स्कूल ऑफ एमिनेंस की प्रतिकात्मक तस्वीर।
पंजाब सरकार ने स्कूल ऑफ एमिनेंस (SOE) में कक्षा छठी से 11वीं में स्टूडेंट्स के एडमिशन कम करने का फैसला लिया है। सरकार का तर्क है कि ये क्वालिटी को बेहतर करने के लिए लिया गया फैसला है। लेकिन, इस फैसले को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। डेमोक्रेटिक टीचर फ्र
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DTF के अध्यक्ष विक्रम देव ने कहा कि सरकार SOE स्कूलों में टीचर्स की कमी को छुपाने के लिए ऐसा कर रही है। “2023 में भी कक्षा VI के एडमिशन रोकने का आदेश आया था, लेकिन विरोध के कारण सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। सरकार को चाहिए कि वो सभी स्कूलों में बराबरी की पढ़ाई उपलब्ध कराए, न कि कुछ स्कूलों में भेदभाव करे।”
SOE स्कूलों में दो तरह के स्टूडेंट्स, अलग-अलग सुविधाएं
पंजाब के स्कूल ऑफ एमिनेंस में दो तरह के स्टूडेंट्स पढ़ते हैं—
- वो जो एंट्रेंस टेस्ट पास करके एडमिशन लेते हैं। इन्हें खास सुविधाएं मिलती हैं, जैसे फ्री यूनिफॉर्म, बेहतर पढ़ाई की सुविधाएं, आधुनिक खेल मैदान और स्मार्ट क्लासरूम।
- वो जो बिना टेस्ट के एडमिशन लेते हैं। इन्हें ये अतिरिक्त सुविधाएं नहीं दी जातीं।
शिक्षा विभाग का नया आदेश—गैर-SOE स्टूडेंट्स का एडमिशन कम किया जाए
24 मार्च को स्कूल शिक्षा निदेशक (माध्यमिक) ने जिला शिक्षा अधिकारियों (DEO) को आदेश दिया कि वो बिना टेस्ट एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या घटाएं और उन्हें दूसरे सरकारी स्कूलों में एडमिशन लेने के लिए कहें। यह फैसला शिक्षा मंत्री हरजोत बैंस के निर्देशों पर लिया गया है।
शिक्षा मंत्री की सफाई—SOE मेरिट बेस्ड मॉडल है
शिक्षा मंत्री हरजोत बैंस ने कहा कि SOE उन्हीं स्टूडेंट्स के लिए बनाया गया है, जो एंट्रेंस टेस्ट पास करते हैं। “जैसे-जैसे टेस्ट के जरिए एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ रही है, हम नई क्लासेस जोड़ रहे हैं। साथ ही, दूसरे सरकारी स्कूलों की सुविधाएं भी सुधार रहे हैं।”
जबकि टीचर यूनियन का आरोप है कि SOE में टीचर्स की कमी छुपाने के लिए लिया गया फैसला लिया जा रहा है और ये स्टूडेंट्स के साथ ही भेदभाव की नीति अपनाई जा रही है।