राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इस साल अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष (100वां साल) मना रहा है। इसमें संघ यूपी समेत देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा हिंदू सम्मेलनों की हो रही है। संघ इसके जरिए हिंदुओं को एकजुट करने का
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संघ का जातियों को एकजुट करने के पीछे क्या मकसद है, पहले कब-कब ऐसी कोशिश की, क्यों भाजपा के लिए यह जरूरी है, इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए-
सवाल 1- हाल में संघ ने जातियों की एकजुटता को लेकर क्या बयान दिया?
जवाब- संघ प्रमुख मोहन भागवत से लेकर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने हाल के कुछ दिनों में जातियों को एकजुट करने को लेकर बयान दिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में करना चाहता है।
2 अप्रैल: गाजियाबाद में RSS के स्थापना के शताब्दी वर्ष की तैयारियों को लेकर पश्चिमी और ब्रज क्षेत्र की समन्वय बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ शामिल हुए। सीएम की उपस्थिति में तय हुआ कि स्वयंसेवक घर-घर जाकर जातियों में बंटे लोगों को एक करने का काम करेंगे और अनेकता में एकता का संदेश देंगे।
6 अप्रैल: RSS प्रमुख मोहन भागवत 4 दिन के वाराणसी दौरे पर पहुंचे। उन्होंने कहा- श्मशान, मंदिर और पानी, सब हिंदुओं के लिए एक होना चाहिए। इसी लक्ष्य के साथ संघ काम कर रहा है।
हिंदू समाज के सभी पंथ, जाति, समुदाय साथ आएं। यही संघ की परिकल्पना है। संघ का मतलब सबकी मदद करना और युवा शक्ति को सही दिशा देना है।
6 अप्रैल: वाराणसी में ही अपने एक दूसरे कार्यक्रम में उन्होंने कहा- मुसलमान RSS तभी जॉइन कर सकते हैं, जब वे भारत माता की जय के नारे लगाएं और भगवा झंडा की इज्जत करें।
भारत के सभी संप्रदायों, समुदायों और जातियों के लोगों का संघ की शाखाओं में स्वागत है, सिवाय उन लोगों के जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं।
वाराणसी दौरे के दौरान बाबा विश्वनाथ की पूजा-अर्चना करते सरसंघचालक मोहन भागवत।
सवाल 2- RSS शताब्दी वर्ष में जातियों को एकजुट करने के लिए क्या कर रही?
जवाब- RSS ने पिछले साल अक्टूबर में शारदीय नवरात्र से शताब्दी वर्ष मनाने की घोषणा की थी। 100 साल पहले 1925 में RSS की स्थापना हुई थी। शताब्दी वर्ष में संघ ने देश सहित पूरे यूपी में कई कार्यक्रम करने की योजना बनाई थी। इसके तहत ही संघ यूपी समेत पूरे देश में हिंदू सम्मेलनों का आयोजन करेगा।
इसमें संघ गांव की छोटी से छोटी बस्तियों में हिंदू सम्मेलन करेगा। गृह संपर्क अभियान की शुरुआत की जाएगी। इसमें संघ की विचारधारा को हर एक घर तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।
सामाजिक समरसता का संदेश दिया जाएगा। इसमें दलित बस्तियों पर फोकस ज्यादा रहेगा। विजय दशमी के दिन राज्य में पूर्ण गणवेश में पथ संचलन कर संघ शक्ति प्रदर्शन भी करेगा।
शताब्दी वर्ष में RSS के इन कदमों को सपा के PDA (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। ये सभी अभियान सितंबर 2026 तक चलेंगे। 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव है, लिहाजा जातियों को एकजुट करना मकसद है।
सवाल 3- संघ जातियों को एकजुट करने पर जोर क्यों दे रहा?
जवाब- लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की हार की प्रमुख वजह आरक्षण और संविधान के मुद्दे को माना गया। इंडी गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में माहौल बनाया कि अगर भाजपा को 400 सीटें मिलीं, तो अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग का आरक्षण खत्म हो जाएगा।
भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो वह संविधान बदल देगी। इससे सबसे ज्यादा नुकसान पिछड़ों और दलितों को होगा। चुनाव में यह मुद्दा दलितों और पिछड़ों के घर-घर तक पहुंच गया।
नतीजा- यूपी, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा। लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार बनाने का भाजपा का सपना साकार नहीं हुआ। संघ और भाजपा को आशंका है कि यूपी में दलितों और पिछड़ों के बीच अभी भी यह मुद्दा जिंदा है।
इसी को लेकर अब संघ ने दलितों-पिछड़ों के साथ ग्रामीण इलाकों में राष्ट्रवाद के मुद्दे को धार देने की कमान संभाली है। साथ ही संघ विपक्ष के एजेंडे को भी गलत साबित करेगा।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सुनीता एरन कहती हैं कि RSS का दलितों और पिछड़ों के बीच ज्यादा फोकस है, क्योंकि हिंदू वोट बैंक दलितों की भागीदारी के बिना अधूरा है।
बता दें, 2011 की जनगणना के मुताबिक देश भर में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में है।
प्यू रिसर्च सेंटर के 2021 के आंकड़ों को मुताबिक उत्तर प्रदेश में हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ने की दर उच्चतम है। दूसरे नंबर पर बिहार है।
बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद मोहन भागवत काल भैरव के दर्शन के लिए पहुंचे।
सवाल 4- जातिगत जनगणना को लेकर RSS का क्या रुख रहा है?
जवाब- पिछले साल जातिगत जनगणना को लेकर छिड़ी बहस के बीच सितंबर, 2024 में केरल के पलक्कड़ में संघ की 3 दिवसीय अखिल भारतीय स्वयंसेवक बैठक हुई थी।
इसमें संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इस मुद्दे को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें उन्होंने कहा था- RSS को लगता है कि सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए विशेष रूप से जो जाति पिछड़ रही है, उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
इसके लिए अगर सरकार को कभी आंकड़ों की जरूरत है, तो यह एक स्थापित परंपरा है। इससे पहले भी सरकार ने इस तरह के काम किए हैं। इसलिए आगे भी कर सकती है।
लेकिन, यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। इसे चुनावी राजनीति के उपकरण के तौर पर नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इस बयान पर विपक्षी दलों ने संघ को घेर लिया था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार किया था कि RSS साफ बताए कि वो जातिगत जनगणना के पक्ष में है या विरोध में?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पूछा था- जातीय जनगणना को लेकर आरएसएस की उपदेशात्मक बातों से कुछ बुनियादी सवाल उठते हैं। क्या आरएसएस के पास जाति जनगणना पर निषेधाधिकार है?
सवाल 5- जाति आधारित आरक्षण को लेकर RSS का क्या रुख रहा है?
जवाब- विधानसभा चुनाव 2015 के दौरान मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कहकर विवाद खड़ा कर दिया था। चुनाव में भी यह बड़ा मुद्दा बन गया था। चौतरफा विवाद के बाद मोहन भागवत को बाद में अपने बयान को लेकर सफाई देनी पड़ी थी।
फिर आया साल 2019। तब मोहन भागवत ने कहा था- आरक्षण के विरोधी और उसके समर्थक अगर एक-दूसरे की बात समझ लेंगे तो इस समस्या का हल चुटकी में निकाला जा सकता है। इस बयान पर भी विवाद खड़ा हो गया था।
एक बार फिर RSS ने सफाई देते हुए कहा था कि संघ का आरक्षण से विरोध नहीं है। आरक्षण के मुद्दे पर सर्वसम्मति से बात होनी चाहिए। संविधान को न मानने के आरोप पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने 2018 में दिल्ली में एक सभा में कहा था कि संविधान हमारे लोगों ने तैयार किया और ये संविधान हमारे देश का कंसेंसस (आम राय) है।
इसलिए संविधान के अनुशासन का पालन करना सबका कर्तव्य है। संघ इसको पहले से ही मानता है। हम स्वतंत्र भारत के सब प्रतीकों का और संविधान की भावना का पूर्ण सम्मान करके चलते हैं।
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