कभी जवानों की शहादत और नरसंहार के लिए चर्चित बस्तर इन दिनों नक्सलियों के एनकाउंटर के चलते सुर्खियों में है। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब आए दिन कभी 20, कभी 30-35 नक्सली मारे जा रहे हैं।
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नक्सलियों की ओर से वार्ता के पांच प्रस्ताव खारिज किए जा चुके हैं। इस बड़ी सफलता का श्रेय जाता है फोर्स को। बस्तर को नक्सल मुक्त बनाने का बीड़ा उन 53 हजार जवानों के मजबूत कंधों पर है, जिन्होंने बीहड़ में घूम रहे 2 हजार नक्सलियों को घेर रखा है।
इस संघर्ष में सामने आने वाली चुनौतियों और रणनीति पर बस्तर आईजी सुंदरराज पी. से दैनिक भास्कर की खास बातचीत। वे पिछले 10 साल से नक्सल ऑपरेशन में शामिल और 6 साल से इसे लीड कर रहे हैं। पढ़िए उनसे बातचीत के अंश…
सवाल- क्या कांग्रेस की सरकार में नक्सल ऑपरेशन थम गया था, जो अब तेज हुआ है? जवाब- ऐसा नहीं है। नक्सल ऑपरेशन कभी थमा नहीं है। लगातार ऑपरेशन चल रहा है। पिछले 17-18 महीनों से ऑपरेशन में तेजी जरूर आई है। हम नए-नए कैंप खोल रहे हैं। सरकार और नक्सलियों की विचारधारा एकदम विपरीत है। हां, यह जरूर है कि दिल्ली में कई विचारधाराओं के लोग बैठे हैं, जो इसे प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
सवाल- नक्सलियों को आज भी स्थानीय लोगों का सहयोग मिल रहा है, क्या वे फोर्स के खिलाफ हैं? जवाब- स्थानीय लोगों में नक्सलियों से डर था, क्योंकि नक्सली उनकी हत्या कर देते थे। उनका ब्रेनवॉश करते थे। उनके डर-भय की वजह से फोर्स को मदद नहीं मिल पाती थी। फोर्स के जवानों को देखकर भाग जाते थे। बातचीत नहीं करते थे। लेकिन पिछले 10 सालाें में काफी बदलाव आया है। स्थानीय लोगों का सहयोग मिल रहा है। उन्हें सुविधा दी जा रही है। इंटरनेट, इलेक्ट्रिसिटी और रोड कनेक्टिविटी बढ़ाई जा रही है। अब युवा नक्सल संगठन में शामिल नहीं हो रहे, बल्कि उनसे लड़ने के लिए आगे आ रहे हैं। फोर्स में भर्ती हो रहे हैं। नक्सली अब गांवों में आकर मीटिंग नहीं कर पाते। डीआरजी और बस्तर फाइटर्स में स्थानीय युवाओं की भर्ती इस लड़ाई के लिए गेम चेंजर है।
सवाल – बासव राजू मारा जा चुका। फोर्स का उत्साह चरम पर है। आगे रणनीति क्या होगी? जवाब – नक्सली संगठनों के टॉप कैडर 15 तक सिमट गए हैं। संगठन नेतृत्वविहीन हो गया है। तेजी से खात्मे की ओर बढ़ रहा है। पिछले 17-18 महीनों में 400 से अधिक नक्सली मारे गए हैं। उनके सभी फ्रंट में परेशानी बढ़ी है। बासव राजू के बाद बाकी कैडर भी हमारे निशाने पर हैं। फोर्स के जवान ऑपरेशन को बेहतर समन्वय के साथ आगे बढ़ाएंगे। शासन के संकल्प के मुताबिक हम नक्सल मुक्त बस्तर की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
सवाल – क्या सेना की तरह हमारे पास भी आधुनिक हथियार हैं। अब नक्सली भी आधुनिक हथियार से लड़ रहे हैं? जवाब – हमारी तकनीक और संसाधनों में काफी बदलाव आया है। हमारी फोर्स आधुनिक हथियारों से लैस है। हम ड्रोन से रात के अंधेरे में भी जंगल की गतिविधियां स्कैन कर लेते हैं। आधुनिक सर्विलांस सिस्टम है। जमीन के भीतर छिपाई गई आईईडी को ढूंढने के लिए आधुनिक उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। हम अपनी रणनीति और प्लानिंग में सफल हैं।
सवाल – केंद्रीय गृहमंत्री ने नक्सल गतिविधि खत्म करने के लिए जो टारगेट दिया है, उसमें किस तरह की चुनौतियां हैं? जवाब – जो नक्सलियों की ताकत है, वही हमारी परेशानी है। वह है सड़कों पर बिछी आईईडी। आमने-सामने की लड़ाई में हमें अधिक नुकसान नहीं हो रहा है। दूसरा, वे सॉफ्ट टारगेट पर अटैक करते हैं। जैसे महिलाएं, सिविलियंस, जनप्रतिनिधि आदि। इनसे वे कोई सवाल भी नहीं पूछते। ये नक्सलियों की ताकत नहीं, कमजोरी की निशानी है। डर का वातावरण बनाने और सुर्खियों में बने रहने के लिए ऐसा करते हैं।
सवाल – नक्सलियों को ढूंढने, उनसे लड़ने में 10 साल पहले और अब के दौर में क्या चुनौतियां हैं? जवाब – नक्सलियों से आमने-सामने लड़ना कोई चुनौती नहीं है। फोर्स के लिए चुनौती जमीन के भीतर छिपाई आईईडी है। नक्सली सिविलियंस को टारगेट कर रहे हैं। मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मी, महिलाओं व युवाओं को जान से मार रहे हैं। वह हमारे लिए चुनौती है। जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा चुनौती है। नक्सली आमने-सामने नहीं लड़ते, हमेशा छिपकर मारते हैं। फोर्स उनकी ओर बढ़ती है तो वे भाग जाते हैं। हालांकि अब बड़ा बदलाव आया है। जवान उन्हें दौड़ाकर मार रहे हैं। पहले एक मुठभेड़ या घटना के बाद फोर्स वापस आती थी। अब फोर्स वहां से नक्सलियों की ओर आगे बढ़ती है। उन्हें ढूंढती है। घने जंगल, पहाड़ों की शृंखला, कठिन रास्तों में फोर्स 15-20 दिनों तक लगातार ऑपरेशन कर रही है। अबूझमाड़ में मिली सफलता इसी का नतीजा है।
सवाल – क्या स्थानीय फोर्स और पैरामिलिट्री फोर्स के बीच समन्वय की कमी है? पहले भी यह बात सामने आई है? जवाब – ऐसा नहीं है। बस्तर में जितनी भी पैरामिलिट्री फोर्स है। उनका पुलिस के साथ अच्छा समन्वय है। यहां तक कि आसपास के राज्यों की पुलिस से भी अच्छा सहयोग मिल रहा है। आपसी तालमेल और संयुक्त रूप से ऑपरेशन चला रहे हैं। स्थानीय लोग भी इसमें मदद करते हैं।
सवाल – बस्तर में नए कैंप खुल रहे हैं। टारगेट के मुताबिक ऑपरेशन खत्म हो जाएंगे। इसके बाद क्या? जवाब – हालात सुधरने के बाद भी फोर्स एकाएक नहीं हटाई जाएगी। वरना नक्सलियों को मौका मिल जाएगा। भविष्य में हर तीन-चार कैंप के बीच या हर पांच-छह किमी में एक थाना खुलेगा। बाकी फोर्स का इस्तेमाल लाइवलीहुड एक्टिविटी, पुनर्वास की गतिविधियों में किया जाएगा।
सवाल – कश्मीर और बस्तर की स्थिति को लेकर क्या मानते हैं? दोनों जगह आतंक और हिंसा हैं। उनका सामना फोर्स से हो रहा है? जवाब – कश्मीर में आतंकवाद, नार्थ-ईस्ट में उग्रवाद और छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद है। तीनों अलग-अलग हैं। कश्मीर और छत्तीसगढ़ में काफी अंतर है। नक्सली स्थानीय लोगों का ब्रेनवॉश कर, जल-जंगल और जमीन छीनने का डर दिखाकर उन्हें अपने साथ शामिल करते हैं। विकास का विरोध करते हैं और दूसरी ओर तेंदूपत्ता की लेवी वसूलते हैं। बस्तर के स्थानीय लोगों को नक्सलियों के बड़े लीडर ढाल की तरह उपयोग कर रहे हैं। उन्हें सामने रखकर हमला कर रहे हैं। शासन के खिलाफ उन्हें भड़का रहे हैं।
सवाल – एनकाउंटर पर उठने वाले सवालों पर क्या कहते हैं? हाल ही में एक मामला विधानसभा में उठा था। जवाब – कौन नक्सली है और कौन आम आदिवासी, यह तय करने के पीछे एक बड़ा सिस्टम काम करता है। किसी के पास राशन कार्ड-आधार कार्ड होना इस बात का सबूत नहीं होता कि उनका नक्सलियों से संबंध नहीं है। सिस्टम के विपरीत विचारधारा वाले इस तरह के आरोप लगाते रहते हैं। कई बार नक्सलियों के बुलाने पर ग्रामीणों का जाना आम है। ऐसा न करने पर नक्सली उन्हें मार सकते हैं। 2024 में ही 217 नक्सली मारे गए हैं। ये आंकड़े हमारे लिए नंबर गेम नहीं है। सरेंडर के रास्ते खुले हैं। गिरफ्तारियां भी होती हैं। एनकाउंटर अंतिम विकल्प होता है।
नक्सल ऑपरेशन में एक दशक
2003 बैच के आईपीएस अधिकारी सुंदरराज पी. 2019 से बस्तर में पदस्थ हैं। 6 सालों से बस्तर रेंज की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इससे पहले अविभाजित बस्तर जिला और नारायणपुर में एसपी रह चुके हैं। एसपी, डीआईजी और आईजी के तौर में 10 सालों से नक्सल ऑपरेशन में काम कर रहे हैं। हाल ही में हुए ऑपरेशन की कमान भी इनके ही हाथ थी।
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