चंडीगढ़ के पूर्व डीजीपी सुरेंद्र सिंह यादव की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
चंडीगढ़ के पूर्व डीजीपी सुरेंद्र सिंह यादव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। गृह मंत्रालय द्वारा किए गए ट्रांसफर आदेश के खिलाफ उन्होंने शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है। अब उन्हें छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाक
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सुरेंद्र सिंह यादव को चंडीगढ़ में अपने कार्यकाल के दौरान पुलिस जवानों की मुखालफत का सामना करना पड़ा था। पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ एक चिट्ठी वायरल की थी, जिसमें उनके फैसलों को लेकर नाराजगी जताई गई थी। इसके बाद यादव ने विरोध करने वालों के खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू करवाई थी।
विदाई तक नहीं ली डीजीपी ने
1 अप्रैल की रात को गृह मंत्रालय ने अचानक उनका ट्रांसफर आदेश जारी कर दिया। डीजीपी सुरेंद्र सिंह यादव बिना किसी से मिले, बिना औपचारिक विदाई के, रातोंरात अपना सामान दिल्ली रवाना कर खुद बीएसएफ मुख्यालय के लिए निकल गए। जिसे लेकर अगले कई दिनों तक चंडीगढ़ सेक्टर 9 स्थित पुलिस हेडक्वार्टर सहित शहर की सभी यूनिट में चर्चा होती रही। 1997 बैच के एजी एमयूटी कैडर के आईपीएस यादव ने मार्च 2024 में चंडीगढ़ के डीजीपी का कार्यभार संभाला था। उनके कार्यकाल में उन्होंने पुलिस महकमे में बड़े पैमाने पर तबादले किए, थानों में सेटिंग के आरोपियों पर कार्रवाई की और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाई। लेकिन इससे विभाग के कई जवान नाराज हो गए। कुछ ने विभाग छोड़ने तक की बात की।
कोर्ट ने जूनियर के नीचे पोस्टिंग पर नहीं दी राहत
ट्रांसफर के बाद यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपने से जूनियर अधिकारी के अधीन डीआईजी पद पर तैनाती को चुनौती दी थी। लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। अब उन्हें राजस्थान में ओरिएंटेशन के बाद छत्तीसगढ़ भेजा गया है, जहां वे नक्सल विरोधी अभियानों की जिम्मेदारी निभाएंगे।
कुछ नाराज़ तो कुछ दिखे खुश
चंडीगढ़ के पूर्व डीजीपी सुरेंद्र यादव का अचानक ट्रांसफर होने पर पुलिस विभाग में कई चेहरों पर मुस्कान दिखी तो कई पर शिकन, क्योंकि जिनके चेहरों पर शिकन है उनका कहना है कि पहली बार ऐसा डीजीपी आया था जिसने छोटे मुलाजिमों की सुनी और उन्हें अपने घर पर बुलाकर चाय-नाश्ता करवाया। शिकायत आने पर निष्पक्ष जांच करवाई और उसके बाद उस पर कार्रवाई भी की। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि छोटे मुलाजिम अगर बड़े के खिलाफ शिकायत देते तो उसे अनसुना कर दिया जाता था। पहली बार डीजीपी ने शहर के एक थाने में सब इंस्पेक्टर को लगाया, लेकिन उनके जाते ही कुछ दिनों में ही उसे हटाकर फिर से इंस्पेक्टर को लगा दिया गया।