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विदिशा जिला एक ऐसी मिसाल पेश कर रहा है, जहां पत्तों से न केवल पर्यावरण संरक्षण की राह प्रशस्त हो रही है, बल्कि आदिवासी समुदाय के लिए रोजगार के नए द्वार भी खुल रहे हैं। जिला प्रशासन और वन विभाग की संयुक्त पहल से शुरू हुआ दोना-पत्तल निर्माण का अभियान न सिर्फ प्लास्टिक प्रदूषण को कम कर रहा है, बल्कि सैकड़ों आदिवासी परिवारों को आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रहा है। यह पहल विदिशा को पर्यावरण और रोजगार के संतुलन का प्रतीक बनेगी।
जिला कलेक्टर अंशुल गुप्ता नेतृत्व में शुरू इस मुहिम को वन विभाग के डीएफओ हेमंत यादव और उदयगिरि विकास समिति मिलकर गति दे रहे हैं। इस पहल के तहत आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में पत्तों का संग्रह, दोना-पत्तल का निर्माण और उनकी पैकेजिंग का कार्य संगठित रूप से होगा। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश के अनुभूति जैसे बड़े आयोजनों और शासकीय कार्यक्रमों में विदिशा के दोना-पत्तल का उपयोग अनिवार्य किया जा रहा है। इससे जिले की पहचान बढ़ने के साथ-साथ स्थानीय समुदाय की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी।
परंपरा को नई पहचान, आय में इजाफा उदयगिरि विकास समिति के माध्यम से स्थानीय आदिवासी पत्तों का संग्रह कर रहे हैं, जिन्हें क्रय कर पैकेजिंग के बाद विभिन्न स्थानों पर आपूर्ति की जाएगी। समिति की एक सदस्य, राधा बाई ने बताया पहले पत्ते बेचकर कुछ ही पैसे मिलते थे, लेकिन अब प्रशिक्षण और नियमित ऑर्डर ने हमारी आय बढ़ा दी है।