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छत्तीसगढ़ में विराजमान काले हनुमानजी की मूर्ति: भिलाई में गोबर वाले बजरंगबली, रतनपुर में देवी रूप में पूजा; जानिए कहानी और धार्मिक मान्यताएं – Chhattisgarh News


देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं प्रचलित है। प्राचीन और पुरातात्विक प्रदेश छत्तीसगढ़ में भी देवी-देवताओं को लेकर कई अलौकिक प्रतिमाएं हैं।

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इनमें शिवरीनारायण और रतनपुर जैसे धार्मिक और पुरातात्विक नगर शामिल हैं, जहां हनुमान जी की अनोखी प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें काले हनुमानजी की मूर्ति, देवी स्वरूपा और गोबर वाले हनुमान जी भी हैं।

हनुमान जन्मोत्सव पर दैनिक भास्कर की इस रिपोर्ट में जानिए उन प्रतिमाओं की कहानी और धार्मिक मान्यताएं…

काले हनुमान जी की मूर्ति जो शिवरीनारायण के एक मंदिर में स्थापित है।

  • शिवरीनारायण में काले हनुमानजी की मूर्ति

अमूमन मंदिरों, चित्रों और मूर्तियों में भगवान हनुमान को केसरिया रंग में ही देखा गया है। उन पर पक्के सिंदूर को चढ़ाने की ही परंपरा है। लेकिन, जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण एक स्थान ऐसा भी है, जहां हनुमान जी कि प्रतिमा काली है। इसके पीछे एक रोचक कहानी भी है।

लंका दहन की थकान दूर करने होती है मालिश

यह मूर्ति काले रंग के पत्थर से बनी है। इसे लंका दहन हनुमान भी कहा जाता है। यहां उनकी प्रतिदिन पूजा तिल या चमेली के तेल से की जाती है। उनके शरीर की मालिश की जाती है, ताकि लंका दहन की थकान दूर हो सके।

आग से झुलसे व्यक्ति का जिस तरह उपचार किया जाता है और उसकी तपन दूर की जाती है, ठीक उसी विधि से उनकी पूजा की जाती है। यहां हनुमानजी की पूजा करते समय हर दिन तिल या चमेली के तेल से मालिश की जाती है। ताकि, उन्हें शीतलता मिल सके।

शिवरीनारायण से जुड़ी कुछ और पौराणिक और धार्मिक कथाएं भी जानिए-

इसे छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी स्थान पर प्राचीन समय में भगवान जगन्नाथ जी की तीनों प्रतिमाएं स्थापित रही थी। बाद में इनको जगन्नाथ पुरी में ले जाया गया था।

इसी आस्था के फलस्वरूप माना जाता है कि आज भी साल में एक दिन भगवान जगन्नाथ यहां आते हैं। इसके साथ ही रामायण के समय से यहां शबरी आश्रम स्थित है।

रतनपुर का गिरजाबांध हनुमान मंदिर

  • देश के इकलौते हनुमानजी, जहां देवी रूप में होती है पूजा-

पूरे देश में छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जहां बजरंग बली की देवी के रूप में पूजा की जाती है। बिलासपुर जिले के रतनपुर के गिरजाबंध में यह दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर है।

मान्यता है कि राम-रावण युद्ध के समय जब रावण के भाई अहिरावण ने छल से राम-लक्ष्मण को बंदी बना लिया था। तब उन्हें छुड़ाने हनुमानजी पाताल लोक में गए थे।

यहां आराध्य देवी कामदा देवी की मूर्ति में प्रवेश कर हनुमानजी ने अहिरावण का वध किया था। यहां हनुमान के उसी रूप की पूजा होती है। हर मंगलवार और शनिवार को भक्तों का तांता लगा रहता है।

राजा को कुष्ठ रोग से मिली मुक्ति

यहां हनुमान जी की देवी के रूप में पूजा करने के लिए एक और पौराणिक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार, 10वीं शताब्दी के काल में रतनपुर के एक राजा पृथ्वी देवजू थे, जो हनुमान जी के भक्त थे। राजा को जब कुष्ठ रोग हो गया। तब राजा अपने जीवन से निराश और हताश हो गए थे।

एक रात हनुमान जी राजा के सपने में आए और मंदिर बनवाने के लिए कहा। मंदिर बनने के बाद हनुमान जी फिर से राजा के सपने में आए और अपनी प्रतिमा को रतनपुर में ही स्थित महामाया कुंड से निकालकर मंदिर में स्थापित करने को कहा।

राजा ने वहां से प्रतिमा निकलवाई यह प्रतिमा देवी के रूप में थी। इसे राजा ने भगवान के आदेश के अनुसार मंदिर में स्थापित कराया। तभी से इसकी देवी के रूप में पूजा हो रही है। मंदिर बनवाने के बाद राजा रोग मुक्त हो गए।

देवी स्वरूप में हनुमान जी की प्रतिमा

राम-लक्ष्मण कंधे पर विराजमान, पैर के नीचे दबा है अहिरावण

हनुमान जी की यह प्रतिमा दक्षिणमुखी है। इनके बाएं कंधे पर श्री राम और दाएं पर लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षस दबे हुए हैं। जिनमें एक को अहिरावण माना जाता है।

मुख्य पुजारी तारकेश्वर महराज बताते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो। देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।। जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत संहारो।

ये प्रतिमा किसने बनवाई इसका कोई प्रमाण नहीं है। बुजुर्गों से हमने सुना है कि, रामायण काल में भगवान बजरंग बली के एक रूप का जिक्र मिलता है, उसी देवी रूप में ये प्रतिमा मिली और तब से पूजा हो रही है। इसे संकटमोचन हनुमान कहा जाता है।

बाबा रुक्खड़ नाथ स्वामी महाराज की प्रतिमा

  • भिलाई के गोबर वाले हनुमान जी की महिमा

भिलाई के जामुल थाना के नारधा गांव में स्थित गोबर वाले हनुमान जी की महिमा और कहानी भी अनोखी है। गोबर वाले हनुमान जी की प्रतिमा को तपस्वी बाबा रुक्खड़ नाथ गिरी महाराज ने बनाया था। जिन्हें श्री रुक्खड़ स्वामी महाराज के नाम से जाना जाता है।

इस प्रतिमा को उन्होंने गौ-माता के गोबर से बनाया था। तब से इसे गोबर वाले हनुमान जी बोला जाता है। वास्तविक रूप से बाबा रुक्खड़ नाथ महाराज के आश्रम में विराजी इस प्रतिमा को पश्चिममुखी हनुमान मंदिर बोला जाता है।

गोबर वाले हनुमान जी का यह मंदिर 350 साल से भी अधिक पुराना है। यह प्रतिमा अभी भी सुरक्षित है और रुक्खड़ नाथ स्वामी के वंशज सुरेंद्र गिरी महाराज इनकी पूजा करते हैं। सुरेंद्र गिरी महाराज ने बताया कि रुक्खड़ स्वामी पंचदशनाम जूना अखाड़ा काशी वाराणसी से अपने शिष्य मौनी गिरी, दत्त गिरी और दौलत गिरी के साथ आए थे।

यहीं बैठकर तपस्या करने लगे। उस समय खैरागढ़ और नागपुर के राजा इनसे मिलने के लिए आते थे। इसलिए इस जगह को गढ़ का रूप दिया गया।

रुक्खड़ नाथ बाबा की वंशावली का वंश वृक्ष

तिजरा ज्वर को कंबल में उतार कर रख लिया था बाबा ने

उन्होंने बताया कि, एक बार खैरागढ़ के महाराज रुक्खड़नाथ बाबा से मिलने के लिए आए थे। उस समय उन्हें तिजरा नाम का बुखार था। इस पर बाबा ने एक कंबल मांगा और उसमें तिजरा ज्वर को उतार कर रख दिया।

जब राजा ने पूछा कि उनका कंबल कांप क्यों रहा है, तो बाबा ने बताया कि इस कंबल में तिजरा नाम के ज्वर को रखा है, आपसे चर्चा के बाद इसे फिर से धारण कर लेंगे। इसके बाद राजा उनके भक्त हो गए।

आज भी जल रही अग्निकुंड की आग

350 साल से जल रही पवित्र अग्नि

सुरेंद्र गिरि महाराज ने आश्रम में एक ऐसा अग्निकुंड दिखाया जो लगभग 350 साल से लगातार जल रहा है। इस अग्नि को बाबा रुक्खड़ महाराज ने जलाया था और तब से इसमें लगातार लकड़ी रखी जाती है और यह अग्नि कभी नहीं बुझी। इस कुंड की भभूत को यहां प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।

गोबर वाले हनुमानजी की आस्था और कहानी

निसंतान को होती संतान की प्राप्ति

बाबा रुक्खड़नाथ महाराज के आश्रम के बारे में कहा जाता है कि जो व्यक्ति यहां सच्चे मन से कुछ मांगने पहुंचता है और बाबा और बजरंगबली के चरणों में माथा टेकता है उसकी इच्छा पूर्ति होती है। निसंतान दंपती को संतान तक की प्राप्ति हो जाती है।

बाबा रुक्खड़नाथ का समाधि स्थल

पवित्र कुंड के पानी से बनवाया पकवान

राजा की सेना और उनके लोगों को खाना खिलाने के लिए बाबा ने अपने शिष्यों को आदेश दिया। भक्तों के पास उस समय पूड़ी बनाने के लिए घी नहीं था। इस पर बाबा ने आश्रम के कुंड से जल निकाला और कढ़ाई में डाल दिया। पानी वहां डलते ही घी के रूप में बदल गया। यह कुंड आज भी आश्रम में स्थित है और इसका पानी इतना पवित्र है कि इससे स्नान करने से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है।

मंदिर में हर दिन होती भव्य आरती और पूजन दूर दूर से पहुंचते हैं लोग

अब जानिए हनुमान जयंती पर प्रदेश भर के आयोजन-

  • रायपुर के राजीव गांधी चौक छोटापारा स्थित संकट मोचन हनुमान समिति द्वारा सुबह 8 बजे हवन पूजन। दोपहर 12 बजे भंडारा (प्रसाद वितरण), शाम 7 बजे चालीसा पाठ और महाआरती होगी।
  • रायपुर स्टेशन रोड के सर्वधर्म संकट मोचन मंदिर में सुबह अभिषेक-शृंगार कर दोपहर 12 बजे महाआरती की जाएगी। इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाएगा। शाम को लेजर-शो और आतिशबाजी की जाएगी।
  • गोलबाजार स्थित श्री बजरंग नवयुवक मित्र मंडल हनुमान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना के बाद शाम 7 बजे पालकी में हनुमान जी की शोभायात्रा निकाली जाएगी।
  • महामृत्युंजय वीर हनुमान मंदिर बूढ़ापारा में सुबह 5 बजे हनुमान जी की आरती जाएगी। सुबह 8 बजे श्रृंगार आरती और मालपुआ का भोग लगाया गया। यहां दिनभर भंडारा होगा और शाम 7.30 बजे महाआरती होगी।
  • सालासर बालाजी मंदिर में हनुमान जी को सवामणी भोग अर्पित किया जाएगा। इस अवसर पर मंदिर को आकर्षक फूलों और फलों से सजाया जाएगा। मंदिर में भजन-कीर्तन के साथ दोपहर 3.30 बजे सुंदर कांड का पाठ, शाम 7 बजे से भजन संध्या का आयोजन होगा।
  • बिलासपुर के रामसेतु चौक सरकंडा में शनिवार शाम 6:30 बजे से श्री हनुमान चालीसा महापाठ और 5100 भक्तजनों के लिए महाभंडारा।
  • डोंगरगढ़ में हनुमान जयंती पर तीन दिवसीय महोत्सव का आयोजन होगा। इसमें शनिवार को भव्य बाइक रैली का आयोजन किया गया है। वहीं शुक्रवार शाम को शहर में भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी।
  • हनुमान जयंती के अवसर पर शहर के विभिन्न मंदिरों में भंडारा प्रसाद वितरण भी किया जाता है। पूरे शहर को भगवा ध्वज से सजाया भी गया है।
  • पेंड्रा में हनुमान जयंती पर करीब एक दर्जन स्थानों पर आयोजन किए जा रहे हैं। पेंड्रा में भयहरण हनुमान मंदिर और गौरेला में पुराने गौरेला से भव्य शोभायात्रा निकलेगी।



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