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अंतरिक्ष में पालक ‎उगाने की तैयारी: इसरो का स्पैडेक्स कोशिकाएं लेकर जाएगा, 30 दिसंबर को लॉन्चिंग; स्पेस डॉकिंग तकनीक वाला चौथा देश होगा भारत


श्रीहरिकोटा42 मिनट पहले

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21 दिसंबर को PSLV-C60 रॉकेट लॉन्चिंग पैड पर स्थापित किया गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2024 का आखिरी मिशन 30 दिसंबर को लॉन्च करने वाला है। इसे स्पैडेक्स नाम दिया गया है। स्पैडेक्स यानी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट। यह मिशन रात 9:58 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होगा। स्पैडेक्स मिशन का मकसद अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट को डॉक और अनडॉक करने वाली तकनीक डेवलप करना और उसका प्रदर्शन करना है।

दरअसल, जब कोई स्पेस मिशन लॉन्च किया जाता है तो उसके मकसद हासिल करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने होते हैं। इसके लिए अंतरिक्ष में डॉकिंग की जरूरत पड़ती है। भारत के लिए यह तकनीक मून मिशन, चंद्रमा से सैंपल लाने और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए बहुत अहम है।

स्पैडेक्स मिशन के जरिए भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक रखने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन स्पेस डॉकिंग में सफलता हासिल कर चुके हैं।

21 दिसंबर को PSLV-C60 रॉकेट लॉन्चिंग पैड पर स्थापित किया गया।

POEM-4 मॉड्यूल करेगा पालक की कोशिकाओं की निगरानी

PSLV-C60 रॉकेट स्पैडेक्स मिशन के जरिए अपने साथ 200-200 किलो के 2 स्पेसक्राफ्ट लेकर जाएगा। इन्हें चेजर और टारगेट नाम दिया गया है। इनसे रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़े 24 पेलोड भी भेजे जाएंगे। इन पेलोड्स को पृथ्वी से 700 किमी की ऊंचाई पर डॉक किया जाएगा। इनमें से 14 पेलोड इसरो के और बाकी 10 स्टार्टअप और एकेडमी के हैं।

इनमें से एक है- एमिटी प्लांट एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल इन स्पेस (APEMS) पेलोड, जिसे एमिटी यूनिवर्सिटी ने बनाया है। यह रिसर्च करेगा कि पौधे की कोशिकाएं अंतरिक्ष में कैसे बढ़ती हैं।

इस पेलोड को एमिटी यूनिवर्सिटी मुंबई ने तैयार किया है।

सफल हुए तो मंगल मिशन पर अंतरिक्ष में ही पौधे उगा सकेंगे वैज्ञानिक

इस रिसर्च के तहत अंतरिक्ष और पृथ्वी पर एक ही समय में प्रयोग किया जाएगा। पालक की कोशिकाओं को LED लाइट्स और जेल के जरिए सूर्य का प्रकाश और पोषक तत्व जैसी अहम चीजें दी जाएंगी। एक कैमरा पौधे की कोशिका के रंग और वृद्धि को रिकॉर्ड करेगा। अगर कोशिका का रंग बदलता है तो प्रयोग असफल हो जाएगा।

वहीं, अगर इसमें सफलता मिलती है तो अंतरिक्ष और पृथ्वी पर कृषि तकनीकों को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। साथ ही भारतीय वैज्ञानिकों की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं, जैसे मंगल ग्रह मिशन के दौरान पौधे उगाने की संभावना और मजबूत होगी।

क्या है स्पेस डॉकिंग, जिसकी तकनीक रूस-अमेरिका और चीन के पास है

स्पेस डॉकिंग का मतलब है अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ना या कनेक्ट करना। यह प्रक्रिया ऐसी होती है जैसे आसमान में दो कारों को आपस में जोड़ना हो। स्पैडेक्स मिशन में पहले स्पेसक्राफ्ट चेजर को दूसरे यान टारगेट के पास ले जाने और उससे जोड़ने का प्रदर्शन किया जाएगा। यह काम बहुत बारीकी से किया जाएगा, क्योंकि अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता और सब बहुत तेजी से हिलता है।

डॉकिंग के बाद ये यान मिलकर काम कर सकते हैं, जैसे ईंधन भरना, सामान भेजना-लेना या मरम्मत करना। इसके अलावा अंतरिक्ष स्टेशन बनाना, लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान कई बार रॉकेट अलग-अलग हिस्सों में भेजे जाते हैं, जिन्हें बाद में जोड़ना पड़ता है। ​​​​​​​अंतरिक्ष यानों को ईंधन या उपकरण देने के लिए और अगर कोई स्पेसक्राफ्ट खराब हो जाए, तो उसे बचाने के लिए दूसरे यान से जुड़ना पड़ सकता है।

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