‘गांव में 10-15 नक्सली हमेशा घूमते रहते थे। वे हथियार लेकर चलते थे। हमें बाजार भी जाना होता था, तो उनसे पूछकर जाते थे। अगर कोई उन्हें बिना बताए गांव से बाहर चला जाता, तो उसे पुलिस का मुखबिर बताकर पीटते थे। कोई उनकी बात नहीं मानता, तो जनताना अदालत लगा
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नक्सलियों के आतंक की कहानी सुना रहे श्याम कवासी चांदामेटा गांव के रहने वाले हैं। बस्तर के दरभा ब्लॉक में बसा ये गांव 2022 से पहले नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर था। नक्सलियों ने यहां छोटे बच्चों को भी बंदूक-बम की ट्रेनिंग दी और बाल सेना बनाई। उन्हें सिखाया कि सिक्योरिटी फोर्स पर कैसे नजर रखनी हैं।
‘नक्सलगढ़ से भास्कर’ सीरीज की पांचवी स्टोरी में पढ़िए चांदामेटा से रिपोर्ट…
चांदामेटा ओडिशा बॉर्डर के पास छत्तीसगढ़ का आखिरी गांव है। दोनों राज्यों के बीच तुलसी डोंगरी पहाड़ है, जो 2004 से नक्सलियों का ठिकाना था। 2021 में यहां CRPF ने कैंप बनाने का काम शुरू किया। 2022 के बाद से इस इलाके में हालात बदलना शुरू हुए। इसी साल अगस्त में यहां पहली बार लाल झंडे की जगह तिरंगा फहराया गया।
2004 में पहली बार आए नक्सली, बच्चों को ट्रेनिंग देकर बाल सेना बनाई छिंदगुर पंचायत में आने वाले चांदामेटा में 85 घर हैं। करीब 300 लोग रहते हैं। गांव में पहली बार इसी साल फरवरी में पंचायत चुनाव हुए। इसमें 25 साल के श्याम कवासी वार्ड मेंबर चुने गए।
श्याम बताते हैं, ‘चांदामेटा में पहली बार नक्सली 2004 के आसपास आए थे। तब मैं बहुत छोटा था। उन्होंने तुलसी डोंगरी पहाड़ पर ठिकाने बना लिए। माड़िया, धुरवा जनजाति के लोग तुलसी डोंगरी को पवित्र मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं।’
धीरे-धीरे ये पहाड़ नक्सलियों का मजबूत गढ़ बन गया। नक्सलियों ने गांव के लोगों को संगठन से जोड़ना शुरू किया। उन्होंने बाल सेना भी बनाई थी।
‘गांव का एक आदमी नक्सलियों का लीडर था। अब उसने सरेंडर कर दिया है। पहाड़ से एक आदमी लीडर के पास आता था। वो बोलता था कि चावल और राशन इकट्ठा करके दो। फिर गांव के लोग चंदा करके सामान जुटाते थे और पहाड़ पर ले जाते थे। पहाड़ी के पास एक मैदान है। वहां आम का बाग है। वहां नक्सली मोर्चा लगाकर ट्रेनिंग देते थे।’
‘गांववालों को बंदूक चलाना, जवानों पर हमला करना सिखाया’ श्याम बताते हैं, ‘नक्सली लोगों को अपनी विचारधारा के बारे में बताते थे। यकीन दिलाते थे कि उनकी लड़ाई सही है। वे कहते थे कि सरकार और पुलिस आदिवासियों की दुश्मन है। गांववालों को लड़ाई की ट्रेनिंग दी जाती थी।’
‘कम उम्र के लड़कों को आर्मी की तरह बंदूकें और राइफल चलाना सिखाते थे। प्रेशर कुकर, टिफिन बम बनाना और उन्हें जवानों के रास्ते में लगाना सिखाते थे। जंगल में छिपकर रहना, घात लगाकर हमला करना और बचकर भाग जाने के तरीके बताते थे। बच्चों को सिखाते थे कि कैसे सिक्योरिटी फोर्स पर नजर रखें और उनके बारे में पता करें। ट्रेनिंग में दौड़-भाग और एक्सरसाइज भी शामिल थी।’
तुलसी डोंगरी के पास इसी मैदान में नक्सली ट्रेनिंग देते थे। अब ये जगह वीरान पड़ी है।
श्याम आगे कहते हैं, ‘गांव में नक्सलियों का आतंक बढ़ गया था। वे किसी को गांव से बाहर नहीं जाते देते थे। मेरे पापा को कैंसर था। इस वजह से हमें बार-बार हॉस्पिटल जाना पड़ता था। नक्सली कहते थे कि हम पुलिस से मिले हैं, इसलिए बाहर रहते हैं। 2015 में पापा नहीं रहे। हमने गांव में उनका अंतिम संस्कार किया और सब कुछ छोड़कर यहां से चले गए।’
‘करीब 10 साल रिश्तेदारों के पास रहे। तीन साल पहले 2022 में गांव लौट आए। अब ये गांव पूरी तरह बदल गया है। पहले तो रिश्तेदारों के यहां भी नक्सलियों से पूछकर जाना पड़ता था। अगर आप बोलकर गए हैं कि कल लौट आऊंगा और नहीं आए तो नक्सली सजा देते थे।’
2023 में पहली बार वोटिंग, 2024 में गांव में बिजली आई चांदामेटा बस्तर के उन गांवों में से है, जहां आजादी के बाद पहली बार 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान वोटिंग हुई। पहले यहां के लोग 7 किलोमीटर छिंदगुर पंचायत में वोट डालने जाते थे।
अगस्त, 2022 में पहली बार यहां तिरंगा फहराया गया। इस बारे में हमने CRPF के कमांडेंट लेवल के अधिकारी से पूछा। वे मीडिया से बात करने के लिए आर्थोराइज्ड नहीं हैं, इसलिए अपनी पहचान नहीं बताना चाहते। कमांडेंट कहते हैं, ‘पहले यहां तक प्रशासन की पहुंच नहीं थी, इसलिए आप कह सकते हैं कि पहली बार ही तिरंगा फहराया गया।’
हमने गांव में मिल रहीं सुविधाओं के बारे में श्याम से बात की। वे बताते हैं, ‘दो साल पहले ही गांव में प्राइमरी स्कूल बना है। हालांकि, स्कूल में पढ़ाई नहीं होती। टीचर भी एक ही है।’
चांदामेटा गांव में बना प्राइमरी स्कूल। इसमें अभी 32 बच्चे पढ़ रहे हैं। बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए 10 किलोमीटर दूर कोलेंग जाना पड़ता है।
श्याम आगे बताते हैं, ‘गांव से सबसे नजदीकी हॉस्पिटल छिंदगुर में है। यहां डॉक्टर कम बैठते हैं, इसलिए कोलेंग जाना पड़ता है। वहां अच्छा इलाज न मिले, तो 35 किलोमीटर दूर दरभा जाते हैं।’
‘गांव में दो साल पहले सड़क बनी है। हालांकि ये दो पारा तक ही बनी है। गांव के चार पारा में अब भी सड़क नहीं है। हमारे यहां मोहल्ले को पारा बोलते हैं। सड़क तो बन गई, लेकिन शहर तक बस या कोई और पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है।’
चांदामेटा गांव के लोग इलाज के लिए 7 किमी दूर छिंदगुर में आते हैं। ये छिंदगुर का हॉस्पिटल है।
‘पिछले साल ही गांव में बिजली आई है। हालांकि लाइट रहती नहीं है। ये सुविधाएं CRPF कैंप बनने के बाद मिल रही हैं। स्कूल और आंगनवाड़ी भी खुल गए हैं। दो मोहल्लों में पानी की टंकी बनी है। बस गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं है। कुछ ऊंची जगहों पर जाएं, तो नेटवर्क मिल जाता है। गांव में एक जगह नेटवर्क आता है। लोग वहीं जाकर बात करते हैं।’
‘मजदूरी करने बाहर गए थे, नक्सलियों ने मुखबिर बताकर मार डाला’ श्याम कवासी अकेले नहीं हैं, जिन्हें नक्सलियों की वजह से गांव छोड़ना पड़ा। 22 साल के उर्रा कवासी भी नक्सल हिंसा के पीड़ित रहे हैं। नक्सलियों ने पुलिस का मुखबिर बताकर उनके भाई कोसा की हत्या कर दी थी।
उर्रा बताते हैं, ‘भैया मजदूरी करने सुकमा जाते थे। वहां एक-दो महीने रहते थे। नक्सलियों ने कहा कि वो पुलिस के लिए मुखबिरी करते हैं। उन्हें पकड़कर मेले में ले गए और सबके सामने मार दिया।’
उर्रा कहते हैं, ‘2022 के बाद से गांव में नक्सली नहीं दिखे। दो साल से धीरे-धीरे डेवलपमेंट हो रहा है। 2023 में मुझे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिला है। गांव में बिजली आ गई है, लेकिन एक महीने से कटी हुई है। शिकायत करने पर भी सुधार नहीं हुआ।’
नक्सलियों के जाने के बाद चांदामेटा में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बनने लगे हैं।
‘नक्सली मुखबिर बताकर, पुलिसवाले नक्सली बताकर पीटते थे’ गांव के महादेव कश्यप खेती करते हैं। वे पढ़ नहीं पाए क्योंकि गांव में स्कूल नहीं था। उनका छोटा भाई केसा CPI (माओवादी) से जुड़ा है। भाई के बारे में महादेव बताते हैं, ‘10-12 साल पहले केसा संगठन से जुड़ा था। नक्सलियों के साथ एक-दो बार यहां आया था। लंबे वक्त से इधर नहीं आया।’
महादेव कहते हैं, ‘CRPF कैंप बनने से पहले नक्सलियों के साथ-साथ पुलिस भी परेशान करती थी। नक्सली पुलिस का मुखबिर बताकर मारपीट करते थे। पुलिस नक्सली बोलकर पीटती थी। पुलिसवाले दो-तीन बार मुझे भी पकड़कर ले गए थे। बोले कि मैं नक्सली इलाके में रहता हूं। थाने में मुझे 15 दिन रखा, जबकि मैं कभी नक्सलियों के साथ नहीं गया।’
ये महादेव कश्यप हैं। महादेव का भाई केसा CPI (माओवादी) में एरिया कमेटी मेंबर है।
गांव में CRPF कैंप बना तो नक्सली बम लगाकर चले गए जगदलपुर से चांदामेटा गांव तक रास्ते में CRPF के 5 कैंप हैं। गांव में CRPF की 80 बटालियन तैनात है, जिसमें 135 जवान हैं। गांव में कई जगह CRPF के पोस्टर दिख जाते हैं। इनमें माओवाद का साथ छोड़ने की बातें लिखी हैं।
चांदामेटा के रास्ते में लगा CRPF का पोस्टर। इसमें बताया गया है कि CRPF कैसे गांववालों की मदद करती है।
CRPF के एक अधिकारी बताते हैं, ‘2021 में यहां कैंप बनना शुरू हुआ था। कैंप वाली जगह नक्सलियों की जनताना अदालत लगती थी। ये इस इलाके में उनका सबसे बड़ा अड्डा था। गांव के कई लोग नक्सलियों से जुड़े थे। उन्होंने सरेंडर कर दिया। 3-4 लोग अब भी माओवादी संगठन से जुड़े हैं।’
‘कैंप बन रहा था, तब नक्सलियों ने रुकावट डालने की काफी कोशिश की। वे जगह-जगह IED लगा देते थे। कैंप बनने के बाद भी यहां से IED मिली थीं। नक्सली आसपास हमले करते थे, तो इसके बाद यहीं आकर रुकते थे। 2019 तक यहां उनका प्रभाव ज्यादा था।’
ट्रेनिंग वाली जगह अब भी नक्सलियों का स्मारक चांदामेटा गांव से नक्सली चले गए, लेकिन एक मैदान में आज भी नक्सलियों का स्मारक बना है।
चांदामेटा के पास जंगलों में पत्थरों से ये स्ट्रक्चर बना है। गांववाले बताते हैं कि इसे नक्सलियों ने बनाया था। नक्सलियों के जाने के बाद भी ये स्ट्रक्चर बचा हुआ है।
छिंदगुर के रहने वाले बुदरु राम बताते हैं, ‘इस जगह नक्सली ट्रेनिंग देते थे। गांववालों को मीटिंग में बुलाते थे। आना-जाना, कोई भी काम उनसे पूछकर करना पड़ता था। CRPF कैंप बनने के बाद स्थिति बदली है। अब रात में 12 बजे भी आ-जा सकते हैं।’
बुदरु कहते हैं, ‘मैं नक्सलियों से मिलने जाता था। वे चावल वगैरह मंगाते थे। हम लोगों को देना पड़ता था।’
सरपंच बोले- अच्छे स्कूल चाहिए, फिर सब ठीक हो जाएगा सुखमन चांदामेटा के सरपंच हैं। खुद पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन चाहते हैं कि उनके इलाके में स्कूलों की हालत सुधर जाए। कहते हैं, ‘अभी टीचर कभी-कभी आते हैं। एक स्कूल में एक टीचर हैं। पढ़ाई की स्थिति सुधर जाए, तो बहुत कुछ ठीक हो जाएगा। कुछ साल पहले यहां BSNL का टावर लगा था। माओवादियों के विरोध की वजह से पहले दिन ही बंद हो गया।’
बस्तर में नक्सलियों के लौटने का खतरा चांदामेटा के बारे में बस्तर के जिला पंचायत CEO प्रतीक जैन कहते हैं कि कैंप बनने से पहले वहां स्कूल, आंगनवाड़ी, सड़क, बिजली, कुछ नहीं था। कैंप बनने के बाद लोग खुश हैं। यहां धीरे-धीरे सरकार की योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं।
प्रतीक जैन बताते हैं, ‘अप्रैल 2025 से केंद्र सरकार ने बस्तर जिले को लिगेसी एंड थ्रस्ट डिस्ट्रिक्ट्स की लिस्ट में रखा है। पहले ये नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल था। लिगेसी एंड थ्रस्ट का मतलब होता है कि पहले यहां नक्सलवाद रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये वापस नहीं आ सकता। हमें अलर्ट रहना पड़ेगा।’
‘बस्तर जिले में आखिरी नक्सल हमला हुए तीन-चार साल हो चुके हैं। इसलिए सरकार ने जिले को इस कैटगरी में रखा है।’
IG बोले- गांववाले हमारे साथ, अब हालात पहले से बेहतर चांदामेटा से नक्सलियों के भागने और CRPF के कैंप बनाने पर हमने IG राकेश अग्रवाल से बात की।
सवाल: चांदामेटा पहुंचना और उसे सुरक्षित करना कितना मुश्किल रहा? जवाब: चांदामेटा ऊंचाई पर बसा है। हम शुरुआत में वहां गए, तो गांववालों के मन में शंका थी। उन्हें डर था कि सिक्योरिटी फोर्स उनके साथ गलत करेगी। हमारा कैंप बन गया, तो गांववाले हमारे साथ घुल-मिल गए।
सवाल: चांदामेटा नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर था। उनकी तरफ से कैसा विरोध हुआ? जवाब: हम काफी फोर्स लेकर गए थे, इसलिए नक्सली जवाबी कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं थे। वे वहां से भाग गए। हमने अपना कैंप उसी जगह बनाया, जहां उनकी ट्रेनिंग होती थी।
सवाल: क्या अब भी चांदामेटा में नक्सलियों के लौटने का खतरा है? जवाब: अभी हालात सामान्य हैं। अगर उन्हें कोई नक्सली गतिविधि नजर आती है, तो वे तुरंत हमें बताते हैं।
बस्तर डिवीजन के 4 जिले अति नक्सल प्रभावित बस्तर जिला होने के अलावा डिवीजन भी है। इस डिवीजन में छत्तीसगढ़ के सात जिले कांकेर, बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, बीजापुर और सुकमा आते हैं। इनमें कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर और सुकमा अति नक्सल प्रभावित जिले हैं।
मार्च 2024 तक छत्तीसगढ़ में अति नक्सल प्रभावित जिले की कैटेगरी में सात जिले थे। अप्रैल, 2025 तक ये 4 रह गए। इस कैटेगरी में झारखंड का पश्चिम सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला भी शामिल है।
अगली स्टोरी में 21 जून को पढ़िए और देखिए अबूझमाड़ में नक्सलियों के खिलाफ सिक्योरिटी फोर्स का LIVE ऑपरेशन ………………………………. कैमरामैन: अजित रेडेकर ……………………………….
‘नक्सलगढ़ से भास्कर’ सीरीज की स्टोरी यहां पढ़िए