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कानपुर में बसी ‘नेत्रदानियों की नगरी’: पहले माता-पिता ने किया, अब बेटे-बहू और पौत्र ने भी लिया संकल्प; 219 लोग कर चुके नेत्रदान – Kanpur News


1948 में शुरू हुआ अभियान 2016 में परवान चढ़ा। इससे पहले कई भ्रांतियों के कारण लोग इस मुहिम को गलत मानते थे। इसलिए उस दौरान काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जब कहीं जाते थे तो लोगों से अपमान झेलना पड़ता था। इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार 2016

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ये कहना है नेत्रदानियों की नगरी में रहने वाले समाज सेवी मदन लाल भाटिया का। जी हां, कानपुर में एक जगह ऐसी भी है जिसे ‘नेत्रदानियों की नगरी’ कहा जाता है। यहां पर हर घर से किसी न किसी सदस्य ने नेत्रदान करने का संकल्प लिया हुआ है, बल्कि कई परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने पूरे परिवार के साथ नेत्रदान करने का संकल्प ले रखा है।

पहले माता-पिता ने नेत्रदान किया और अब उनके बेटे-बहू और पौत्र भी यह संकल्प ले चुके हैं। इस जगह का नाम वैसे तो कृष्णा नगर है जोकि रामदेवी के पास स्थित है, लेकिन यहां के लोगों की जागरूकता की वजह से इसको अब नेत्रदानियों की नगरी नाम दिया गया है।

1948 में हुई थी कृष्णा नगर की स्थापना यहां के समाज सेवी मदनलाल भाटिया ने बताया कि 1948 में कृष्णा नगर की स्थापना हुई थी। यह इलाका 135 बीघा में बसा हुआ है, जिसमें की लगभग 550 परिवार रहते हैं। इसकी आबादी 8 से 10 हजार है। 1950 में यहां पर लोगों ने रहना शुरू कर दिया था।

जब पाकिस्तान को छोड़कर लोग इधर-उधर भाग रहे थे तो उस दौरान कुछ लोग कानपुर आए और उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद से ना तो क्लेम लिया ना ही किसी प्रकार का लोन लिया। अपने दम पर यहां पर लोगों ने जमीन खरीदी और रहने लगे।

आखिर जानते हैं कि कैसे शुरू हुआ यह अभियान 1998 में एयरफोर्स के रिटायर्ड कुंदनलाल भाटिया ने इस अभियान को शुरू किया था। उस समय श्री नागर जी सेवा दल के नाम से एक संगठन हुआ करता था और उसके संरक्षक कुंदन लाल जी थे।

आज उसका नाम श्री नागर जी सेवा संस्थान ट्रस्ट’ हो गया है। उन्होंने ही लोगों को समाज सेवा के लिए प्रेरित किया और सबसे पहले हम लोगों ने रक्तदान शिविर लगाना शुरू किया। इसके बाद लोगों को नेत्रदान के लिए जागरूक करने लगे। समाज में फैली कई तरह की भ्रांतियां के कारण लोग हमारी इस मुहिम में नहीं जुड़ते थे।

इसलिए उस दौरान काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जब कहीं जाते थे तो लोगों से अपमान झेलना पड़ता था। इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी। 2016 में सबसे पहले सीता देवी ने नेत्रदान किया। इसके बाद सफर वहां से शुरू हो गया।

अभियान अब कानपुर के बाहर भी पहुंच चुका है।

चार भाइयों का परिवार सभी ने लिया नेत्रदान का संकल्प निशा भाटिया ने बताया कि जब हमारी सास सीता देवी और ससुर बलदेव राज भाटिया ने नेत्रदान किया इसके बाद से हमारे पति के चार भाई का परिवार है और सभी ने नेत्रदान करने का मिलकर संकल्प लिया है। वहीं, क्षेत्र की रजनी भाटिया ने कहा कि हमारे पूरे परिवार ने नेत्रदान के साथ-साथ देहदान का भी संकल्प लिया है और अब हम लोग दूसरों को भी इसके लिए जागरूक कर रहे हैं।

सुदेश भाटिया ने कहा कि आज सभी लोग इसके लिए काफी जागरूक है, लेकिन पहले हम लोगों को कई प्रकार की चुनौतियां झेलनी पड़ी। इसके बावजूद हम लोगों ने इस अभियान को जारी रखा और आज 438 लोगों की आंखों की रोशनी वापस आ गई है।

सुशील अवस्थी ने बताया कि हमारे ससुर रमेश शुक्ला कोलकाता में रहते थे, जब वह बीमार हुए तो आखरी समय हमारे पास आकर रहने लगे। उनका कानपुर में ही इलाज के दौरान निधन हो गया। इसके बाद पूरे परिवार ने मिलकर उनका नेत्रदान किया। आज हमारे पूरे परिवार ने नेत्रदान का संकल्प लेते हुए फॉर्म भरे हैं।

8 सदस्यों ने लिया हिस्सा

देवेंद्र अरोड़ा ने बताया कि मां शकुंतला रानी, सास नेत्र दान कर चुकी है। अब मैंने अपनी पत्नी किरण देवी के साथ परिवार के 8 लोगों ने नेत्र दान का संकल्प लिया है।

कृष्णा नगर के 1500 से अधिक लोग ले चुके हैं संकल्प मदन लाल भाटिया बताते हैं कि यहां पर रहने वाले हर घर से लोगों ने नेत्रदान का संकल्प ले रखा है। कई घर ऐसे हैं जिन्होंने पूरे परिवार के साथ यह संकल्प लिया है। वर्तमान समय में 1500 से भी अधिक लोग ऐसे हैं जिन्होंने यह संकल्प लिया हुआ है।

कैसे पड़ा ‘नेत्रदानियों की नगरी’ नाम मदनलाल भाटिया बताते हैं कि जब 100 लोगों ने अपने नेत्रदान कर दिए तो अपने आप लोग इस इलाके को नेत्रदानियों की नगरी कहने लगे। वहीं से कृष्णा नगर का नाम नेत्रदान की नगरी पड़ गया।

अब दूसरे क्षेत्रों को कर रहे जागरूक उन्होंने कहा कि हमारा पूरा कृष्णा नगर नेत्रदान के लिए जागरूक हो गया है। अब इस मुहिम को हम लोग दूसरे क्षेत्रों में लेकर जा रहे हैं और लोग हमारी इस मुहिम से जुड़ भी रहे हैं। कानपुर ही नहीं बल्कि लखनऊ, आगरा और नोएडा जैसे जिलों में भी हम लोगों ने नेत्रदान कराए है।



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