मी-लॉर्ड कब आएंगे… डेढ़ साल से मुआवजे की लड़ाई पड़ी है ठप
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प्रदेश में एक कार्यालय ऐसा है जहां पिछले डेढ़ साल से हजारों लोग न्यायाधीश का इंतजार कर रहे हैं। न्यायाधीश न होने की वजह से कोई मामले भी दर्ज नहीं किए जा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण की। इस प्राधिकरण को 2017 में रमन सरकार ने बनाया। जिसका काम है कि प्रदेश में सरकारी काम के लिए जिनकी जमीन अधिग्रहित की जाती है, अगर वे मुआवजे से सतुंष्ट नहीं है तो यहां अपील करें।
इस अपीलीय ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी जो निर्णय देते हैं वह सरकार भी मानने के लिए बाध्य है। लेकिन 28 दिसंबर 2023 में गोविंद मिश्रा के रिटायर होने के बाद से यहां पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति ही नहीं हुई है। जिसकी वजह से 557 मामले की सुनवाई ही नहीं हो पा रही है। इन डेढ़ साल के दौरान 220 नए मामले भी आए हैं, लेकिन उन्हें रजिस्टर ही नहीं किया गया।
इस असर यह है कि जिनकी जमीन विकास कार्य में गई है वे असंतुष्ट होने के बाद भी अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं। क्योंकि नियम ही ऐसा है बिना यहां अपील के वे हाईकोर्ट भी नहीं जा सकते। प्रभाजन का अधिकार भी सिर्फ प्राधिकरण के पास ही है। यानी अगर चार भाई में से एक मुआवजे का विरोध करता है तो इस मामले की सुनवाई सिर्फ यही हो सकती है।
बिना पीठासीन के कोई काम भी नहीं पुराने पीएचक्यू की खंडहर बिल्डिंग के चार कमरों में यह कार्यालय संचालित हो रहा है। कार्यालय में पीठासीन अधिकारी में दो क्लर्क बैठे मिले। उन्होंने बताया कि यहां दिन में एक दो लोग ही आते हैं। इसमें कुछ नए केस दर्ज कराने आते हैं, लेकिन उन्हें वापस भेज दिया जाता है। कुछ पुराने मामले का पता करने भी आते हैं, लेकिन हमारे पास एक ही जवाब होता है कि जब पीठासीन अधिकारी आएंगे तब ही कुछ होगा। रजिस्टार नीता ठाकुर के कमरे में ताला लगा मिला। पास के कमरे में उप संचालक वित्त बैठे मिले। उन्होंने बताया कि वेतन आहरण जैसे सामान्य कार्य किए जा रहे हैं। बाकी पीठासीन अधिकारी के आने के बाद ही कार्य होंगे।
28 लोगों का सेटअप, कार्यरत हैं सात लोग प्राधिकरण के सेटअप में 28 कर्मचारी की जगह है, लेकिन यहां सात ही पदस्थ है। बाकी की भर्ती के लिए कई बार फाइलें चलीं लेकिन भर्ती नहीं हो पाई। पीडब्ल्यूडी बिल्डिंग को जर्जर घोषित कर चुका है। प्राधिकरण का सालाना बजट एक करोड़ के करीब रहता है। जिसमें वेतन, स्टेशनरी और गाड़ी के पेट्रोल-डीजल पर ही मुख्य खर्च होता है।
पहले भी खाली रह चुकी है मी-लॉर्ड की कुर्सी 2017 में प्राधिकरण बनने के बाद लॉ के पीएस एके सामंत्रे पहले पीठासीन अधिकारी बने। 2019 में ये रिटायर हो गए, इसके बाद 16 महीने यह कुर्सी खाली रही। अब फिर डेढ़ साल से सरकार के पास पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति पेंडिंग है। सरकार की अनुशंसा पर हाईकोर्ट नियुक्ति करेगा।
बड़े-बड़े मामले चल रहे प्राधिकरण में
{ बिलासपुर के अरपा भैंसा झार के मुआवजे से असंतुष्ट 40 लोगों ने यहां अपील कर रखी है। सरकार ने उन्हें जो मुआवजा दिया है उन्होंने लेने से मना कर दिया है, अपीलीय अधिकारी न होने की वजह से ये लोग सिर्फ चक्कर काट रहे हैं। { मिरौनी बैराज के 10 मामले ट्रिब्यूनल में लगे हुए हैं। इसके अलावा जांजगीर चांपा में बनीं राज्य सरकार की सड़कों के 30 मामले भी अपील में है, लेकिन इनकी सुनवाई नहीं हाे रही है। कुछ सड़कें तो बन भी गईं, लेकिन मुआवजा आज तक नहीं मिल पाया। { रायपुर में शंकरगनर से विधानसभा जाने वाला फ्लाईओवर बनकर चालू भी हो गया, लेकिन इसके मुआवजे से असंतुष्ट सात लोगों के मामले की सुनवाई अब भी चल ही रही है। कुछ लोगों की अपील पर निर्णय पहले हो चुके हैं।
जल्द ही अपील की सुनवाई की जाएगी पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही नियुक्ति होने के बाद अपील की सुनवाई की जाएगी। नए मामले भी तभी रजिस्टर होंगे। नीता ठाकुर, रजिस्टार, भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण