उनको उनके समर्थक छोटे सरकार कहते हैं। नेता जी को भी इससे काफी खुशी मिलती है। छोटे सरकार अब बाहर आ गए हैं। आरजेडी का मजा भी ले चुके हैं और जेडीयू का भी। दोनों पार्टी के बड़का-बड़का नेता की तारीफ भी कर चुके हैं।
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आज कल जेडीयू की तरफ हैं। काफी दिनों से जेल के अंदर थे। अब बाहर आने के बाद लगातार एक्टिव हैं। क्षेत्र में यात्रा कर रहे हैं। लोगों से मिल रहे हैं। कई तरह के कार्यक्रम करवा रहे हैं। जिधर जा रहे हैं, समर्थक माला लेकर उनका स्वागत कर रहे हैं।
यात्रा के दरम्यान कुछ दिन पहले वे बच्चों के सरकारी स्कूल के बाहर गेट पर खड़े हो गए। समर्थकों ने नारा लगाया और बच्चों को प्रेरित किया। बच्चे भी छोटे सरकार जिंदाबाद के नारे लगाने लगे।
बच्चे तो भोले-भाले हैं। उन्हें क्या पता वे क्या कर रहे हैं, लेकिन जिन लोगों ने बच्चों से छोटे सरकार के नारे लगवाए, उनका जमीर नहीं जागा? खैर बच्चों की नारेबाजी से छोटे सरकार के चेहरे पर खुशी छा गई। इसका वीडियो खबरों में भी खूब चला। शिक्षा विभाग ने भी इसे देखा ही होगा।
यह वीडियो देखने के बाद यूजर्स बोले- इसी तरह बिहार में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। एक ने तो चुटकी ली और कहा, सिलेबस में काहे नहीं शामिल करवा दे रहे बड़े सरकार, छोटे सरकार को।
2. कमीशनवा के लिए डेडलाइनवा तो घटाना न पड़ेगा
नेता जी के पास शहर को सुंदर बनाने का जिम्मा है। युवा हैं, और शहर में ही पले-बढ़े हैं तब पूरे जोश के साथ अपनी जिम्मेदारी में लगे रहते हैं। आए दिन कार्यों की समीक्षा करते रहते हैं। कभी दफ्तर में बुलाकर अधिकारियों को फटकार लगा देते हैं तो कभी ग्राउंड पर अचानक निरीक्षण करने पहुंच जाते हैं।
जब से विभाग का जिम्मा संभाले हैं, खुद भी दौड़ रहे हैं और अधिकारियों को भी सचिवालय की कुर्सी से उठाकर लेग वर्क करने पर मजबूर कर दिए हैं।
इन दिनों राजधानी में दो काम बहुत जोर-शोर से चल रहा है। एक तो मेट्रो निर्माण और दूसरा नाला निर्माण। एक दिन शहर के बाहरी क्षेत्र में चल रहे नाला निर्माण कार्य का जायजा लेने मंत्री जी पूरे ताम-झाम के साथ पहुंच गए। वहां मंत्रालय कोषांग से लेकर सचिवालय कोषांग तक हर प्रकार के अधिकारी मौजूद थे।
कार्य की प्रगति रिपोर्ट पेश की गई, लेकिन मंत्री जी कार्य की इस प्रगति से प्रसन्न नहीं हुए। उन्होंने अधिकारियों और इंजीनियरों को फटकार लगा दी। वॉर्निंग के साथ नाला बनाने का काम पूरा करने के लिए 15 नवंबर की डेट दे दी।
इंजीनियर बाबू के पास हां में सिर हिलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने फटकार को अधिकार के साथ स्वीकार किया और डेडलाइन की तारीख में हां में हां मिला दी।
इसके बाद मंत्री जी का काफिला वहां से हांय-हांय करते हुए निकल गया। उनके जाते ही काम को करा रहे ठेकेदार ने कहा, सब कमीशन का खेला है। जब तक डेटवा आगे-पीछे नहीं करेंगे तब तक कमीशनवा ऊपर-नीचे कैसे होगा। बाकी काम प्रगति पर है और जारी रहेगा।
3. माननीय के साथ फोटो के लिए होड़
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता है, जातीय महापुरुषों की कद्र बढ़ने लगती है। जयंती से लेकर पुण्य तिथि तक उनकी याद में कईॉ कार्यक्रम आयोजित रखे जाते हैं। उनकी जाति के लोगों का जमावड़ा लगाकर ये साबित करने की कोशिश की जाती है कि उनके सच्चे अनुयायी वही हैं।
इस बार बात यहीं तक नहीं रुक रही है। जब से कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का सम्मान मिला है, हर जाति के नेता अपने शीर्षस्थ नेता को सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिलाने की होड़ में जुट गए हैं।
कोई इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं तो कोई यात्रा निकाल रहे हैं तो कोई प्रतिमाएं स्थापित कर रहे हैं। अलग बात है उद्देश्य विधानसभा में एक सीट भर हासिल करना है।
इस सप्ताह ऐसी ही शख्सियत की जयंती मनाई गई। शहर की सबसे पुरानी पार्टी के कार्यालय में जलसा हुआ। देश भर की दिग्गज हस्तियां यहां जुटीं। कार्यक्रम प्रतिमा के अनावरण का था, लेकिन नेताओं के बीच दिल्ली से आए नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने की होड़ मच गई।
हर कोई उनके बगल में खड़े होकर फोटो खिंचवाना चाह रहा था ताकि सोशल मीडिया पर अपनी जनता के बीच अपनी दावेदारी मजबूत कर ले। नतीजा खूब धक्का-मुक्की हुई। नेता जी भूल गए कि वे माननीय हैं। इसका खामियाजा कार्यक्रम को कवर करने गए कई पत्रकारों को भुगतना पड़ा। बेचारे किसी तरह माननीय की भीड़ से खुद को बचा पाए।
4. हुजूर हाथ जोड़ रहे
उन्होंने हाल के कुछ महीनों के बीच दो बार अफसरों के आगे हाथ जोड़े। बड़े आदमी इस तरह से हाथ जोड़े तो लोगों का आश्चर्य होना स्वाभाविक है। किसी जमाने में जिनका वे खूब विरोध करते थे, उनके पैर छूते भी लोग देख चुके हैं, तब भी खूब आश्चर्य हुआ था।
जब हथेली अपने हाथ में ली तब भी लोग सकते में थे। ऐसे वक्त में विपक्ष को बोलने का मौका मिलता रहा है। क्या हुआ- क्या हुआ की आवाज आने लगी।
उससे अलग हाल के दिनों में अपराध को लेकर इतने सवाल उठने लगे कि लगा पुलिस कप्तान का हटना जरूरी हो गया है। वे गए, नए आए। इसके बावजूद विपक्ष को बोलने का मुंह मिलता रहा।
नतीजा बड़े ने नए के सामने हाथ जोड़ा और सवाल किया जो काम कहे हैं वह करिएगा ना। पुलिस कप्तान ने निश्चित किया कि आप चिंता मत कीजिए हुजूर।
हुजूर की चिंता इस बात को लेकर है कि उपचुनाव तो हो ही रहा है, अगले साल विधानसभा चुनाव भी होना है। एक भी गड़बड़ा गया तो पब्लिक बड़ी सुनाएगी। क्या मुंह लेकर चुनाव में जाएंगे। साथी पार्टी के एगो नेता अलगे त्रिशूल लेकर घूम रहे हैं।
5. और अब आखिरी में…राहत की सांस
बिहार में कहा जाता है कि काम या तो राजा करेंगे, नहीं तो फिर उनके अफसर। इधर, डिप्टी साहब भी अफसरशाही के शिकार हो गए। एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा। फिर तो तीखापन समझ सकते हैं।
बड़ी सेटिंग और शौक से भारी भरकम विभाग पाए थे, लेकिन होनी को कौन टालता है। जितना बड़ा प्रोफाइल मिला था, उसे भारी भरकम उन्हें अफसर थमा दिया गया। नतीजा डिप्टी साहब अपने क्षेत्र में एक की नई नींव नहीं रख पाए। क्षेत्र के लोगों से इज्जत बचाए फिर रहे।
हालांकि, कहा जाता है बुरे वक्त के बाद अच्छे दिन आते हैं। फिर क्या था, समय बीता। अच्छे दिन आए। भारी भरकम चले गए। अब डिप्टी साहब को चैन मिली है। भारी भरकम बोझ हटाने के बाद डिप्टी साहेब कुर्सी पर रिलेक्स मोड में आए।
कुर्सी पर बैठकर मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं। मुस्कुराहट का राज विभाग के तमाम कर्मचारी समझ रहे हैं। चेहरे की चमक पर चर्चा भी हो रही है।