8 अप्रैल 1857 का दिन आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले लोगों के नाम दर्ज है। इसमें एक नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडे का भी था। पांडे को 30 साल की उम्र में फांसी दी गई थी। 6 अप्रैल को कोर्ट मार्शल करने के बाद 7 अप्रैल को उनकी सजा मुकर्रर की गई
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शहीद मंगल पांडे की मौत से पहले उनकी जो चार्जशीट तैयार की गई थी, उसकी ओरिजिनल प्रति आज भी जबलपुर स्थित भारतीय सेना के आर्मी ऑर्डिनेंस कोर म्यूजियम में सुरक्षित रखी हुई है। इसी म्यूजियम में शहीद मंगल पांडे की बंदूक भी रखी है। 8 अप्रैल 1929 को ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंका था।
शहीद मंगल पांडे की उस समय की तस्वीर जब उन्हें अंग्रेजी सरकार ने फांसी दी थी।
उत्तरप्रदेश में हुआ था मंगल पांडे का जन्म शहीद मंगल पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवां गांव में 19 जुलाई 1827 को हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मे मंगल पांडेय के पिता दिवाकर पांडे थे। सिर्फ 22 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में मंगल पांडे का चयन हो गया था। बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 34वीं बटालियन में शामिल हुए थे। कहते हैं कि ‘अंत ही आरंभ है’ और मंगल पांडेय के जीवन का अंत ही स्वाधीनता संग्राम का आरंभ था। 1857 के विद्रोह की शुरुआत तो सिर्फ बंदूक की गोली की वजह से हुई। लेकिन इसका परिणाम ऐसा होगा कि आजादी मिलने तक जारी रहेगा, ये किसी ने नहीं सोचा था। अंग्रेजी शासन ने मंगल पांडे को इन्फील्ड राइफल दी थी, जिसका निशाना अचूक था।
बंदूक से शुरू हुआ था विवाद
शहीद मंगल पांडे को मस्कट ML इन्फील्ड 577 IN-M 1856 दी गई थी। बंदूक में गोली भरने के लिए कारतूस को दांतों से खोलना होता था। मंगल पांडे ने इसका विरोध कर दिया था, क्योंकि ऐसी बात फैल चुकी थी कि कारतूस में गाय व सुअर के मांस का उपयोग किया जा रहा है। मंगल पांडेय का यही विद्रोह अंग्रेजी सरकार को पसंद नहीं आया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। मंगल पांडेय को तय तिथि से 10 दिन पहले 08 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई, क्योंकि ऐसी आशंका जताई गई कि उनकी फांसी से हालात बिगड़ सकता है। मंगल पांडेय ने अपने अन्य साथियों से भी इसका विरोध करने के लिए कहा और ऐसा ही हुआ। फांसी के लिए मुकर्रर तारीख से 10 दिन पहले ही उन्हें चुपके से फंदे से लटका दिया।
MUSKET ML ENFIELD M-1856 जिसे कि मंगल पांडे चलाया करते थे।
चार्जशीट पर यह आरोप तय हुए थे 18 मार्च 1857 को फोर्ट विलियम में इकट्ठे हुए जनरल कोर्ट मार्शल की और सोमवार 6 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में फिर से इकट्ठे हुए। सिपाही मंगल पांडे, नंबर 1446, 5वीं कंपनी 34वीं रेजिमेंट को इन आरोपों में दोषी ठहराया गया था।
चार्ज- 1 : शहीद मंगल पांडे पर पहला चार्ज लगा था कि 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में तलवार और कस्तूरी से लैस होकर मंगल पांडे अपनी रेजिमेंट के क्वार्टर गार्ड के सामने परेड ग्राउंड में गए और तब अपनी रेजिमेंट के लोगों को अपने साथ विरोध करने के लिए शामिल होने उकसाने वाले शब्दों का उपयोग किया था।
चार्ज – 2 : आरोप में बताया गया कि 34वीं रेजिमेंट पैदल सेना के वरिष्ठ अधिकारी सार्जेंट मेजर जेम्स, थॉर्नटन हेवसन और लेफ्टिनेंट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी के खिलाफ हिंसा की और उन पर अपनी भरी हुई बंदूक को गिरा दिया, इसके बाद अपनी तलवार से सार्जेंट मेजर हेवसन पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया।
इसी एओयू म्यूजियम में रखी हुई है मंगल पांडे की ओरिजिनल फांसी की चार्जशीट।
शहीद मंगल पांडे नंबर- 1446 जो कि 34वीं रेजिमेंट नेटिव इन्फेंट्री में पदस्थ थे, उनके खिलाफ दोनों आरोप साबित हो गए। जिसके बाद अदालत ने पांडे को तब तक फांसी पर लटकाए रखने की सजा सुनाई, जब तक वह मर न जाए। शहीद मंगल पांडे को फांसी देने के लिए जो चार्जशीट अप्रैल 1857 में उन्हें मिली थी, वह 168 साल बाद भी सेना के मटेरियल मैनेजमेंट कॉलेज के आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प म्यूजियम में पूरी तरह से सुरक्षित रखी हुई है।