आज विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाएगा, हर मास शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत किया जाता है. भगवान गणेश की मंगलकर्ता और विघ्नहर्ता के रूप में पूजा की जाती है और भगवान गणेश चतुर्थी तिथि के स्वामी भी है. विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणपति का पूजन-अर्चन और व्रत करना लाभदायी माना गया है, ऐसा करने से सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और जीवन में मंगल ही मंगल बना रहता है. आइए जानते हैं वैशाख मास की विनायक चतुर्थी का महत्व, पूजा विधि, पूजा मुहूर्त….
विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं. जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं, भगवान गणेश उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं. ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है. जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है. इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है. पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं.
विनायक चतुर्थी 2025 आज
पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 बजे से हो चुकी है और इसका समापन आज यानी 1 मई को सुबह 11 बजकर 23 मिनट पर होगा. उदया तिथि को मानते हुए विनायक चतुर्थी का पर्व 1 मई 2025 यानी आज मनाया जा रहा है.
विनायक चतुर्थी 2025 पूजा मुहूर्त
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल या दोपहर के समय की जाती है. दोपहर के दौरान भगवान गणेश की पूजा का मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिनों के साथ दर्शाया गया है.
विनायकी चतुर्थी व्रत पूजा विधि
विनायकी चतुर्थी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद दोपहर पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्यानुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने-चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित कर संकल्प लें. फिर षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें. इसके बाद श्र गणेश की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं. इसके साथ ही गणेश जी का प्रिय मंत्र- ‘ॐ गं गणपतयै नमः‘ बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाना चाहिए.
इसके बाद श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग श्रेष्ठ माना जाता है. इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को किया जाता है और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित कर दिया जाता है. पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. वहीं, संध्या को गणेश चतुर्थी कथा, गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा का स्तवन करें. संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर श्रीगणेश की आरती करें तथा ‘ॐ गणेशाय नमः‘ मंत्र की माला जपने से मनोरथ पूरे होते हैं.
गणेशजी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥