इंदौर के सरकारी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में ब्लड कैंसर से ग्रस्त एक 22 वर्षीय स्टूडेंट का कार टी सेल थेरेपी से सफल इलाज हुआ है। खास बात यह कि प्रदेश में पहली बार किसी सरकारी हॉस्पिटल में कार टी सेल थेरेपी से इलाज किया गया है। युवक करीब 5 साल से ब्ल
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इस महंगी थेरेपी पर 1 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्चा आता है। सरकारी हॉस्पिटल में एडमिट होने के चलते युवक को शासन की विभिन्न योजनाओं और एनजीओ से 70 लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली। इसके अलावा खुद परिवार ने भी 8 लाख रुपए खर्च किए।
युवक का नाम विशाल रघुवंशी निवासी गुना है। पूर्व में परिवार ने अलग-अलग हॉस्पिटल में उसका इलाज कराया। 2023 में इसी हॉस्पिटल में उसका बोनमेरो ट्रांसप्लांट हुआ। लेकिन इसके बाद भी बीमारी ठीक नहीं हुई। 26 जनवरी 2025 को उसे फिर से सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में क्लिनिकल हेमेटोलॉजी, ट्रांसफ्यूजन मेडिसन एवं बोन मेरो ट्रांसप्लांट विभाग की देखरेख में एडमिट किया गया।
डीन डॉ अरविंद घनघोरिया ने बताया कि डॉक्टरों की टीम ने ‘बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया से पीड़ित इस मरीज पर कार टी थेरेपी का उपयोग किया। कार टी-सेल थेरेपी की इस मॉडर्न चिकित्सा प्रक्रिया को आईआईटी मुंबई और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ने डेवलप किया है।
मरीज को नई जिंदगी देने वाली डॉक्टरों की टीम।
जानिए क्या है कार टी-सेल थेरेपी
- कार-टी सेल थेरेपी में सफेद रक्त कोशिकाओं को हटाने के लिए मरीज पर एफेरेसिस प्रोसेस की जाती है।
- एक सामान्य रोगी के खून में दो प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं यानी बी और टी कोशिकाएं होती हैं।
- इनमें टी कोशिकाओं को सफेद रक्त कोशिकाओं से अलग किया जाता है।
- इसके बाद वायरल वैक्टर की मदद से उन्हें आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है।
- इन आनुवंशिक रूप से संशोधित कार-टी कोशिकाओं को रोगी के शरीर में पहुंचाया जाता है।
- काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर, कैंसर कोशिकाओं की सतह पर विशिष्ट प्रोटीन की पहचान कर उन्हें नष्ट कर देता है।
- इस तरह कार-टी कोशिकाएं मरीज के शरीर से कैंसर को खत्म कर देती हैं।
प्रदेश में पहले यह इलाज नहीं था। इंदौर के सरकारी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में यह सुविधा शुरू हो गई है। इस बीमारी के विभिन्न कारण होते हैं। इसमें मरीज का समय पर इलाज जरूरी है। कार-टी सेल थेरेपी के बाद 50% मरीज स्वस्थ हो सकते हैं।
इलाज के दौरान पीएससी की ऑन लाइन पढ़ाई भी विशाल ने बताया कि पांच साल पहले कमजोरी, चक्कर आने और बुखार आने की शिकायत थी। फिर अलग-अलग हॉस्पिटल में दिखाने के बाद यहां दिखाया और इलाज शुरू किया। वह पीएससी की तैयारी कर रहा है। उसने बताया कि चार माह तक उसने हॉस्पिटल में ही इसकी ऑन लाइन पढ़ाई जारी रखी। अब हालत बिल्कुल अच्छी है। अभी डॉक्टरों के फॉलोअप में है।
डॉ. अक्षय लाहोटी (हेड, क्लिनिकल हेमेटोलॉजी विभाग) ने बताया कि मरीज को एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया हुआ था। कीमोथेरेपी के बाद ट्रांसप्लांट किया था, लेकिन बीमारी वापस आ गई थी। ऐसे में मरीज की बचने की संभावना कम हो जाती है। इस पर कार-टी सेल थेरेपी करने का फैसला लिया। इसके नतीजे अच्छे रहे और आज मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया। थेरेपी में डॉ. अशोक यादव, डॉ. सुमित शुक्ला, डॉ. राहुल भार्गव, डा. सुधीर कटारिया, डॉ. प्रीति मालपानी, डॉ. प्राची चौधरी आदि का सहयोग रहा है।