उज्जैन में संतों ने उग्र आंदोलन की चेतावनी दी।
प्रयागराज कुंभ के बाद अब 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होगा। मात्र ढाई वर्ष शेष रहने के कारण तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन उज्जैन के संतों की सबसे बड़ी चिंता शिप्रा नदी में गिरने वाले नाले हैं। शुक्रवार सुबह एक दर्जन से अधिक साधु-संतों ने
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नालों से प्रदूषित हो रही शिप्रा
निरीक्षण के दौरान संतों ने देखा कि कई स्थानों पर गंदे नालों का पानी सीधे शिप्रा नदी में मिल रहा है। इस पर नाराज संतों ने प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि जल्द ही नालों को बंद नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।
संतों ने किया नालों का निरीक्षण
स्थानीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत डॉ. रामेश्वर दास महाराज, सत्यानंद जी महाराज, महानिर्वाणी अखाड़े के महंत मुकुंद पुरी महाराज, रामानुजकोट पीठाधीश्वर रंगनाथाचार्य जी महाराज, देव गिरी महाराज, सेवा गिरी महाराज, दिग्विजय दास जी महाराज, महामंत्री रामेश्वर गिरी महाराज, काशी दास महाराज समेत कई संतों ने शिप्रा के विभिन्न क्षेत्रों का निरीक्षण किया।
उन्होंने कवेलू कारखाना, मित्तल होटल, इम्पीरियल होटल, लालपुल, दुर्गादास की छत्री सहित अन्य स्थानों पर नालों का पानी शिप्रा में मिलते देखा और प्रशासन से तत्काल प्रभाव से इन्हें बंद करने की मांग की।
जल्द बंद करें नाले, वरना आंदोलन
महंत रामेश्वर दास महाराज ने कहा कि संतों ने स्वयं निरीक्षण कर देखा कि कई होटल और फैक्ट्रियों का पानी सीधे शिप्रा में जा रहा है। 2017 से लेकर अब तक प्रशासन इसे रोकने में असफल रहा है। कान्ह डायवर्शन से कुछ हद तक गंदे पानी को रोका गया है, लेकिन शहर के नालों से शिप्रा में मिल रही गंदगी पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत सत्यानंद ने भी कहा कि 2028 का सिंहस्थ कुंभ एक विश्वस्तरीय आयोजन होगा, लेकिन यदि नाले ऐसे ही मिलते रहे तो श्रद्धालु शुद्ध जल में स्नान कैसे करेंगे? प्रशासन को जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान करना चाहिए, अन्यथा संत समाज उग्र आंदोलन करेगा।