ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और झारखंड पीपुल्स पार्टी के संस्थापक रहे अविभाजित बिहार के इकलौते विधायक जिसके सीने में झारखंड अलग राज्य का ऐसा जुनून सवार था कि एक झटके में विधायकी पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद अलग राज्य के चलाए जा रहे अभियान म
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हम बात कर रहे हैं अविभाजित बिहार के तत्कालीन आजसू विधायक सूर्य सिंह बेसरा की। झारखंड आंदोलन को लेकर अपनी भूमिका को याद करते हुए सूर्य सिंह बेसरा कहते हैं कि मैंने झारखंड स्वशासी परिषद के प्रस्ताव को ठुकराते हुए तत्कालीन अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ एक तरह से जंग का ऐलान कर दिया।
साल 1991 में लालू प्रसाद के इस ऐलान पर भी कि मेरी लाश पर झारखंड बनेगा। मैंने तत्काल अपनी विधायकी कुर्बान कर दी। आज के एपिसोड में जानिए झारखंड आंदोलन के संदर्भ में बेसरा के राजनीतिक जीवन संघर्ष का संस्मरण, उनकी जुबानी में…
दरअसल, झारखंड आंदोलन को धार देने के लिए एक सशक्त युवा संगठन की जरूरत थी। इसको ध्यान में रखकर ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) की स्थापना मैंने कुछ क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर की। उस समय आजसू का आंदोलन और उसकी आर्थिक नाकेबंदी ऐसी होती थी कि सड़क पर परिंदा भी पार नहीं कर सकता था। असल में उन दिनों 1979 से 1985 तक पूर्वोत्तर राज्यों में छात्रों का उग्र आंदोलन चल रहा था। ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) का हिंसक आंदोलन असम समेत देश और दुनिया के अखबारों की सुर्खियों बन रही थी। पूर्वोत्तर राज्यों के छात्रों के हिंसक आंदोलन से प्रेरित होकर ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) की तर्ज पर मैंने 1989 में 72 घंटे के झारखंड बंद का ऐलान किया। परिणाम स्वरुप केंद्र सरकार को झारखंड पर बातचीत के लिए पहली बार बाध्य किया गया। आगे चलकर झारखंड राज्य निर्माण में यह कदम निर्णायक साबित हुआ। आजसू की ओर से चलाए जा रहे उग्र आंदोलन ने झारखंड आंदोलन की दिशा ही बदल दी। यहीं से झारखंड आंदोलन संगठित तौर पर आगे की राह तय करने लगा। आजसू के गठन को लेकर याद करते बेसरा बताते हैं कि 1979 में जमशेदपुर स्थित बारी मैदान में छोटनागपुर संथाल परगना युवा छात्र संघर्ष मोर्चा के बैनर तले एक विशाल जनसभा आयोजित की गई थी। इसमें पहली बार मेरी मुलाकात झामुमो के संस्थापकों में से एक शैलेंद्र महतो से हुई थी। उसी दिन मैं उनके साथ घोड़ाबांधा आया, जहां शैलेंद्र महतो ने ही मुझे झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल कराया।
इसके बाद 1980 में शैलेंद्र महतो और मेरे नेतृत्व में मुसाबनी में पहली बार दिशोम गुरु शिबू सोरेन की ऐतिहासिक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। 1983 में झामुमो का पहला महाधिवेशन धनबाद जिले के सरायढेला में हुआ, जहां मुझे पार्टी की केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में शामिल किया गया। झामुमो का द्वितीय महाधिवेशन 27-28 अप्रैल 1986 को रांची स्थित टाउन हॉल में हुआ था, जहां मैंने पार्टी के छात्र संगठन का गठन करने का प्रस्ताव रखा, जो सर्वसम्मति से पारित हो गया।
आजसू की नींव रखी ताकि आंदोलन को उग्र एवं धारधार बनाया जा सके
बेसरा बताते हैं कि बात 21 जून 1986 की है। डॉक्टर पशुपति प्रसाद महतो के प्रस्ताव पर उड़ीसा (ओडिशा) राज्य के बारीपदा स्थित चित्रड़ा जाने का कार्यक्रम बना। हम लोग पार्टी के कार्यक्रम में जमशेदपुर स्थित सोनारी में उपस्थित थे। यहां से आस्तिक महतो की जीप में सवार होकर डा. पशुपति प्रसाद महतो, झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष निर्मल महतो, केंद्रीय सचिव शैलेंद्र महतो, मोहन कर्मकार और मैं सुबह-सुबह जमशेदपुर से बारीपदा के लिए रवाना हुए। गाड़ी में सफर करते-करते मैंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के छात्र संगठन के नामकरण को लेकर प्रस्ताव रखा। इस विषय पर करीब तीन घंटे तक बहस चली। मैंने संगठन के स्वरूप का प्रारूप पहले से तैयार करके रखा था। मैंने उसी को प्रस्तुत करते हुए ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का प्रस्ताव रखा। शैलेंद्र महतो ने झारखंड छात्र मोर्चा का प्रस्ताव दिया। इन दो नामों को लेकर काफी तर्क-वितर्क हुआ। अंतत: डॉक्टर पशुपति प्रसाद महतो और निर्मल महतो ने आजसू के नाम पर स्वीकृति प्रदान कर दी। अगले दिन 22 जून को सुबह करीब 10 बजे सोनारी स्थित झामुमो कार्यालय में एक आपातकालीन बैठक बुलाई गई, जिसमें झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष निर्मल महतो, केंद्रीय सचिव शैलेंद्र महतो, डॉक्टर पशुपति प्रसाद महतो, आस्तिक महतो, पत्रकार केदार महतो, सुनील बरन बनर्जी (टेलीग्राफ), एसएन सिंह (इंडियन नेशन), इफ्तेखार हुसैन (उदितवाणी) की उपस्थिति में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के नामकरण का प्रारूप प्रस्तुत किया गया, जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस प्रकार झारखंड के इतिहास में 22 जून 1986 को ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठन हो गया।
सूर्य सिंह बेसरा
अनकही