प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पर जवाब देने के लिए प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा शुक्रवार को हाईकोर्ट में हाजिर नहीं हो सके। प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने उनकी हाज़िरी को लेकर माफ़ी मांगी जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने एक जुलाई की तिथि नियत की है।
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सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 42 राज्य चिकित्सा महाविद्यालयों और उनसे जुड़े अस्पतालों की बिगड़ती स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। डॉ. अरविंद गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार को एक जुलाई, 2025 को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है।
शुक्रवार को प्रमुख सचिव की हाजिरी माफी स्वीकार कर लिया।
कोर्ट ने एक जुलाई को प्रमुख सचिव को निम्नलिखित बिंदुओं पर जानकारी देने का निर्देश दिया।
उत्तर प्रदेश के 42 चिकित्सा महाविद्यालयों और उनसे जुड़े अस्पतालों की समग्र स्थिति में सुधार के लिए राज्य सरकार द्वारा क्या प्रयास किए गए है।
कोर्ट ने संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज और राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान सहित राज्य के सभी चिकित्सा महाविद्यालयों को आवंटित बजट पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
अगले कुंभ (2031 ) को ध्यान में रखते हुए स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल में मौजूदा 1250 बिस्तरों से कम से कम 3000 बिस्तरों तक चिकित्सा सुविधा को उन्नत करने के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठा रही है।
राज्य भर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करने के बारे में उठाए गए कदमों की जानकारी अदालत को दी जाए। क्योंकि वे खराब हालत में हैं, जिससे चिकित्सा महाविद्यालयों से जुड़े अस्पतालों पर भारी दबाव पड़ रहा है।
प्रयागराज क्षेत्र में संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे एक संस्थान की स्थापना राज्य सरकार विचार करे ताकि पड़ोसी जिलों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। अदालत ने टिप्पणी की कि मरीजों को लखनऊ या दिल्ली में रेफर किया जा रहा है, क्योंकि उचित बुनियादी ढांचे और दवाओं की कमी के कारण इन चिकित्सा महाविद्यालयों में उनका इलाज नहीं हो पाता है।
अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य सरकार का पूरा ध्यान राज्य की राजधानी में चिकित्सा बुनियादी ढांचे के विकास पर केंद्रित प्रतीत होता है, जिससे उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों के लोगों को चिकित्सा सहायता से वंचित किया जा रहा है और उन्हें इलाज के लिए लखनऊ या दिल्ली जाना पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि करदाताओं का पैसा पूरे राज्य में समान रूप से खर्च किया जाना चाहिए, न कि किसी विशेष शहर को चिकित्सा केंद्र के रूप में विकसित किया जाना चाहिए जबकि अन्य शहरों की उपेक्षा की जाए। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर प्रयागराज के जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस आयुक्त, नगर निगम, प्रयागराज के नगर आयुक्त, स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल, प्रयागराज के अधीक्षक प्रभारी और उप अधीक्षक, और मुख्य चिकित्सा अधिकारी, प्रयागराज को भी उपस्थित रहने का निर्देश दिया है।