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Antim Sanskar Rituals : हर परंपरा के पीछे कोई-न-कोई गहरा अर्थ छिपा होता है. अर्थी के चारों ओर हल्दी से रेखा खींचना सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोच-समझकर गढ़ी गई पर…और पढ़ें
अंतिम संस्कार से जुड़ी परम्परा
हाइलाइट्स
- हल्दी की रेखा आत्मा की ऊर्जा सीमा बनती है
- हल्दी नकारात्मक शक्तियों से बचाव करती है
- हल्दी की रेखा संक्रमण को फैलने से रोकती है
Antim Sanskar Rituals : मृत्यु वह सच्चाई है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता. जब किसी इंसान की आखिरी सांसें थमती हैं, तो उसके बाद शुरू होती है उसकी अंतिम यात्रा. इस यात्रा के दौरान कुछ खास रिवाज़ निभाए जाते हैं. इन्हीं में से एक है अर्थी के चारों तरफ हल्दी से रेखा खींचना. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या वजह है? यह मृतक की आत्मा की शांति, जीवितों की सुरक्षा और वातावरण की पवित्रता इन सभी की रक्षा करती है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
आत्मा और ऊर्जा की सुरक्षा
जब किसी व्यक्ति का शरीर छूटता है, तो उसकी आत्मा कुछ समय तक आसपास ही रहती है. वो अचानक हुए परिवर्तन से उलझन में होती है और स्थिरता ढूंढती है. हल्दी से खींची गई यह रेखा आत्मा के लिए एक ऊर्जा सीमा की तरह काम करती है. यह उसे उग्र या अस्थिर होने से रोकती है और उसे शांत बनाए रखती है.
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नकारात्मक शक्तियों से बचाव
भारत की प्राचीन परंपराओं में हल्दी को न केवल एक पवित्र तत्व माना गया है, बल्कि इसे शुद्धता और शुभता का प्रतीक भी समझा गया है. हल्दी में ऐसे गुण होते हैं जो नकारात्मक ऊर्जा या असमर्थ आत्माओं को दूर रखते हैं. जब अर्थी के चारों ओर रेखा खींची जाती है, तो वह एक तरह की रक्षा दीवार बन जाती है जो बुरी शक्तियों को पास नहीं आने देती.
वैज्ञानिक नजरिए से समझें
सिर्फ धार्मिक ही नहीं, इस परंपरा का वैज्ञानिक पहलू भी है. शरीर के मरने के बाद उसमें बैक्टीरिया और फफूंदी पनपने लगते हैं, जिससे पास खड़े लोगों को बीमारी का खतरा हो सकता है. हल्दी में प्राकृतिक रूप से एंटीबैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं. ऐसे में जब हल्दी की रेखा खींची जाती है, तो वह एक जैविक अवरोध बनती है जो संक्रमण को फैलने से रोकती है.
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घर के बाहर अर्थी रखने की परंपरा
इसके साथ ही आपने यह भी देखा होगा कि मृत शरीर को घर के अंदर नहीं रखा जाता, बल्कि किसी खुले स्थान या आंगन में ही रखा जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि घर को देवस्थान जैसा माना गया है. मृत्यु को अशुभ माना जाता है और यह माना जाता है कि आत्मा को घर की दीवारों से बाहर निकलने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. यही वजह है कि अंतिम यात्रा की शुरुआत खुले स्थान से की जाती है.