Sunday, June 1, 2025
Sunday, June 1, 2025
Homeबिहाररामायण-गीता विचलित नहीं करते, जीवन में देते खुशी- मोरारी बापू: राजगीर...

रामायण-गीता विचलित नहीं करते, जीवन में देते खुशी- मोरारी बापू: राजगीर में राम कथा का आयोजन, सनातन धर्म के महत्व की हुई चर्चा – Nalanda News


राजगीर के आरआईसीसी में राम कथा आयोजित हुई। इसके पांचवें दिन पूज्य मोरारी बापू ने सनातन धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला। इन्होंने कहा कि हमारे रामायण और भगवद्गीता किसी को विचलित करने के लिए नहीं, बल्कि सबको आनंद और प्रेरणा देने के लिए हैं। उन्होंने ‘आनंद

.

कथा की शुरुआत में बापू ने अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स का एक पत्र पढ़ा, जिसमें उन्होंने छुट्‌टी में रामायण और भगवत गीता के पाठ से आत्मबल मिलने की बात कही है। बापू ने बताया कि उल्काओं से यान को खतरा था, लेकिन सुनीता की प्रार्थना से दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ और रक्षा हुई। उन्होंने वेद विद्या के लिए नासा में विभाग की मांग की और “जय हिंदू, जय सनातन धर्म” का उद्घोष किया।

दो पुस्तक का किया लोकार्पण

बापू ने दो पुस्तकों ‘मानस नव जीवन’ (अहमदाबाद) और ‘मानस अपराध’ (बरेली) का लोकार्पण किया। नितिनभाई वडगामा की ओर से संपादित इन पुस्तकों का लोकार्पण व्यासपीठ से किया गया।

बापू ने ‘आनंदा यूनिवर्सिटी’ की सुंदर कल्पना प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह कोई भौतिक भवन नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना और प्रेम से निर्मित है। उन्होंने बताया कि यह एक चलती-फिरती विश्वविद्यालय है, जिसके कुलपति स्वयं रामचरितमानस की व्यासपीठ है। यहां न कोई शुल्क है, न परीक्षा और न ही कोई प्रमाण पत्र की आवश्यकता है। यहां प्रेम ही शिक्षा का आधार है।

विद्यार्थियों के मार्गदर्शन के लिए बापू ने आठ कुलपति वृत्तियों का उल्लेख किया। इसमें गणेश (विवेक), गौरी (श्रद्धा), गो (सरलता), गीरा (मधुर वाणी), गंग (ज्ञानधारा), गोपाल (इंद्रिय संयम), और ग्रंथ (मुक्तचित्त) है। उन्होंने कहा कि विवेक ही मनुष्य का प्रकाश है और संयमित जीवन ही उसका यज्ञ है।

ब्रह्मा की सृष्टि का वर्णन करते हुए बापू ने बताया कि उन्होंने पांच प्रजाएं बनाई हैं – देव, दानव, पितृ, पशु और मानव। सबके लिए भोजन और प्रकाश की अलग-अलग व्यवस्था की गई है। मानव को विवेक और सात्विक भोजन दिया गया है। उन्होंने श्रोताओं से अपील की कि अभक्ष्य पदार्थ और हानिकारक पेयों का त्याग करें।

छात्रों के लिए बताएं 4 यज्ञ

छात्रों के लिए बापू ने चार यज्ञ बताए – द्रव्य यज्ञ (दान), तप यज्ञ (संयम), योग यज्ञ (फल की अपेक्षा त्याग) और स्वाध्याय यज्ञ (निरंतर आत्म-अध्ययन)। उन्होंने कहा कि इन यज्ञों के माध्यम से ही विद्यार्थी “ज्ञान यज्ञ” की पूर्णता तक पहुंच सकते हैं।

संगीत के सात सुरों की व्याख्या करते हुए बापू ने “सा” को सागर, “रे” को रेती में भगवान का प्राकट्य, “ग” को गगन की दिव्यता, “ध” को धर्म, “प” को परमात्मा की स्मृति, “नि” को नीति बताया।

बापू ने चार प्रकार के लोगों का वर्णन किया – जो कर्म करते हैं पर कृपा नहीं पाते, जो बिना कर्म के कृपा पाते हैं, जो कर्म और कृपा दोनों पाते हैं, और जो न कर्म करते हैं, न कृपा पाते हैं।

कथा के अंत में भगवान राम के अवतरण की मंगलमयी कथा का वर्णन करते हुए बापू ने राम जन्म की बधाई देते हुए कथा का विराम किया। उन्होंने पुनः इस बात पर जोर दिया कि सत्य से ही अभय उत्पन्न होता है और अभय से ही साहस।



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular