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जब गोल्डन टेंपल में टैंकों ने बरसाए 80 गोले: विरोध ऐसा कि 45 मिनट में आर्मी को बदलनी पड़ी रणनीति, 8 दिन चलती रहीं गोलियां – Amritsar News


पंजाब के अमृतसर में गोल्डन टेंपल में इस साल ब्लू स्टार ऑपरेशन की 41वीं बरसी है। ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना के सबसे विवादित सैन्य अभियानों में से एक था, जो 1 से 8 जून 1984 के बीच चला।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर शुरू हुए इस ऑपरेशन की कमान लेफ्टिनेंट जनरल के. एस. बराड़ के हाथ में थी। ऑपरेशन का मकसद गोल्डन टेंपल में पनाह लेकर बैठे जरनैल सिंह भिंडरांवाला को बाहर निकालना था।

पंजाब में टेररिज्म बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले इस ऑपरेशन और उससे जुड़े किरदारों के बारे में आइए जानते हैं….

इंदिरा ने बताया था कि आखिर क्यों चलाना पड़ा ये विवादित ऑपरेशन 1980 के दशक की शुरुआत में पंजाब में अलगाववादी आंदोलन तेज हुआ। जरनैल सिंह भिंडरांवाला व हथियारबंद समर्थकों ने गोल्डन टेंपल परिसर को अपना गढ़ बनाया।

ऑपरेशन को लीड करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल के. एस. बराड़ अपनी किताब ऑपरेशन ब्लू स्टारः द ट्रू स्टोरी में एक जगह लिखते हैं-”ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना के लिए सबसे कठिन और संवेदनशील अभियानों में से एक था। हमें न केवल आतंकवादियों से निपटना था, बल्कि एक पवित्र धार्मिक स्थल की मर्यादा भी बनाए रखनी थी।”

बीबीसी के सीनियर जर्नलिस्ट रहे मार्क टली और सतीश जैकब ने अपनी किताब ‘अमृतसरः मिसेज गांधी लास्ट बैटल’ में लिखा- “सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को एक सैन्य आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक जटिलताएं और निर्णय प्रक्रिया कहीं अधिक गहरी और जटिल थीं।”

निरंकारी टकराव के बाद उभरा भिंडरावाला पंजाब में अकाली-जनता पार्टी सरकार के कार्यकाल के दौरान 13 अप्रैल 1978 को अमृतसर में निरंकारी पंथ का सम्मेलन हो रहा था। इस दौरान अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच झड़प हो गई। जिसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए।

इसके बाद रोष दिवस के दौरान सिखों के विरोध प्रदर्शन में धर्म प्रचार संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। सिखों के साथ हो रहे कथित भेदभाव को लेकर गर्मी भरे भाषणों से भिंडरांवाला की लोकप्रियता बढ़ती चली गई।

भिंडरांवाला समर्थकों के साथ चौक महता गुरुद्वारे को छोड़कर पहले गोल्डन टेंपल में गुरु नानक निवास और फिर सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से प्रचार करने लगे। अप्रैल 1983 में डीआईजी एएस अटवाल की दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। उनका शव गोल्डन टेंपल परिसर के पास मिला।

कितनी जान गईं, आज तक अलग–अलग दावे 10 दिन चले इस ऑपरेशन में कितने लोग हताहत हुए, इसका सही आंकड़ा आज तक सामने नहीं आया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 500 से अधिक लोग मारे गए। गैर-सरकारी सूत्रों ने आंकड़ा ज्यादा बताया।

बराड़ लिखते हैं कि करीब 100 से ज्यादा सैनिक मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए। सैकड़ों सिविलियन और कट्टरपंथी लड़ाके मारे गए। कई निर्दोष तीर्थयात्री भी फंसे और मारे गए। मार्क टली व सतीश अपनी किताब में बताते हैं कि लगभग 492 सिविलियन व उग्रवादी मारे गए थे। सेना के 83 जवान शहीद हुए और 220 से अधिक सैनिक घायल हुए।

ऑपरेशन से सिखों में आक्रोश फैला, खुशवंत सिंह ने सम्मान लौटाया गृह मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारी एन.एन. वोहरा की कमेटी ने रिपोर्ट में लिखा था कि इस ऑपरेशन ने केंद्र और सिखों के बीच विश्वास को गहरा नुकसान पहुंचाया। पंजाब में आतंकवाद ने फिर सिर उठाया और कानून-व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ गई।

बहुत से सिखों ने इसे न केवल धार्मिक भावनाओं पर हमला माना, बल्कि गोल्डन टेंपल में सेना भेजने को पवित्रता का उल्लंघन माना। खुशवंत सिंह जैसे बड़े-बड़े राइटर्स ने केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें दिए बड़े-बड़े सम्मान लौटा दिए थे।

सिख अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ किताब में रामचंद्रा गुहा ने लिखा-ऑपरेशन ब्लू स्टार के करीब चार महीने बाद, 31 अक्टूबर 1984 की सुबह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी। हमले के समय वे अपने सफदरजंग रोड आवास से ऑफिस की ओर जा रही थीं। बेअंत सिंह ने पांच गोलियां चलाईं जबकि सतवंत सिंह ने स्टेनगन से 25 से अधिक राउंड फायर किए। हत्या का कारण गोल्डन टेंपल में सैन्य कार्रवाई को लेकर आक्रोश था। सिख विरोधी दंगे भड़के, हजारों जाने गईं

देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़के इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तो देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। खासकर दिल्ली में, जिनमें हजारों सिखों की हत्या हुई। दुकानें और घर जलाए गए, महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ। कई क्षेत्रों में पुलिस और राजनीतिक संरक्षण के आरोप भी लगे। सनम सुतिरथ वज़ीर की किताब ‘द कौर्स ऑफ 1984’ में 1984 के दंगों में सिख महिलाओं के खौफनाक अनुभवों का जिक्र है।

जनरल एएस वैद्य की भी हत्या की गई रामचंद्र गूहा और जगदीप सिंह चीमा की ‘द सिख सेप्रेटिस्ट इनसरजेंसी इन इंडिया’ के अनुसार ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय भारतीय थलसेना प्रमुख रहे जनरल अरुण श्रीधर वैद्य ने सेवानिवृत्ति के बाद पुणे में रहना शुरू किया। 10 अगस्त 1986 को वे अपनी कार से जा रहे थे। तभी बाइक सवार दो युवकों सुखदेव सिंह गिल और हरजिंदर सिंह उर्फ जिंदा ने उन्हें गोली मार दी। हत्या को सिख उग्रवादियों द्वारा बदले की कार्रवाई बताया गया। यह वही हरजिंदर सिंह था, जिसे बाद में इंदिरा गांधी की हत्या की साजिश में भी दोषी ठहराया गया और 1992 में फांसी दी गई।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जनरल एएस वैद्य (सबसे दाएं) ने सैन्य अधिकारियों के साथ गोल्डन टेंपल का दौरा किया। 2 साल बाद वैद्य की 2 सिख युवकों ने पुणे में हत्या कर दी थी। SGPC ने 10 अक्टूबर 2012 को इन दोनों युवकों के परिजनों को सम्मानित किया था।

बड़ा सवाल- क्या भिंडरावाला ने कभी खालिस्तान नहीं मांगा पूर्व लॉ एंड जस्टिस मिनिस्टर सुब्रमण्यम स्वामी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें भिंडरांवाला से मिलने का मौका मिला। उनसे पूछा कि आप खालिस्तान क्यों चाहते हो। भिंडरावाला का जवाब था, मैं खालिस्तान नहीं चाहता। वे देने के लिए तैयार हैं तो मैं मना क्यों करूं।

मार्क टली और सतीश जैकब की किताब में भी लिखा गया है कि भिंडरांवाला सार्वजनिक रूप से कहते थे कि उन्होंने खालिस्तान की मांग नहीं की है। हालांकि भिंडरांवाला की भाषा, रवैया और क्रियाएं ऐसी थीं जो अलगाववाद को बढ़ावा देती थीं।

अकाल तख्त में सभा को संबोधित करते हुए जरनैल सिंह भिंडरांवाला।

दावा कितना सच्चा…इंदिरा ने ही भिंडरावाला को शह दी ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले ले. जनरल कुलदीप बराड़ ने कुछ साल पहले एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू से सबको चौंका दिया था। जिसमें कहा कि भिंडरांवाला को इंदिरा गांधी की शह मिली थी और उसे रोकने में देरी की गई।

इंटरव्यू में कहा कि पंजाब का माहौल बिगड़ रहा था। खालिस्तान की मांग उठने लगी थी। भिंडरांवाला का पंजाब में रुतबा बढ़ने लगा था। भिंडरांवाला को केंद्र सरकार की पूरी शह मिल रही थी। 1980 तक सब ठीक था। 1981 से 84 तक पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति काफी अधिक बिगड़ रही थी। जब भिंडरांवाला ऊंचाइयों तक पहुंचा, तभी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हमला करने का आदेश दिया था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म होने के बाद जरनैल सिंह भिंडरांवाला की बॉडी शिनाख्त के लिए अकाल तख्त पर रखी गई थी।

आर्मी को डर था पुलिस खालिस्तान का समर्थन करेगी जनरल बराड़ ने जानकारी दी कि आर्मी के इस ऑपरेशन में पुलिस को नहीं जोड़ा गया था। आर्मी को डर था कि पुलिस भी खालिस्तान का समर्थन करेगी। इसलिए आर्मी ने पुलिस को डिस-आर्म कर दिया था। सरहद पर आर्मी खड़ी कर बॉर्डर सील किया गया ताकि पाकिस्तान आर्मी इसका फायदा उठाने की कोशिश ना करे। इनपुट था कि जैसा भारत ने बंगलादेश में किया, वैसा ही पाकिस्तान की आर्मी भारत के पंजाब में कर सकती है।



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