सिरसा के निजी होटल में आयोजित मीटिंग के दौरान जानकारी देते हुए आईएमए के सदस्य।
प्रदेशभर में सरकार की ओर से आयुष्मान योजना को लेकर काफी बदलाव कर दिए गए हैं। इस योजना का दायरा कम कर दिया गया और इलाज के बाद पैनल के तहत पैसा या बजट भी समय नहीं मिलता है। आयुष्मान के तहत किए गए इलाज का पैसा 45 दिन में भुगतान करता होता है, लेकिन सरकार
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ऐसे में इस योजना का सिरसा के डॉक्टरों में विरोध है। उनकी मांग है कि सरकार द्वारा इलाज का खर्च व बजट समय पर जारी किया जाए, ताकि मरीजों को भी इलाज मिलने में दिक्कत न हो। कारण है कि अस्पताल संचालकों को इलाज का खर्च समय पर न मिलने आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह बात इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) सिरसा के सदस्य डॉक्टरों ने मंगलवार शाम करीब सवा छह बजे सिरसा के निजी होटल में आयोजित मीटिंग के दौरान कही।
इस कारण मरीजों और निजी अस्पतालों के बीच असमंजस की स्थिति बन गई है। आईएमए का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार की ओर से लागू की गई आयुष्मान योजना अच्छी है। आमजन में जागरुकता का अभाव और समय-समय पर हो रहे नियमों में बदलाव के कारण डॉक्टरों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ऐसे में अस्पतालों में होने वाली घटनाओं के कारण डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है।
इलाज के बाद मरीजों की ओर से भुगतान में आनाकानी और सरकार की ओर से बिल पास करते समय अनावश्यक कटौती के कारण समस्याएं बढ़ती है। इस दौरान आईएमए के प्रधान डॉ. गौरव मेहता, डॉ. जीके अग्रवाल, डॉ. आशीष अरोड़ा, डॉ. अमित वासिल, डॉ. एमएम तलवाड़, डॉ. शैलेश तौमर, डॉ. वीपी गोयल, डॉ. विशाल गर्ग सहित अन्य डॉक्टर ने कहा कि सरकार इस योजना को बेहतर बनाने का प्रयास करे, ताकि आमजन का विश्वास न टूटे।
सरकार ने चूपचाप योजना में किए बदलावा : डॉ. तलवाड़
आईएमए सदस्या एवं तलवाड़ नर्सिंग होम सिरसा से डा. एमएम तलवाड़ ने बताया कि सरकार की ओर से आयुष्मान योजना लागू की गई है, ताकि आमजन को इलाज उपलब्ध हो सके। योजना में सरकार की ओर से किए जा रहे गुपचुप बदलाव दिक्कत पैदा कर रहे हैं। सरकार ने आयुष्मान योजना का दायरा कम कर दिया है, लेकिन इसकी जानकारी आमजन को नहीं है।
ऐसे में इलाज के दौरान विवाद बढ़ते हैं। दूसरा मुख्य कारण ये है कि जब इलाज होता है तो कई बार मरीज बताता नहीं, जब छुट्टी करते हैं तो पता चलता है कि आयुष्मान का लाभार्थी था। इसके अलावा जब इलाज किया जा रहा होता है। तब सरकार की ओर से कोई ऑब्जेक्शन नहीं आता, लेकिन जब बिल बनाकर भेजते हैं तो उसमें कटौती कर दी जाती है। ऐसे में अस्पताल को आर्थिक नुकसान होता है। सरकार की ओर से भुगतान भी देरी किया जाता है।