Homeबिजनेसधीरूभाई अंबानी और रतन टाटा का जन्मदिन आज: टाटा ने सबसे...

धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा का जन्मदिन आज: टाटा ने सबसे सस्ती कार बनाई, धीरूभाई ने सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स; तीन इनोवेशन्स


मुंबई24 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

आज यानी 28 दिसंबर को भारत के 2 बड़े बिजनेस टायकून्स का जन्मदिन है। रतन टाटा… एक ऐसी शख्सियत जिन्होंने उन्हें सौंपी गई विरासत को एक नए मुकाम पर पहुंचाया। मिडल क्लास के लिए देश की सबसे सस्ती कार बनाई तो वहीं विदेशी कंपनी फोर्ड के लग्जरी कार ब्रांड लैंडरोवर और जगुआर को पोर्टफोलियो में जोड़ा। आज उनका 87वां जन्मदिन है।

वहीं धीरूभाई अंबानी का ये 92वां जन्मदिन है। उन्होंने कपड़े के कारोबार से एक ऐसी कंपनी खड़ी की जिसका सफर एनर्जी, रिटेल से लेकर मीडिया-एंटरटेनमेंट और डिजिटल सर्विस में फैल गया है। ये कंपनी आज सुबह के नाश्ते से रात के बिंज वाच तक जिंदगी का हिस्सा है।

इस स्टोरी में रतन टाटा और धीरू भाई अंबानी के इनोवेशन्स…

रतन टाटा

1. इंडिका: 30 दिसंबर 1998 में लॉन्च हुई थी​​​​​​​ भारत की पहली स्वदेशी कार

भारत की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका 30 दिसंबर 1998 में लॉन्च हुई थी। यह कार रतन टाटा की लीडरशिप में डेवलप की गई थी, जो उनके इंडियन मार्केट के लिए एक अफोर्डेबल और पैसेंजर एफिशिएंट कार बनाने के सपने का हिस्सा थी।

हालांकि, शुरू में लॉन्च किए गए मॉडल में कुछ मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट थे। ऐसे में टाटा ने अधिकारियों की एक मीटिंग बुलाकर, सॉल्यूशन पर काम करना शुरू किया। शॉर्ट टर्म के लिए, यह फैसला लिया गया कि कंपनी कंट्रीवाइड कस्टमर कैंप्स लगाकर सभी ख़राब हिस्सों को बदलेगी।

इस पर भारी भरकम 500 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इसके साथ ही, इंजीनियर्स ने मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट को दूर करने पर काम शुरू किया और 2001 में इंडिका V2 लान्च की। यह भारतीय इतिहास की सबसे सफल कारों में से एक बन गई। कंपनी ने इस कार का प्रोडक्शन 2018 में बंद कर दिया।

2. नैनो: बारिश में भीगते परिवार को देखकर बना दी लखटकिया कार

एक इंटरव्यू में रतन टाटा से पूछा गया कि एक लाख रुपए की कार बनाने का आइडिया उन्हें कहां से आया। उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत से भारतीय परिवारों को स्कूटर पर सवारी करते देखता था। लोग स्कूटर से चलते थे, उनके आगे एक बच्चा खड़ा होता था, पीछे पत्नी बच्चे को बांहों में लिए बारिश में भीगी फिसलन वाली सडकों पर सफर करती थीं। हादसे का खतरा होता था।

मैंने सोचा कि ये एक परिवार के लिए कितना खतरनाक सफर है। क्या हम ऐसे परिवारों को एक सुरक्षित सवारी दे सकते हैं। इसके बाद हमने एक नई छोटी एक लाख रुपए की कार बनाने का फैसला किया।’

हालांकि, ये इतना आसान नहीं था। 18 मई 2006 को रतन टाटा ने ऐलान किया कि वे पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में टाटा नैनो कार का प्लांट लगाएंगे। तब पश्चिम बंगाल में CM बुद्धदेब भट्टाचार्य की अगुआई वाली लेफ्ट की सरकार थी। विपक्ष में थीं ममता बनर्जी।

बुद्धदेब ने नैनो प्रोजेक्ट का स्वागत किया, लेकिन ममता प्रोजेक्ट के लिए जमीनों के अधिग्रहण के विरोध में धरने पर बैठ गईं। ममता की भूख हड़ताल 24 दिन चली। एक हजार एकड़ जमीन अधिगृहीत की जा चुकी थी, लेकिन विरोध के चलते काम शुरू नहीं हो पाया।

3 अक्टूबर 2008 को रतन टाटा को ऐलान करना पड़ा कि वह नैनो का प्लांट सिंगूर से कहीं और ले जाएंगे। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा का गुजरात में स्वागत किया। उन्होंने 3.5 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से टाटा को प्लांट लगाने के लिए 1100 एकड़ जमीन ऑफर की।

कुछ ही दिनों में गुजरात के सानंद प्लांट पर नैनो नाम की लखटकिया कार बनकर तैयार हो गई। 10 जनवरी 2008 को दिल्ली के ऑटो एक्सपो में इसे लॉन्च किया गया, इसके बेस मॉडल की कीमत करीब 1 लाख रुपए रखी गई। सेल्स गिरने के बाद 2019 में इसे बंद कर दिया गया।

3. एका: भारत का पहला सुपर कंप्यूटर

भारत के पहले सुपर कंप्यूटर ‘एका’ (EKA) को टाटा संस की सहायक कंपनी कम्प्यूटेशनल रिसर्च लेबोरेटरीज (CRL) ने 2007 में डेवलप किया था। यह भारत में हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। ‘एका’ संस्कृत शब्द है, जिसका मतलब ‘एक’ है।

एका सुपर कंप्यूटर के डेवलपमेंट में रतन टाटा सीधे तौर पर शामिल नहीं थे, लेकिन टाटा ग्रुप के चेयरमैन के रूप में उनकी सोच और विजन ने इस प्रोजेक्ट को हकीकत बनाने में अहम भूमिका निभाई। रतन टाटा हमेशा भारत को टेक्नोलॉजिकली सेल्फ रिलायंस बनाने के पक्ष में थे।

सुपर कंप्यूटर जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट को बढ़ावा देकर उन्होंने भारत को हाई परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) में ग्लोबल स्टेज पर खड़ा करने का प्रयास किया। रतन टाटा की ग्लोवल विजन ने “एका” को सिर्फ एक नेशनल प्रोजेक्ट तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे इंटरनेशनली कॉम्पिटेटिव बनाया। 2007 में इसे दुनिया के टॉप 500 सुपर कंप्यूटरों में चौथे स्थान पर रखा गया, जो भारत के लिए गर्व का क्षण था।

धीरूभाई अंबानी

1. टेक्सटाइल: भारत की पहली पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न से क्रांति

धीरूभाई अंबानी ने पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न के प्रोडक्शन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने और इसे ग्लोबली कॉम्पिटिटिव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इस सेक्टर में क्रांति लाकर भारतीय कपड़ा उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न एक सिंथेटिक फाइबर होता है, जो पॉलिएस्टर से बनाया जाता है। इसका इस्तेमाल कपड़ों और टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स (जैसे साड़ियों, ड्रेस मटेरियल, और होम टेक्सटाइल्स) को बनाने में होता है। यह टिकाऊ, लो-मेंटेनेंस और सस्ता ऑप्शन होता है, जो प्राकृतिक फाइबर्स जैसे कपास और रेशम के ऑप्सन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

1966 में अंबानी ने सरकार से पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न की मैन्युफैक्चरिंग का लाइसेंस लिया। उस समय भारत में PFY का प्रोडक्शन सीमित था और इसे विदेशों से इंपोर्ट किया जाता था। उन्होंने PFY प्रोडक्शन के लिए मार्डन टेक्नोलॉजी और मशीनरी का इस्तेमाल किया।

धीरूभाई ने PFY का इस्तेमाल करके विमल ब्रांड के तहत टेक्सटाइल प्रोडक्ट बनाए, जो भारतीय बाजार में बहुत पॉपुलर हुए। उन्होंने भारतीय बाजार को समझते हुए न केवल हाई क्वालिटी के प्रोडक्ट बनाए, बल्कि इन्हें सस्ती कीमतों पर उपलब्ध कराया।

पहले भारत को PFY के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन धीरूभाई के प्रयासों ने भारत को PFY प्रोडक्शन में आत्मनिर्भर बना दिया। उनका मानना था कि इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री को वर्ड क्लास बनाने के लिए सिंथेटिक फाइबर्स और PFY में महारत हासिल करनी होगी।

2. पेट्रोकेमिकल्स: दुनिया के सबसे बड़े पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स की स्थापना

1980 के दशक में रिलायंस ने पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में कदम रखा। जब कंपनी को टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए पॉलिएस्टर फाइबर और यार्न का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए रॉ मटेरियल ( PTA और MEG) की आवश्यकता महसूस हुई, तब पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स की स्थापना की गई।

इससे कंपनी को कच्चे माल के लिए इंपोर्ट पर निर्भरता खत्म करने और लागत घटाने में मदद मिली। रिलायंस ने पहला बड़ा पेट्रोकेमिकल्स कॉम्प्लेक्स गुजरात के हजीरा में स्थापित किया था, जहां पॉलिएस्टर स्टेपल फाइबर (PSF) और पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न (PFY) का प्रोडक्शन शुरू किया गया। यह प्रोजेक्ट भारत में पेट्रोकेमिकल्स के घरेलू उत्पादन का आधार बनी।

जामनगर रिफाइनरी आज दुनिया की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी है।

3. टेलीकम्युनिकेशन : रिलायंस कम्युनिकेशंस से भारत का टेलीकॉम सेक्टर बदला

धीरूभाई अंबानी ने 1990 के दशक में टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री करने का फैसला किया। उनका उद्देश्य था कि कम लागत में हर भारतीय तक कम्युनिकेशन सर्विस पहुंचाई जा सकें। धीरूभाई ने समझा कि टेलीकॉम भारत की इंडस्ट्रियल और सोशल प्रोसेस के लिए एक प्रमुख सेक्टर होगा।

भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद निजी कंपनियों को टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री लेने की अनुमति दी गई। धीरूभाई ने इस अवसर को पहचाना और रिलायंस को इस सेक्टर में लीडर बनाने की योजना बनाई।

2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी और छोटे बेटे अनिल अंबानी ने टेलीकॉम क्षेत्र में उनके विजन को आगे बढ़ाया। 2005 में जब दोनों भाइयों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच बंटवारा हुआ, तो अनिल के हिस्से टेलिकॉम सेक्टर आया था।

बंटवारे में तय हुआ कि अगले 10 साल तक मुकेश अंबानी टेलिकॉम इंडस्ट्री में दखल नहीं देंगे, लेकिन अनिल अंबानी ने बिजनेस में ऐसे फैसले लिए जो उनकी कंपनियों के लिए घातक साबित हुए।

आखिरकार वित्तीय संकट के चलते 2019 में रिलायंस कम्युनिकेशंस ने दिवालियापन का आवेदन किया। हालांकि, 2016 में धीरूभाई के बड़े बेटे मुकेश ने रिलायंस जियो बनाई जो आज देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी है।

अब दोनों बिजनेस टायकून्स से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें…

रतन 21 साल चेयरमैन रहे, टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना बढ़ा

  • 1962 में फैमिली बिजनेस जॉइन किया था। शुरुआत में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया। इसके बाद वे मैनेजमेंट पोजीशन्स पर लगातार आगे बढ़े। 1991 में, जे.आर.डी. टाटा ने पद छोड़ दिया और ग्रुप की कमान रतन टाटा को मिली।
  • 2012 में 75 वर्ष के होने पर, टाटा ने एग्जीक्यूटिव फंक्शन छोड़ दिए। उनके 21 वर्षों के दौरान, टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना बढ़ गया। इसमें अधिकांश रेवेन्यू जगुआर-लैंडरोवर व्हीकल्स और टेटली जैसे पॉपुलर टाटा उत्पादों की विदेशों में बिक्री से आया।
  • चेयरमैन का पद छोड़ने के बाद उन्होंने 44 साल के साइरस मिस्त्री को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका परिवार ग्रुप में सबसे बड़ा इंडिविजुअल शेयरहोल्डर था। हालांकि, अगले कुछ वर्षों में, मिस्त्री और टाटा के बीच तनाव बढ़ गया।
  • अक्टूबर 2016 में, चार साल से भी कम समय के बाद, मिस्त्री को रतन टाटा के पूर्ण समर्थन के साथ टाटा के बोर्ड से बाहर कर दिया गया। फरवरी 2017 में नए उत्तराधिकारी का नाम घोषित होने तक टाटा ने चेयरमैन के रूप में अपना पद वापस ले लिया।

50 साल छोटे दोस्त को खुद ड्राइव कर डिनर पर ले गए

  • रतन टाटा के सबसे करीबी माने जाने वाले 30 साल के शांतनु नायडू ने भास्कर से बातचीत में उनके व्यक्तित्व के कई पहलू साझा किए थे। शांतनु टाटा ग्रुप के जनरल मैनेजर हैं। उन्होंने बताया कि मैं टाटा के साथ डिनर करने गया था।
  • वे खुद कार चलाकर मुझे मुंबई के ‘थाई पवेलियन’ ले गए थे। डिनर के दौरान मैंने टाटा से कहा, जब मैं ग्रेजुएट हो जाऊंगा, तो क्या आप मेरे दीक्षांत समारोह में आएंगे? इस पर टाटा ने कहा कि मैं पूरी कोशिश करूंगा और वे आए भी।
  • शांतनु ने कहा कि मैं कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में MBA करने अमेरिका जा रहा था, तब उनसे पहली बार मिला। उन्होंने मेरी चोट देखकर मजाक में कहा था ‘किसी डॉग ने काट लिया?’ तुरंत ही माफी मांगने लगे और कहा, बहुत खराब जोक था।

COVID-19 महामारी के समय 500 करोड़ रुपए दान दिए

रतन टाटा, ग्रुप की परोपकारी शाखा, टाटा ट्रस्ट में गहराई से शामिल थे। टाटा ग्रुप की यह आर्म शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास जैसे सेक्टर्स में काम करती है।

अपने पूरे करियर के दौरान, रतन टाटा ने यह तय किया कि टाटा संस के डिविडेंड का 60-65% चैरिटेबल कॉज के लिए इस्तेमाल हो। रतन टाटा ने COVID-19 महामारी से लड़ने के लिए 500 करोड़ रुपए का दान दिया था।

रतन टाटा ने एक एग्जीक्यूटिव सेंटर की स्थापना के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को 50 मिलियन डॉलर का दान दिया था। वे यहीं से पढ़े थे। उनके योगदान ने उन्हें विश्व स्तर पर सम्मान दिलाया, एक परोपकारी और दूरदर्शी के रूप में उनकी विरासत को और बढ़ाया है।

धीरूभाई ने भारतीयों को 600 रुपए में मोबाइल दिया

  • 1950 के दशक में धीरूभाई ने यमन में 300 रुपए प्रति माह के वेतन से शेल कंपनी के पेट्रोल पंप पर नौकरी की शुरुआत की। 2 साल में मैनेजर बन गए। इस नौकरी को छोड़कर भारत आने और खुद का काम शुरू करने का रिस्क लिया।
  • 1977 में धीरूभाई ने भारत का पहला IPO लाने का फैसला लिया4 था। 10 रुपए के भाव पर उन्होंने 2.8 मिलियन शेयर जारी किए थे। तआईपीओ 7 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ था। इसमें निवेशकों को अच्छा-खासा मुनाफा मिला।
  • धीरूभाई अंबानी के आइडिया से भारत में लोगों को कम कीमत में फोन पर बात करने की सुविधा मिली। साल 2002 में ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ स्लोगन के साथ रिलायंस ने टेलीकॉम में कदम रखा। 600 रुपए में मोबाइल और 15 पैसे प्रति मिनट की कॉल कर दी।
  • धीरूभाई अंबानी को एक शानदार टीम लीडर माना जाता था। उनकी कंपनी का एक छोटा कर्मचारी भी उनके केबिन णें आ सकता था और अपनी समस्या बता सकता था। अंबानी हर कर्मचारी की समस्या सुनते और हल करते थे।
  • धीरूभाई मानता थे कि जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। अगर सपना पूरा नहीें करेंगे, तो कोई और आपको नौकरी पर ऱक कर अपना सपना पूरा कर लेगा।

………………………………

ये खबर भी पढ़े…

रतन टाटा बचपन में माता-पिता अलग हुए, दादी ने परवरिश की; बारिश में भीगते परिवार को देखकर सबसे सस्ती कार बनाई

पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित रतन टाटा की अगुआई में ही टाटा ग्रुप ने देश की सबसे सस्ती कार लॉन्च की, तो हाल ही में कर्ज में फंसी एअर इंडिया को 18 हजार करोड़ की कैश डील में खरीदा था। बिजनेस में बेहद कामयाब रतन टाटा निजी जिंदगी में बेहद सादगी पसंद थे और मुंबई में अपने छोटे से फ्लैट में रहते थे। पूरी खबर पढ़े…

खबरें और भी हैं…



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version