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आज का एक्सप्लेनर: गोली मारने से पहले आतंकियों ने टूरिस्टों से कलमा क्यों पढ़वाया, क्या ये कश्मीर से हिंदुओं का पलायन पार्ट-2 साबित होगा


मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि सेना की वर्दी और नकाब पहने आतंकियों ने टूरिस्टों से नाम पूछे, पहचान पत्र चेक किए, कलमा पढ़वाया, पैंट तक उतरवाई… और जो मुसलमान नहीं थे, उन्हें गोली मार दी।

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जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुआ हमला क्या घाटी से हिंदुओं को डराकर भगाने की एक बड़ी साजिश है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: क्या आतंकियों ने धर्म पूछकर टूरिस्टों को गाली मारी?

जवाबः 22 अप्रैल की दोपहर करीब 1.30 बजे कश्मीर घाटी के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं हैं…

  • हमले से जुड़े एक वायरल वीडियो में एक महिला ने रोते हुए कहा, ‘हम भेलपूरी खा रहे थे, तभी साइड से दो लोग आए। उनमें से एक ने कहा कि ये मुसलमान नहीं लगता है। इसे गोली मार दो और उन्होंने मेरे पति को गोली मार दी।’
  • न्यूज नेटवर्क CNN-News18 ने सूत्रों के हवाले से लिखा, ‘आतंकियों ने लोगों से कलमा पढ़ने कहा। ताकि वे गोली चलाने से पहले ये जान सकें कि कौन किस धर्म का है। आतंकियों ने टूरिस्टों की पैंट उतरवाई और ID कार्ड भी चेक किया।’
  • न्यूज एजेंसी PTI को एक पीड़ित महिला ने बताया, ‘मेरे पति को सिर पर गोली मारी गई। उन्हें मुसलमान न होने की वजह से गोली मारी गई।’
  • सूत्रों के मुताबिक, ज्यादातर मारे गए लोग पुरुष हैं। टूरिस्टों को शुरू में पता ही नहीं चला कि क्या हो रहा है, क्योंकि हमलावर सेना की वर्दी पहने हुए थे और मास्क लगाए हुए थे।
  • महाराष्ट्र के पुणे की आसावरी पहलगाम में घूमने आई थीं। न्यूज चैनल आजतक को उन्होंने बताया, ‘हमलावरों ने सिर्फ पुरुषों को निशाना बनाया। खासतौर पर उन्होंने हिंदुओं को जबरन कलमा पढ़वाने की कोशिश की। जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी। मेरे सामने मेरे पापा को तीन गोलियां मारीं।’

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद आपबीती सुनाती पीड़िता।

सवाल-2: कश्मीर में करीब 700 साल पहले तलवार के जोर से कैसे बढ़ा था इस्लाम का वर्चस्व?

जवाबः 1338 ईस्वी में कश्मीर में पहले मुस्लिम वंश (शाहमीर वंश) की स्थापना हुई। इस वंश ने 220 साल तक शासन किया। शाहमीर वंश का सबसे विवादित शासक सुल्तान सिकंदर था। वो 1389 में गद्दी पर बैठा।

कश्मीरी विद्वान प्रेमनाथ बजाज उसके शासन को कश्मीर के इतिहास का सबसे काला धब्बा मानते हैं। सिकंदर के शासन में प्रमुख ईरानी सूफी संत सैय्यद अली हमदानी के बेटे सैय्यद मुहम्मद हमदानी कश्मीर आए। सुल्तान ने उनके लिए खानकाह का निर्माण कराया।

इतिहासकार जोनराज लिखते हैं कि सुल्तान सिकंदर धर्म के नशे में चूर था। उसने सुहाभट्ट नाम के ब्राह्मण को अपना मुख्य सलाहकार बनाया। सूफी संत सैय्यद हमदानी ने सुहाभट्ट को मुस्लिम बनाकर मलिक सैफुद्दीन नाम दिया और उसकी बेटी से निकाह कर लिया।

सुहाभट्ट उर्फ सैफुद्दीन के सुझाव पर सुल्तान ने कश्मीर के सभी ब्राह्मणों और विद्वानों को मुसलमान बनाने का आदेश दिया। इस्लाम न अपनाने वालों से घाटी छोड़कर जाने को कहा गया। उसके शासन में मंदिर तोड़ने का अभियान चला। सोने-चांदी की मूर्तियां शाही टकसाल में गलाकर सिक्कों में बदल दी गईं।

1420 ईस्वी में सुल्तान सिकंदर का बेटा जैनुल आबदीन गद्दी पर बैठा। वो अपने पिता की धार्मिक कट्टरता से बिल्कुल उलट था। उसने मंदिरों को फिर से बनवाया। कश्मीर से निकाले गए ब्राह्मणों की वापसी की कोशिश की। जजिया कर हटा दिया। गोहत्या पर रोक लगा दी।

जैनुल आबदीन कश्मीरी, फारसी, संस्कृत और अरबी का विद्वान था। उसके आदेश पर महाभारत और कल्हण की राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद किया गया। शिव भट्ट उसके निजी चिकित्सक और सलाहकार थे। उसने कई हिंदुओं और बौद्धों को अपने दरबार में जगह दी।

सवाल-3: कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार कैसे हुआ और उन्हें कैसे खदेड़ा गया?

जवाबः कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नफरत 1989 के आखिर में जहरीली हो गई थी। उन्हें लाउडस्पीकर पर चेतावनी देकर कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाता था।

अशोक कुमार पांडे अपनी किताब ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ में लिखते हैं कि उस समय कश्मीरी पंडितों और अखबारों में घर छोड़ने की जो धमकियां दी गई थीं वो हिजबुल मुजाहिदीन के लेटर पैड पर दी गई थीं। JKLF और हिजबुल हिंसा की अगुआई कर रहे थे। उनके साथ करीब दो दर्जन छोटे-मझोले इस्लामिक संगठन पंडितों की जान के दुश्मन बने हुए थे।

हथियारबंद लोगों ने कैसे कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने पर मजबूर किया। निर्मम हत्याओं की कुछ बानगी…

1. पंडित मर्द भाग जाएं, उनकी औरतें रहें

वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर की त्रासदी झेलने वाले राहुल पंडिता अपनी किताब ‘अवर मून हैज ब्लड क्लॉट’ में लिखते हैं कि 19 जनवरी 1990 की रात मैं सो रहा था। मस्जिद के लाउडस्पीकर से लगातार सीटी बजने की आवाज आ रही थी। मेरे मामा का परिवार हमारे घर आ चुका था।

मामा और पिताजी कुछ बात कर रहे थे। तभी बाहर जोर से आवाज आई ‘नारा ए तकबीर, अल्लाह हु अकबर’। मैंने ये नारा कुछ दिन पहले दूरदर्शन पर आए धारावाहिक ‘तमस’ में सुना था। फिर आवाज आई, हम क्या चाहते…आजादी, ए जालिमो, ए काफिरो, कश्मीर हमारा छोड़ दो। फिर कुछ देर में नारेबाजी थम गई।

जब मेरी मां ने इसे सुना तो वो कांपने लगीं। उन्होंने कहा कि भीड़ चाहती है कि कश्मीर को पाकिस्तान में बदल दिया जाए। उसमें पंडित मर्द न हों, लेकिन उनकी औरतें हों।

मां रसोई की ओर भागीं और लंबा चाकू ले आईं। उन्होंने कॉलेज जाने वाली मेरी बहन की तरफ देखकर कहा अगर वे (आतंकी) आए तो मैं इसे मार दूंगी। इसके बाद अपनी जान ले लूंगी।

‘अवर मून हैज ब्लड क्लॉट’ किताब के साथ लेखक राहुल पंडिता और फिल्ममेकर विधु विनोद चोपड़ा।

2. मस्जिद की लिस्ट में नाम आया, अगली सुबह हत्या

जम्मू-कश्मीर के दो बार राज्यपाल रहे जगमोहन अपनी किताब ‘माय फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर’ में लिखते हैं, मार्च 1990। श्रीनगर के छोटा बाजार इलाके में 26 साल के बाल कृष्ण उर्फ बीके गंजू को चेतावनी दी जा चुकी थी कि वे कश्मीर छोड़ दें। उनके पड़ोसी ने बताया कि मस्जिद की लिस्ट में उनका नाम सबसे ऊपर था। अगले ही दिन गंजू और उसकी पत्नी ने श्रीनगर छोड़ने का फैसला किया।

वो निकल ही रहे थे कि दरवाजे के बाहर से ही जोर से किसी ने कहा ‘गंजू साहब किधर है? उससे जरूरी काम है।’ पत्नी ने भीतर से कहा कि वो काम पर गए हैं। तब बाहर से आवाज आई अरे इतनी सुबह कैसे जा सकते हैं? मोहतरमा आप परेशानी समझिए हमें गंजू साहब से जरूरी काम है।

दरवाजा नहीं खुला तो अजनबी खिड़की तोड़कर कर अंदर आने लगे। गंजू छत पर रखे चावल के ड्रम में छिप गए। आतंकियों ने पूरे घर में गंजू को खोजा। आहट मिलते ही उन्होंने गोली चला दी। बदहवास गंजू की पत्नी वहां पहुंची तो चावल से सनी खून की धार बह रही थी।

3. बाप-बेटों को मारकर लटका दिया, चमड़ी तक उधेड़ दी

जम्मू-कश्मीर के दो बार राज्यपाल रहे जगमोहन अपनी किताब ‘माय फ्रोजन टर्बुलेंस इन कश्मीर’ में सर्वानंद कौल प्रेमी के बारे में लिखते हैं। सरकारी स्कूल के प्राध्यापक रहे सर्वानंद कौल केवल टीचर ही नहीं, वे कवि और लेखक भी थे। वे अनंतनाग जिले के शालि गांव में परिवार सहित रह रहे थे।

दशतगर्दों की धमकी से पंडित भाग रहे थे, लेकिन प्रेमी ने तय किया वो कहीं नहीं जाएंगे। 30 अप्रैल 1990 को एक दिन तीन हथियारबंद लोगों ने दस्तक दी। परिवार के सभी लोगों को एक कमरे में इकट्‌ठा किया। प्रेमी को साथ ले जाने लगे तो कुछ मुस्लिम पड़ोसियों ने विरोध किया। बंदूक की नोंक के आगे उनका विरोध नहीं चला। प्रेमी के साथ उनका बेटा भी चल दिया।

दो दिन हो गए थे। न प्रेमी लौटे ने उनका बेटा। दोनों की लाश एक जगह लटकी हुई मिलीं। लाशें देखकर पता चल रहा था कि दोनों के हाथ-पैर तोड़ दिए गए थे। बाल नोंचे गए थे। शरीर की चमड़ी जगह-जगह से उधेड़ दी गई थी। शरीर में जगह-जगह जलाने के निशान थे।

सर्वानंद कौल प्रेमी अपने परिवार के साथ।

सवाल-4: 1990 से अब तक आतंकवाद के 4 फेज कौन-से हैं?

जवाबः घाटी में आतंकवाद बढ़ने का सिलसिला…

सवाल-5: 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों ने जिस तरह से हत्याएं कीं, क्या ये हिंदुओं का पलायन पार्ट-2 साबित होगा?

जवाबः कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद अब वहां हिंदू आबादी न के बराबर बची है। अगस्त 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटा दिया था। 10 साल बाद 2024 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। नेशनल कॉन्फ्रेंस की अब्दुल्ला सरकार बनी। हालात सामान्य होने लगे थे।

इस दौरान कश्मीर में टूरिज्म बढ़ा है। दूसरे राज्यों से लोग काम के सिलसिले में भी कश्मीर आने लगे।

जम्मू-कश्मीर पुलिस के डीजीपी रहे एसपी वैद कहते हैं,

कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद हालात जिस तरह से सामान्य हुए हैं, उसमें खलल डालने के लिए ये हमला किया गया है। टूरिस्टों पर हमला कर लोकल लोगों का बिजनेस ठप करने की कोशिश की गई है।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं,

पूरी वारदात भारत को नीचा दिखाने के लिए और हिंदू-मुसलमानों के बीच दरार डालने के लिए की गई है। आतंकियों ने नाम पूछकर लोगों को मारा है। ये भी काफी कुछ कहता है।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद से कश्मीर जाने वाले हिंदू सैलानियों और कामगारों की संख्या में गिरावट आ सकती है। आतंकियों ने हिंदुओं को चुन-चुनकर मारा है। यानी आतंकियों का मैसेज साफ है कि वो कश्मीर में हिंदुओं को नहीं देखना चाहते। चाहे वो टूरिस्ट ही क्यों न हों।

घाटी से आने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नंवबर 2024 में कहा था, ‘कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अब कश्मीर नहीं है। कश्मीर जिस मिक्स कल्चर के लिए जाना जाता है, वो कश्मीरी पंडित समुदाय के होने के कारण ही संभव हो पाई। मुझे ये कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि एक दिन जरूर आएगा जब कश्मीर का बहुसंख्यक समुदाय पंडितों के पलायन पर अफसोस जताएगा।’

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