सुबह के 9 बजे हैं। कानपुर का अटल घाट, गंगा दशहरा की भीड़ से गुलजार है। श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं, मंत्रोच्चार गूंज रहा है, लेकिन पास ही परमिया नाले का काला, बदबूदार पानी गंगा में समा रहा है। हमारे ड्रोन कैमरे ने साफ दिखाया—14 MLD (मिलियन लीटर प्रति
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ऐसा ही नजारा हमें प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में भी दिखा। मां गंगा और यमुना, ये दो नदियां नहीं, भारत की आत्मा हैं। लेकिन आज इनकी सांसें उखड़ रही हैं। कानपुर की औद्योगिक गंदगी और केन-बेतवा लिंक परियोजना का खतरनाक खेल इन पवित्र नदियों को निगलने को तैयार है।
गंगा यात्रा के चौथे पड़ाव में हमने कन्नौज से कानपुर होते हुए प्रयागराज के बीच तकरीबन 343 किमी का सफर किया। हमने देखा कि कैसे हमारी लापरवाही और लालच इन नदियों को मौत के मुंह में धकेल रहे हैं। नमामि गंगे परियोजना पर 40 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च होने के बावजूद गंगा निर्मल क्यों नहीं बन पाई। पढ़िए रिपोर्ट…
अटल घाट से चंद कदम दूरी पर परमिया नाले का गंदा पानी गंगा में गिरता दिखा।
कानपुर: गंगा में जहर, अटल घाट पर आस्था की लाचारी
कानपुर से करीब 9 किलोमीटर दूर अटल घाट है। यहां हमें एक महिला कचरा बीनती दिखीं। ये संजीवनी शर्मा हैं। पेशे से डेंटिस्ट और कानपुर प्लॉगर्स की संस्थापक। 211 हफ्तों से हर रविवार वो और उनकी 970 लोगों की टीम गंगा घाटों की सफाई करती है।
संजीवनी की आंखों में गुस्सा और दर्द साफ दिखता है। उनकी आवाज में आक्रोश है, वो कहती हैं कि– कानपुर में ही गंगा सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है। यहीं से गंगा आगे प्रयागराज और बनारस जैसे तीर्थों की ओर जाती है, लेकिन हम उसे गंदगी का बोझ थमा देते हैं।
संजीवनी की कहानी दिल को छूती है। वो बताती हैं, ‘मेरा बचपन प्रयागराज में गंगा के किनारे बीता। नाना के साथ गंगा स्नान, लौटते वक्त कचौड़ी-जलेबी की यादें मेरे दिल में बसी हैं। मैं अपने बेटे को भी वही यादें देना चाहती थी, लेकिन 6 मार्च 2021 को जब मैं उसे विसर्जन घाट ले गई तो गंगा की गंदगी देखकर मेरे अंदर की डाॅक्टर और एक मां इस बात के लिए तैयार नहीं हो पाई कि मेरे बच्चे को यहां नहाने दूं। तब मुझे लगा कि हम लोग प्रकृति और मां गंगा से बहुत दूर जा चुके हैं। मैंने ठान लिया कि गंगा को साफ करने के लिए मुझे और किसी का इंतजार नहीं करना।’
उनकी इस मुहिम को पीएम मोदी ने दिसंबर 2024 में ‘मन की बात’ में सराहा, लेकिन सवाल ये है—क्या सिर्फ तारीफ से गंगा साफ हो जाएगी?
गंगा स्नान करने पहुंची सुषमा शर्मा ने घाट की गंदगी देखकर अपना आक्रोश व्यक्त किया।
घाट पर बुजुर्ग श्रद्धालु सुषमा त्रिपाठी का गुस्सा भी फूट पड़ा। वो चीखकर कहती हैं, ‘लोग गंगा में नहाते हैं, लेकिन अपनी गंदगी छोड़कर चले जाते हैं। आधा शहर गंगा का पानी पीता है, फिर भी इसे गंदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।’ सुषमा की बात सच है। कानपुर की 30 लाख आबादी हर दिन 600 MLD से ज्यादा पानी इस्तेमाल करती है, और इसका ज्यादातर हिस्सा बिना ट्रीटमेंट के नालों के सीवेज के रूप में गंगा में बहाया जा रहा है।
कानपुर में डपकेश्वर नाले की गंदगी देख आप का दिल बैठ जाएगा।
कानपुर में 3 बड़े नाले और चमड़ा फैक्ट्रियों का जहर गंगा में गिर रहा
कानपुर में गंगा को 26 नाले गंदा कर रहे हैं। इनमें से 18 सीधे गंगा में और 8 पांडु नदी में गिरते हैं। प्रशासन दावा करता है कि सीसामऊ जैसे 6 बड़े नालों को टैप कर लिया गया है, और 509 MLD सीवेज को ट्रीटमेंट के बाद गंगा में छोड़ा जा रहा है। लेकिन हकीकत है कि– 3 नाले अभी भी अनटैप्ड हैं, और इनका जहरीला पानी बिना रुके गंगा को मार रहा है।
जाजमऊ में हालात और बदतर हैं। यहां 400 रजिस्टर्ड चमड़ा फैक्ट्रियां गंगा को जहरीला बना रही हैं। डपकेश्वर नाले का काला, मटमैला पानी गंगा में मिल रहा है, और दूर तक फैल चुकी जलकुंभी इसकी गवाही देती है।
बलराम नाविक का कहना है कि जहरीले पानी के कारण मछलियां मर रहीं।
गंगा यात्रा में हमारे सहयोगी बने बलराम गंगा में नाव चलाकर परिवार पालते हैं। वह कहते हैं, ‘नाले का पानी इतना गंदा है कि मछलियां खुद-ब-खुद मर जाती हैं। गंगा का किनारा हमेशा दूषित रहता है।’
यहां से हम शीतला बाजार पहुंचे। यहां हर घर एक छोटा-मोटा चमड़ा कारखाना है। कानपुर में चमड़ा फैक्ट्रियों का जहरीला कचरा सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। यहां के नाले का पानी बिना ट्रीटमेंट के गंगा में जा रहा है। पास में 20 MLD का कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) और 130, 43, 36 MLD के तीन एसटीपी बने हैं, लेकिन इनकी क्षमता नाकाफी है।
चमड़ा फैक्ट्रियों की गंदगी सीधे गंगा में शीतला बाजार के पास प्रवाहित की जा रही है।
नाले के पास सांस लेना मुश्किल है, बदबू गले को चीरती है। चमड़े को साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन—क्रोमियम, सल्फर, और भारी धातुएं सीधे गंगा में डाले जा रही हैं। वाजिदपुर में CETP के पास नाले के ऊपर ही फैक्ट्रियां खड़ी हैं, ताकि गंदगी को छिपाया जा सके। नाले का काला पानी, जो सड़े मांस जैसा बदबू मारता है, सीधे गंगा को काला कर रहा है।
यूपीपीसीबी की रिपोर्ट : कानपुर में नहाने लायक नहीं गंगा जल
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कानपुर के तीन स्थानों के गंगा जल की रिपोर्ट जारी की गई है। इसमें बिठूर, कानपुर बैराज और शेखपुर गांव के पास से सैम्पल लिया गया था। 9 जून को लिए गए इस गंगा जल सैम्पल की रिपोर्ट में तीनों स्थानों पर बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) निर्धारित 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक मिला। इसी तरह फीकल कोलीफॉर्म प्रति 100 मिलीलीटर में अधिकतम 2500 की बजाय 3100 से 3500 के बीच मिला। मतलब साफ है कि ये गंगा जल पीना तो छोड़िए नहाने लायक भी नहीं है।
9 जून को कानपुर के तीन स्थानों से लिए गए गंगा जल के सैम्पल की रिपोर्ट।
गंगा विचार मंच के को–आर्डिनेटर अनिल सिंह और कानपुर में गंगा जिला समिति के सदस्य उमेश निगम के मुताबिक 2016 में तत्कालीन जलशक्ति मंत्री उमा भारती ने नाव से घाटों का निरीक्षण किया था। तब गंगा में मिल रहे नालों की गंदगी देख, उनका भी दिल भर आया था।
उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक गंगा को स्वच्छ नहीं बना दूंगी, चैन से नहीं बैठूंगी। लगा कि वह बड़बोलेपन में ऐसा बोल गईं। पर 9 साल में बदलाव तो दिख रहा है। बिठूर से जाजमऊ तक 16 घाटों का रेनोवेशन हो या नालों में एसटीपी बनाना हो। तीन एसटीपी बनने के बाद हम दावा कर पाएंगे कि हमने शहर की 95 प्रतिशत नालों का सीवेज गंगा में मिलने से रोक दिया।
प्रयागराज: संगम पर गंदगी, यमुना की सांसें थमने को तैयार
कानपुर से 250 किमी नदी के साथ चलकर हम संगम नगरी प्रयागराज पहुंचे। यहां गंगा और यमुना का पवित्र संगम है, लेकिन ये संगम भी अब खतरे में है। प्रयागराज में यमुना की धार ही सूखने की कगार पर है।
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगले 20–25 साल में गंगा-यमुना का पवित्र संगम इतिहास बन जाएगा। शहर के 81 नालों में से 48 गंगा में और 33 यमुना में गिरते हैं। 54 नालों को टैप्ड करने का दावा है, लेकिन 138 MLD सीवेज अभी भी बिना ट्रीटमेंट के नदियों में छोड़ा जा रहा है।
प्रयागराज संगम नोज में अब भी 35 से 40 हजार श्रद्धालु प्रतिदिन पहुंच रहे हैं।
प्रयागराज में ही महाकुंभ लगता है। इस बार के महाकुंभ में सीपीसीबी की रिपोर्ट पर काफी हंगामा हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया था कि महाकुंभ के दौरान संगम का जल नहाने लायक नहीं है।
17 फरवरी को CPCB ने एनजीटी के चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव के पैनल को बताया था कि महाकुंभ के दौरान गंगा-यमुना की पानी में उच्च मात्रा में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया (Fecal Bacteria) मिला है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में बताया गया था कि पानी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 100 मिलीलीटर पानी में 2,500 यूनिट से बहुत ज्यादा मिली है। राज्य सरकार के नकारने और काफी किरकिरी के बाद सीपीसीबी की ओर से दूसरी रिपोर्ट जारी कर बताया गया कि जल नहाने लायक है।
सलोरी का सीवेज गंगा को तो फूलमंडी का नाला यमुना को दूषित कर रहा।
संगम नगरी में गंगा–यमुना के जल क्यों दूषित हो रहे हैं, इसका सच जानने के लिए हम सबसे पहले प्रयागराज की फूलमंडी पहुंचे। यहां पास में ही यमुना में एक बड़ा नाला दिखा।
प्रशासन का दावा है कि पानी ट्रीटमेंट के बाद छोड़ा जाता है, लेकिन नाले से निकलता झाग सच बयां कर रहा है। फिर हम गंगा में मिल रहे नालों का हाल देखने सलोरी पहुंचे। यहां दो एसटीपी (14 MLD और 29 MLD) चालू मिला, और तीसरा 43 MLD का बन रहा है। लेकिन इनकी क्षमता शहर के सीवेज को संभालने के लिए काफी नहीं है।
फिर हम संगम नोज पहुंचे। संगम में अब भी हर दिन 35-40 हजार श्रद्धालु डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं। वे अपने साथ फूल, माला, थर्माकोल, और प्लास्टिक का कचरा भी लाते हैं। गंगा यहां घुटनों तक सिमट चुकी है, जबकि यमुना गहरी लेकिन शांत दिखीं। एक नाविक ने बताया, ‘लोग आस्था के नाम पर कचरा फेंकते हैं। हम रोकते हैं, तो झगड़ा करते हैं। गंगा की गंदगी देखकर दिल दुखता है।’
प्रयागराज संगम नोज पर सोना-चांदी तलाशते लोग।
साल के 365 दिन लगातार नौ घंटे पानी में रहते हैं रजनीकांत सहित हजार लोग
संगम नोज पर हमें कुछ ऐसे लोग नजर आए, जो घाट किनारे नदी के उथले जल भरे रेत में कुछ तलाश रहे थे। उनके बीच से अचानक से शोर उठती थी कि मुझे सोना मिला। जिज्ञासा शांत करने मैं उनके पास पहुंचा। रेत में कुछ तलाश रहे रजनीकांत से हमने पूछा कि वे क्या कर रहे है? बोले- लोग गंगा मइया को सोना, चांदी पैसे आदि चढ़ाते रहते हैं। हम लाेग उसे ही तलाशते हैं। रजनीकांत को आज सोने की नथनी का एक टुकड़ा मिला है।
रजनीकांत की तरह संगम नोज पर दोनों किनारों पर हजार लोग इसी तरह से पैसे, सोना, चांदी आदि ढूंढ़ते हैं। रजनीकांत के साथ उथले रेत में पैसे आदि तलाश रहे बाली, मुंह से कुछ सिक्के और चांदी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हैं। कहते हैं कि गंगा मइया कुछ न कुछ देती रहती हैं। बिछिया, पायल, पैसे अक्सर मिल जाते हैं। इस काम में हजार से अधिक लोग शामिल हैं।
बाली के मुताबिक, हम लोग सुबह 8 से शाम 5 बजे तक इसी तरह साल के 365 दिन पानी में रहकर पैसे आदि तलाशते रहते हैं। इसी से हमारा गुजारा चलता है। बारिश के दिनों में भी ये क्रम जारी रहता है। बस घाट बदल जाता है।
40 हजार करोड़ खर्च, फिर भी गंगा गंदी क्यों?
नमामि गंगे परियोजना में 40 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं, लेकिन गंगा साफ क्यों नहीं हुई? एनजीटी याचिकाकर्ता कमलेश सिंह इसका कारण बताते हैं। वो कहते हैं, ‘एसटीपी की क्षमता शहरों के सीवेज से कम है। 1991 की जनगणना के आधार पर बने प्लान 20 साल बाद लागू हुए, जब आबादी दोगुनी हो चुकी थी।’
प्रयागराज में राजापुर का 60 MLD एसटीपी 90 MLD सीवेज को नहीं संभाल पाता। सलोरी में 43 MLD के दो एसटीपी को 75 MLD सीवेज मिलता है। निमियाडीह में 50 MLD का एसटीपी 90 MLD सीवेज से जूझ रहा है। नतीजा? अतिरिक्त सीवेज सीधे गंगा में पहुंच रहा है।
केन-बेतवा लिंक से यमुना के अस्तित्व पर संकट
केन-बेतवा लिंक परियोजना गंगा-यमुना के संगम के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर, 2024 को इसकी आधारशिला रखी। एमपी के टिकरिया में 77 मीटर का बांध और 250 किमी की नहर सिंचाई के लिए बन रही है। इसी तरह चंबल को पार्वती नदी से जोड़कर राजस्थान में नहर निकाली जा रही है। जबकि केन–बेतवा और चंबल के पानी से ही यमुना, दिल्ली के बाद यमुना बनती हैं। इसके पहले तो उनका पानी पूरी तरह से प्रदूषित रहता है। इन तीन नदियों के पानी से यमुना प्रयागराज तक बहती रहती हैं।
यमुना पर ही बने यूपी के तीन पावर प्लांट 1296 क्यूसिक पानी लेते हैं, और प्रयागराज शहर में भी पेयजल के लिए 100 MLD पानी लिया जाता है। केन–बेतवा और चंबल की इन परियोजनाओं के चलते यमुना गंभीर संकट में है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का खुलासा
CPCB की रिपोर्ट चीख-चीखकर कह रही है कि उत्तर प्रदेश में 326 नालों में से 247 अभी भी अनटैप्ड हैं। ये नाले हर दिन 3513.16 MLD गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में डाल रहे हैं। गंगा बेसिन के 97 शहरों में 45 करोड़ लोग रहते हैं, और इनसे निकलने वाला 60% सीवेज बिना ट्रीटमेंट के नदियों में जा रहा है।
हरा एवं साफ दिख रहा पानी यमुना का है, जबकि मटमैला पानी गंगा का है।
41 जगहों पर जल की जांच में 17 जगहों पर फीकल कोलीफॉर्म का स्तर 2500 MPN/100 ml से ज्यादा पाया गया, जो सुरक्षित सीमा 500 MPN/100 ml से कई गुना ज्यादा है। ये आंकड़े बताते हैं कि गंगा और यमुना नदियां नहीं, बल्कि बीमारियों का स्रोत बन रही हैं।
गंगा यात्रा के सहयात्री : तुषार राय, अभिनव मिश्र, प्रकाश त्रिपाठी
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कन्नौज शहर से 15 किलोमीटर दूर है मेहंदीघाट। एक तरफ शव जल रहे, दूसरी तरफ काली नदी और गंगा के संगम पर लोग स्नान कर रहे। गंगा स्नान कर रहे लोगों के चेहरे के भाव बता रहे हैं कि मजबूरी में उन्हें ऐसा करना पड़ रहा। दरअसल, काली नदी, जो कभी नागिन की तरह लहराती थी, कालिंदी बनकर गंगा को गले लगाती थी। आज नाले की तरह सिसक रही है। यहां काली नदी का काला, बदबूदार जल और गंगा की मटमैली धारा एक-दूसरे से लिपटते हैं। मानो दोनों अपनी व्यथा साझा कर रही हों। पढ़ें पूरी खबर