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यह कहना है भोपाल के बैरसिया में भोजपुरा मिडिल स्कूल की टीचर बीनू राजपूत का। बीनू कहती हैं- मैं भी पीरियड्स के पहले दिन स्कूल नहीं आती। यहां कोई सुविधा ही नहीं है। हम अपनी तकलीफ किसे बताएं?
ये केवल एक सरकारी स्कूल नहीं है, जहां शौचालय न होने से छात्राओं और महिला टीचर्स को परेशानी का सामना करना पड़ता हो। शिक्षा मंत्रालय के यूडीआईएमई की 2 जनवरी 2025 को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश के 11,016 सरकारी स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट नहीं हैं। ज्यादातर स्कूल ग्रामीण इलाकों के हैं। आलम ये है कि टॉयलेट न होने से पेरेंट्स बच्चियों को स्कूल भेजना ही बंद कर देते हैं।
दैनिक भास्कर ने भोपाल के ही ग्रामीण इलाकों के 5 स्कूलों का दौरा किया तो सरकार के दावों की पोल खुल गई। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट….
जर्जर इमारत, खंडहर शौचालय भास्कर की टीम जब सलोई संगराज के प्रायमरी स्कूल में पहुंची तो देखा कि स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है, बॉउंड्रीवॉल भी नहीं है। यहां मिड डे मील बनाने वाली दो महिलाएं नजर आईं। उनसे पूछा- बालिका शौचालय कहां है तो उन्होंने एक टूटे-फूटे कमरे की तरफ इशारा किया, जिसके दरवाजे पर ताला लगा था।
उनसे शौचालय का ताला खोलने के लिए कहा। टीम ने देखा कि शौचालय खंडहर में बदल चुका है। वहां कचरे और शराब की बोतलों का ढेर पड़ा है। जब हमने महिलाओं से पूछा कि लड़कियां किस टॉयलेट का इस्तेमाल करती हैं तो वे बोलीं- लड़कियां, लड़कों के शौचालय का उपयोग करती हैं।
उन्होंने कहा- हम लोग 5-6 घंटे स्कूल में रहते हैं लेकिन शौचालय नहीं जाते। इस बातचीत के दौरान स्टूडेंट्स भी स्कूल पहुंच चुके थे। एक लड़की से पूछा कि वह टॉयलेट कहां जाती है तो उसने लड़कों के टॉयलेट की तरफ इशारा किया।
सलोई संगराज प्रायमरी स्कूल के बालिका शौचालय में कचरा और शराब की बोतलें पड़ी हैं।
5 साल में कई आवेदन दिए, मगर कुछ नहीं हुआ स्कूल के शिक्षक दुष्यंत सिंह से जर्जर इमारत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया- पिछले साल बारिश में छत पूरी तरह गिर गई थी। उसके बाद शिक्षकों ने खुद के पैसों से छत की अस्थायी मरम्मत कराई लेकिन ये फिर गिरने को तैयार है।
दुष्यंत सिंह ने बताया कि पिछले पांच साल में कई बार जिला शिक्षा अधिकारी और सरपंच को आवेदन दिए लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। वे कहते हैं, “स्कूलों में जो बजट आता है, वह इतना कम है कि उसमें केवल नाममात्र का काम हो पाता है। शौचालय और इमारत की मरम्मत के लिए पर्याप्त राशि कभी नहीं मिली। हमने और हमारे सर ने अपने लेवल पर जितना हो सका, काम करवाया है।”
गांव के लोगों ने शौचालय तोड़ दिया जब हम भोजापुरा स्कूल पहुंचे तो सबसे पहले हमारी नजर स्कूल की दीवार पर लिखे शब्दों पर पड़ी- “विद्यालय एक मंदिर है।” स्कूल का परिसर बहुत बड़ा था। एक ही परिसर में आंगनवाड़ी और स्कूल दोनों संचालित हो रहे थे। बाहर ही स्कूल के दो शिक्षक- बीनू राजपूत और तरसीव बर्वा से मिले।
उन्होंने बताया कि गांव के लोगों ने ही स्कूल में बने शौचालय को तोड़ दिया है। अब इसकी जगह एक अस्थायी शौचालय बनाया गया है। उसकी हालत भी खराब है। दरवाजा तक नहीं है।
टीचर तरसीव बर्वा ने कहा- स्कूल में पानी की समस्या है। शौचालय में भी पानी नहीं आता। बाउंड्रीवॉल न होने के कारण कोई भी स्कूल की बिल्डिंग तक आ जाता है।
बर्वा कहते हैं, ‘आज भी गांव में ‘पर्दा प्रथा’ कायम है। माता-पिता अपनी बेटियों का स्कूल से नाम कटवा देते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि उनकी बेटियां खुले में शौच के लिए जाएंगी। यह उनके लिए सुरक्षित नहीं है।’
भोजापुर प्रायमरी स्कूल का शौचालय टूटा-फूटा है। यहां पानी भी नहीं आता।
कई बच्चियां बीमार पड़ चुकीं शिक्षिका बीनू राजपूत ने बताया कि जैसे ही लड़कियां आठवीं क्लास में आती हैं, घर वाले उन्हें स्कूल भेजना कम कर देते हैं। वे दूसरी जगह भी लड़कियों को पढ़ने नहीं भेजते, बल्कि उनकी पढ़ाई ही रुकवा देते हैं।
राजपूत कहती हैं- पीरियड्स के तीन दिन लड़कियां स्कूल नहीं आतीं। महिला टीचर्स भी पीरियड्स के समय स्कूल आने से कतराती हैं। महीने में दो तीन दिन छुट्टी लेना उनकी मजबूरी है। किसी तरह की कोई सुविधा ही नहीं है। कई बार स्कूल की तरफ से खराब टॉयलेट को लेकर शिकायतें की गईं, मगर कोई नतीजा नहीं निकला।
इसी स्कूल में सातवीं क्लास में पढ़ने वाली छात्रा रीता अहिरवार से बात की तो उसने बताया- टॉयलेट गंदे हैं, मगर क्या करें मजबूरी है। रीता ने बताया कि कुछ दिनों पहले उसकी सहेली बीमार हो गई थी। डॉक्टर ने कहा कि गंदे टॉयलेट का इस्तेमाल करने की वजह से उसके प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन हो गया है। वो कई दिनों तक स्कूल नहीं आई थी।
अस्थायी शौचालय; दरवाजा टूटा, दीवारों में दरार निदानपुर के मिडिल स्कूल की इमारत अच्छी है। स्कूल की कक्षाएं भी बाकी सरकारी स्कूलों से अलग नजर आईं। टेबल-कुर्सियों की हालत भी ठीक-ठाक थी। लेकिन इमारत की हालत जितनी अच्छी है, शौचालय वैसा नहीं है।
स्कूल के टीचर जालम सिंह विश्वकर्मा ने बताया कि पुराना शौचालय गिर चुका है। अस्थायी शौचालय किसी तरह बच्चों की जरूरतें पूरी कर रहा है। हालांकि, यह भी बेहद असुविधाजनक है। शौचालय का दरवाजा टूटा हुआ है और दीवारों में दरारें हैं।
जालम सिंह कहते हैं- बालिका शौचालय और बाकी मरम्मत के लिए बजट मिलेगा, ऐसा सुनने में आया है, मगर अभी तक मिला नहीं है।
स्कूल के पास ही रहने वाले रामकिसन बताते हैं कि कई माता-पिता एक समय के बाद बच्चियों का नाम स्कूल से कटवा देते हैं और दूसरे स्कूलों में पढ़ने के लिए भेज देते हैं। मगर, हर माता-पिता के पास ऐसा विकल्प नहीं है तो वे बच्चियों की पढ़ाई ही बंद करा देते हैं।
प्रभारी शराब के नशे में धुत, व्यवस्थाएं ठप भास्कर की टीम मंगलगढ़ के इस स्कूल में पहुंची तो देखा कि स्कूल परिसर में ही एक खुला हुआ कुआं है। इसी कुएं का इस्तेमाल पीने के पानी के लिए होता है। इसके आसपास बच्चे खेल रहे थे। बच्चों से पूछा कि स्कूल के प्रभारी और शिक्षक कहां हैं तो उन्होंने खंभे के पास कुर्सी पर बैठे एक शख्स की तरफ इशारा किया।
ये स्कूल के प्रभारी थे, जो नशे की हालत में थे। उनसे इसकी वजह पूछी तो बोले- “मैं रोज शराब पीता हूं और मैं यह गर्व से कहता हूं। बिना शराब पीये मैं खड़ा नहीं रह सकता, यह मेरे दर्द को कम करती है।” प्रभारी की इस हालत की वजह से स्कूल की व्यवस्थाएं पूरी तरह से ठप नजर आ रही थीं।
स्कूल की टीचर ममता राठौर ने बताया कि प्रभारी हर दिन नशे की हालत में रहते हैं, व्यवस्थाएं देखने वाला कोई नहीं है। लड़कियों के लिए शौचालय तक नहीं है, वे बाहर खुले में जाती हैं। महिला टीचर के लिए एक शौचालय है, मगर उसकी हालत खस्ता है। नए शौचालय का काम महीनों से अधूरा पड़ा है।
राठौर ने कहा कि बड़ी क्लास की लड़कियां पीरियड्स के समय स्कूल ही नहीं आतीं।
छत से सरिए झांक रहे, शौचालय के लिए जगह नहीं रामटेक के प्रायमरी स्कूल की बिल्डिंग की हालत ऐसी है कि ये किसी भी वक्त गिर सकती है। स्कूल की छत से सरिए झांक रहे हैं। दीवारें जर्जर हो चुकी हैं। एक क्लासरूम है, वो भी टूटा-फूटा है। बच्चे इसी में पढ़ते हैं।
स्कूल में एक हैंडपंप लगा है लेकिन वो काम नहीं करता। स्कूल की टीचर गायत्री सोनी से जर्जर इमारत और शौचालय के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा- इमारत की हालत को लेकर शिकायत कर चुके हैं, मगर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
स्कूल में एक ही शौचालय है। जिसका इस्तेमाल लड़के, लड़कियां और टीचर करते हैं। उसकी हालत भी बेहद खस्ता है। सोनी ने बताया- स्कूल में जगह ही नहीं है तो लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने का आवेदन ही नहीं दिया।
एक्सपर्ट बोले- यूरिन इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा गंदे टॉयलेट और छात्र-छात्राओं के एक ही शौचालय इस्तेमाल करने को लेकर भास्कर ने एक्सपर्ट्स से बात की। यूरोलॉजिस्ट डॉ. संजय दीवान का कहना है कि लड़कों और लड़कियों का एक ही शौचालय इस्तेमाल करना बीमारी को आमंत्रण देता है।
लड़कियों के लिए अलग शौचालय अनिवार्य है, क्योंकि उन्हें प्राइवेसी की जरूरत होती है। सामान्य रूप से टॉयलेट न होने के कारण वे कम पानी पीती हैं। यदि उन्हें पेशाब करने की जरूरत भी होती है तो वे टॉयलेट जाने से कतराती हैं। इससे यूरिन इन्फेक्शन का जोखिम बढ़ जाता है, जो कभी-कभी गंभीर रूप ले सकता है।
मनोचिकित्सक बोले- आत्मविश्वास में कमी आती है मनोवैज्ञानिक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि इस तरह की स्थिति बच्चों के दिमाग पर विपरीत असर डालती है। लड़कियां आत्मविश्वास खो देती हैं। कई बार वे पढ़ाई छोड़ देती हैं। माता-पिता यह सोचते हैं कि उनकी बेटी को पेशाब करने के लिए सुरक्षित माहौल नहीं मिल रहा इसलिए वे उसे स्कूल जाने से रोक देते हैं। उन्होंने कहा-
सरकारी संस्थाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि टॉयलेट की व्यवस्था अलग-अलग हो, जिससे लड़के और लड़कियों दोनों की ही निजता का ध्यान रखा जा सकें।