की स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का दावा है। साथ ही वो ASI के भी संरक्षण में है। ये जानने के लिए हमने JPC रिपोर्ट और ASI की रिपोर्ट की पड़ताल की। जेपीसी की रिपोर्ट के ANNEXURE-G में ये लिस्ट है। इसमें वक्फ बोर्ड की घोषित प्रॉपर्टी का नाम ASI के रिकॉर्ड के आधार पर दिया गया है। ASI ने अपनी रिपोर्ट में भी डुअल ओनरशिप का जिक्र किया है। इसमें कुल 256 राष्ट्रीय स्मारकों की लिस्ट मिली।

– दिल्ली में उग्रसेन की बावली लिस्ट में 22वें नंबर है। पुराना किला 30वें नंबर पर है। इसमें लिखा है कि पुराना किला इंद्रप्रस्थ के पेड़ों से घिरी सड़कें, गार्डन, किला कोहना मस्जिद और कई एंट्रेंस भी ASI के रिकॉर्ड में है। इन्हें वक्फ बोर्ड भी अपनी प्रॉपर्टी बताता है।

ये ASI की लिस्ट की कॉपी है। इसमें दिल्ली की कुछ स्मारकों की डिटेल है, जो ASI के संरक्षण में हैं और उन पर वक्फ बोर्ड भी दावा करता है।

ये ASI की लिस्ट की कॉपी है। इसमें दिल्ली की कुछ स्मारकों की डिटेल है, जो ASI के संरक्षण में हैं और उन पर वक्फ बोर्ड भी दावा करता है।

– 212वें नंबर पर महाराष्ट्र के गोंदिया प्रतापगढ़ फोर्ट का जिक्र है। हमने ASI से महाराष्ट्र के नागपुर सर्कल में वक्फ की प्रॉपर्टी की जानकारी मांगी थी। उसमें बताया गया कि इस सर्कल में राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित कुल 94 स्मारकें हैं। इनमें से 5 को वक्फ अपनी प्रॉपर्टी बताता है। इनमें गोंदिया का प्रतापगढ़ फोर्ट, बुलढाना की फतेहखेड़ा मस्जिद, रोहिनखेड़ मस्जिद, वर्धा का पौनार किला और अकोला का बालापुर फोर्ट शामिल हैं।

सबसे पहले बात दिल्ली की स्मारकों की… उग्रसेन की बावली में मौजूद मस्जिद पर वक्फ का दावा, अब यहां नमाज नहीं होती हमने ASI से जानकारी मांगी थी कि आखिर वक्फ बोर्ड ने उग्रसेन की बावली को लेकर अपने रिकॉर्ड में क्या लिखा है। हमें बताया गया कि वक्फ बोर्ड ने इसे मस्जिद हेली रोड नाम से लिखा है। 16 अप्रैल 1970 को वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी प्रॉपर्टी घोषित किया। जब हम इस मस्जिद पर पहुंचे तो यहा हमें मस्जिद और बावली दोनों एक साथ ही मिले। दोनों बिल्कुल सटे हुए है। मस्जिद की हालत बहुत जर्जर हो चुकी है।

उग्रसेन की बावली को वक्फ बोर्ड ने अपनी प्रॉपर्टी घोषित करते हुए मस्जिद हेली रोड नाम से लिख रखा है।

उग्रसेन की बावली को वक्फ बोर्ड ने अपनी प्रॉपर्टी घोषित करते हुए मस्जिद हेली रोड नाम से लिख रखा है।

यहां लगे ASI के बोर्ड में उग्रसेन की बावली का इतिहास लिखा है। उस पर मस्जिद का भी जिक्र है। बोर्ड पर लिखा है कि बावली का निर्माण अग्रवाल समुदाय के पूर्वज राजा उग्रसेन ने कराया था। इसके पश्चिम में 3 एंट्री गेट वाली एक मस्जिद है। इसे 4 खंभों पर बनाया गया है। इसकी छत व्हेल मछली की पीठ की तरह है और दीवारों पर चैत्य आकृति की नक्काशी है। मस्जिद का एक खंभा जर्जर होकर टूट चुका है।

हमने यहां मौजूद गार्ड से पूछा कि क्या इस मस्जिद में नमाज होती है। इसके जवाब में गार्ड ने बताया कि वो पिछले कई साल से यहां ड्यूटी कर रहे हैं, लेकिन कभी यहां नमाज होते नहीं देखी। आसपास के लोगों और दुकानदारों ने भी बताया कि उन्होंने यहां कभी नमाज होते नहीं देखी।

पुराना किला में मस्जिद कोहना भी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी इसके बाद हम पुराना किला पहुंचे। यहां ASI की रिपोर्ट से हमें पता चला कि पुराना किला में कोहना मस्जिद है। इसके आधार पर 16 अप्रैल 1970 को वक्फ ने इसे अपनी प्रॉपर्टी घोषित कर रखा है। हालांकि इसमें कितना एरिया वक्फ बोर्ड के हिस्से में है। रिकॉर्ड में इसकी कोई जानकारी दर्ज नहीं है।

हमने दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधिकारियों से इस बारे में जानकारी मांगी। उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 1970 में वक्फ की प्रॉपर्टी घोषित होने के बाद कई बार सर्वे हुआ। मीटिंग के जरिए भी एरिया को लेकर बात हुई, लेकिन किसी भी संबंधित सरकारी विभाग ने इसमें गंभीरता नहीं दिखाई।

इसलिए ये कहा जाता है कि पुराना किला वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है। जबकि ऐसा नहीं है। हमने पूछा कि क्या वक्फ बोर्ड के पास इसके कोई डॉक्यूमेंट्स हैं। जवाब में हमें बताया गया कि ये वक्फ बाई यूजर नियम के तहत वक्फ प्रॉपर्टी है।

पुराना किला में मस्जिद से 50 मीटर दूर श्री कुंती देवी मंदिर जर्जर हालत में हमें पड़ताल के दौरान मस्जिद से महज 50 मीटर दूर पुराना किला परिसर में श्री कुंती देवी मंदिर दिखा। वहां मंदिर की देखरेख करने वाली एक बुजुर्ग मुन्नी देवी मिली। मंदिर के बारे में पूछने पर वे बताती हैं, ‘द्वापर युग में माता कुंती सामने वाली बावली में स्नान कर यहां शिव और दुर्गा की पूजा करती थीं। इसलिए इस मंदिर का नाम श्री कुंती देवी माता मंदिर है।‘

‘हमारा परिवार कुंती देवी मंदिर में ही रहता है। कई पीढ़ियों से हमारा परिवार इस मंदिर की सेवा करता आ रहा है। हमारे दादा ससुर भी यहीं रहे हैं। उनके पूर्वजों ने भी इस मंदिर की सेवा की है।‘

मंदिर का रेनोवेशन न होने को लेकर हमने पुराना किला में मौजूद ASI के एक सीनियर अधिकारी से बात की। वे बताते हैं, ‘अभी मंदिर को लेकर केस कोर्ट में पेंडिंग है। मंदिर परिसर में रहने वाला परिवार ही उस पर मालिकाना हक की मांग कर रहा है। इसलिए फैसला आने के बाद ही मंदिर की मरम्मत का काम शुरू हो सकेगा।‘

अब बात महाराष्ट्र के स्मारकों की… प्रतापगढ़ किले से लेकर पौनार किले भी वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने ASI को अपनी प्रॉपर्टी की जो डिटेल भेजी है, उसमें गोंदिया किले का भी नाम है। गोंदिया के प्रतापगढ़ किले को ASI ने 1922 में संरक्षित किया था। इसे हिंदू राजा ने बनवाया था। महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड ने 2004 में जब इसे अपनी प्रॉपर्टी के तौर पर दर्ज किया तो इसे ख्वाजा उस्मान गनी हसन दरगाह सोसाइटी प्रतापगढ़ बताया।

असल में ये दरगाह और प्रतापगढ़ किला दोनों आसपास हैं। इसलिए कागजात में प्रतापगढ़ का किला भी वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में आ गया।

इसी तरह महाराष्ट्र के वर्धा का पौनार किला भी वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में है। ASI की रिपोर्ट में इसे 31 मार्च 1932 को संरक्षित स्मारकों में शामिल किया गया था। 5वीं शताब्दी में ये किला हिंदू राजा प्रवर सेना ने बनवाया था। ASI से मिले डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि 2004 में वक्फ ने इसे अपनी प्रॉपर्टी घोषित कर दिया। श्री सैयद वाहिद अली के नाम से इसे महाराष्ट्र स्टेट गजट नोटिफिकेशन के पेज नंबर-3747 पर घोषित किया गया है।

ये भी ASI की लिस्ट की कॉपी है। इसमें नागपुर सर्कल की 5 स्मारकों की डिटेल है, जो ASI के संरक्षण में हैं और उन पर वक्फ बोर्ड भी दावा करता है।

ये भी ASI की लिस्ट की कॉपी है। इसमें नागपुर सर्कल की 5 स्मारकों की डिटेल है, जो ASI के संरक्षण में हैं और उन पर वक्फ बोर्ड भी दावा करता है।

डुअल ओनरशिप में भी सिर्फ स्ट्रक्चरल मेंटेनेंस ASI की जिम्मेदारी ASI कैसे काम करता है। अगर किसी राष्ट्रीय स्मारक पर ASI के साथ वक्फ बोर्ड या किसी और संस्थान की डुअल ओनरशिप हो, तो किस तरह की परेशानियां आती है। इसे समझने के लिए हमने ASI की जॉइंट डायरेक्टर जनरल (स्मारक एंड पब्लिकेशन) डॉ. नंदिनी भट्टाचार्य साहू से बात की।

सवाल: देश में कितनी ASI संरक्षित स्मारक हैं। वक्फ बोर्ड और ASI की डुअल ओनरशिप में कितने स्मारकों की पहचान हो पाई है। जवाब: 1861 में ASI संस्थान बना। पहला एक्ट ‘The Ancient Monuments Preservation Act’ (AMPA) 1904 में बना। इसके तहत बहुत से स्मारकों को संरक्षण मिला था। फिर देश की आजादी के बाद 1951 में संरक्षित स्मारकों की नई लिस्ट बनाई गई। अभी पूरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर ASI संरक्षित स्मारक करीब 3696 हैं।

अभी हाल में जेपीसी रिपोर्ट बनाई गई थी। उसमें वक्फ बोर्ड और ASI की डुअल ओनरशिप वाले स्मारक 250 से ज्यादा (करीब 256) हैं। इनके अलावा भी देश में कई जगह मंदिरों और दूसरे धर्म के प्रतिष्ठानों में भी डुअल ओनरशिप हैं।

सवाल: डुअल ओनरशिप होने पर ASI को काम में किस तरह की दिक्कतें आती हैं? जवाब: हां, डुअल ओनरशिप से निश्चित तौर पर थोड़ी दिक्कतें तो आती हैं। इसमें फील्ड में काम करने वालों को ज्यादा दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। हालांकि कई बार धर्म से जुड़ी डुअल ओनरशिप में साथ मिलकर करने से काम आसान भी हो जाता है। हालांकि कोई अड़चन आने पर कई बार हम लोग आपस में मीटिंग कर लेते हैं।

सवाल: वक्फ संशोधन बिल पर बने नए कानून का डुअल ओनरशिप पर क्या असर पड़ेगा। जवाब: अभी उस पर कोई कमेंट नहीं कर सकती। इस पर संबंधित विभाग के मंत्री, सीनियर अफसर गजट का आकलन कर रहे हैं। उनसे जैसे निर्देश मिलेंगे, आगे उसी के हिसाब से काम करेंगे।

वकील बोले- वक्फ प्रॉपर्टी पर अब कोई भी करेगा क्लेम, कोर्ट में बढ़ेंगे पेंडिंग केस नए कानून से क्या-क्या बदलने वाला है। पुराने वक्फ कानून से क्या नया होने वाला है। इसे समझने के लिए हमने वक्फ बोर्ड से जुड़े रहे एडवोकेट रईस अहमद से बात की। नए एक्ट के आने से सबसे बड़ा बदलाव क्या होगा। इतना विरोध क्यों हो रहा है।

इसके जवाब में रईस कहते हैं, ‘नए एक्ट में एक बड़ा बदलाव हो रहा है, जिसके तहत अब कोई भी वक्फ की प्रॉपर्टी को अपना बताकर री-क्लेम कर सकेगा। मान लीजिए जैसे- किसी के परिवार में दादा या परदादा ने कोई जमीन वक्फ के नाम पर दान कर दी थी, लेकिन अब उसकी नई पीढ़ी के लोग चाहते हैं कि वो प्रॉपर्टी उन्हें मिल जाए। ऐसे में वो कोर्ट में जा सकेंगे।‘

‘फैसला आने में ज्यादा दिक्कत होगी क्योंकि ट्रिब्यूनल में वक्फ के जानकार होते थे। सिविल कोर्ट में इसे समझने में भी दिक्कत होने वाली है।‘

कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि पहले वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को किसी कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकते हैं। क्या अब इसमें भी बदलाव किया गया है। इसके जवाब में रईस बताते हैं, ‘वक्फ बोर्ड के मामलों की सुनवाई के लिए ट्रिब्यूनल होता है। आजकल मीडिया में ये गलतफहमी फैलाई जा रही है कि ट्रिब्यूनल के फैसले को कभी चैलेंज नहीं किया जा सकता है। ये गलत है। हाईकोर्ट में पहले से ही चैलेंज किया जाता रहा है।‘

‘वक्फ सेक्शन-83 और सब सेक्शन-9 है। उसमें कोई भी ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ जा सकता है। हाईकोर्ट को ये शक्ति है कि वो ट्रिब्यूनल के फैसले को बदल सकता है। उस पर रोक भी लगा सकता है। नए संशोधन बिल में ये जरूर हुआ है कि अब वक्फ बोर्ड के मामलों को लेकर कोई भी सिविल डिस्ट्रिक्ट में जा सकता है।‘

इसे समझने के लिए हम दिल्ली वक्फ बोर्ड के दफ्तर पहुंचे। यहां से हमें वक्फ बोर्ड से जुड़े कोर्ट में पेंडिंग केसेज की डिटेल मिली।

वक्फ एक्ट-1995 में सर्वे की बात, लेकिन 29 साल में कोई सर्वे नहीं हुआ वक्फ एक्ट में संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी। इस पर सेंट्रल वक्फ काउंसिल के पूर्व सेक्रेटरी डॉ. एम.आर. हक उर्फ कैसर शमीम थोड़ी नाराजगी जताते हुए कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता है कि पुराने कानून में बदलाव के पीछे कोई खामी नहीं थी। बल्कि पिछले वक्फ एक्ट-1995 को सही तरीके से लागू ना किया जाना ही बदलाव की मुख्य वजह है।‘

‘वक्फ एक्ट-1995 में कहा गया था कि सभी राज्य वक्फ कमिश्नर बहाल करें। वो सर्वे करें कि उनके यहां कितनी प्रॉपर्टी हैं। उनकी हालत कैसी है, लेकिन एक भी राज्य ने सर्वे नहीं कराया। ऐसे में सवाल ये है कि जब आपने सर्वे ही नहीं कराया तो फिर सवाल क्यों किया जा रहा है। ये कमी किसकी है। इसके डेटा में ही गड़बड़ी है।‘

वक्फ प्रॉपर्टी पर शिकायत करते ही कमिश्नर की जांच पूरी होने तक रोक, ये बड़ी खामी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी पर नए कानून का सबसे ज्यादा असर किस तरह से पड़ेगा। क्या बदलाव होने वाला है। इस पर डॉ. कैसर शमीम कहते हैं, ‘नए कानून के मुताबिक, अब कलेक्टर से सीनियर अधिकारी यानी कमिश्नर वक्फ मामलों का सर्वे करेंगे। नए कानून में अब कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी को लेकर उसके खिलाफ दावा कर सकेगा। अगर वो दावा करता है कि ये वक्फ की संपत्ति नहीं है तो उसे संज्ञान में लेकर कमिश्नर जांच करेंगे।‘

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जब तक जांच चलेगी तब तक उस प्रॉपर्टी पर वक्फ का अधिकार नहीं रहेगा। यानी वक्फ बोर्ड उस प्रॉपर्टी पर कुछ नहीं कर सकता है। ये जांच कब तक पूरी होगी, इसकी कोई तय समय सीमा नहीं है।

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‘यानी फैसला लेने में सालों साल लग सकते हैं। ऐसे में अगर किसी वक्फ प्रॉपर्टी में कोई किराएदार रह रहा हो और वो उस संबंध में कमिश्नर के पास जाकर दावा कर दे कि ये वक्फ की प्रॉपर्टी नहीं है, तो फैसला होने तक उसे वक्फ को किराया भी नहीं देना होगा। फिर जरा सोचिए वक्फ बोर्ड को खर्च चलाने के लिए राजस्व कैसे आएगा।‘

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