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नोएडा में CBI ने मांगे चार बिल्डर परियोजना के दस्तावेज: SC के आदेश के बाद जांच शुरू,सबवेंशन स्कीम के तहत बिल्डर बैंक गठजोड़ ने बनाया बायर्स को डिफाल्टर – Noida (Gautambudh Nagar) News



केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) के तहत आने वाली कई आवासीय परियोजनाओं की प्रारंभिक जांच शुरू की है। ये जांच सबवेंशन स्कीम के मामले में की जा रही है। सीबीआई ने इस मामले में प्

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जांच के दायरे में आने वाली परियोजनाओं में सेक्टर-17ए स्थित सुपरटेक की अप कंट्री, सेक्टर-22डी में ओएसिस रियलटेक की ग्रैंडस्टैंड और YEIDA क्षेत्र के सेक्टर-25 में जेपी ग्रुप की कोव और कासिया परियोजनाएं शामिल हैं। जांच का नेतृत्व सीबीआई की आर्थिक अपराध शाखा-1 कर रही है। यह जांच सबवेंशन स्कीम (बिल्डरों, बैंकों और घर खरीदने वालों के बीच एक वित्तीय व्यवस्था) में कथित अनियमितताओं के कारण की जा रही है।

YEIDA CEO अरुण वीर सिंह ने बताया सीबीआई की ओर से मांगी गई जानकारी उपलब्ध करा दी गई है। बता दे एनसीआर में बिल्डरों की बैंकों और एनबीएफसी के बीच कथित सांठगांठ की जांच सीबीआई कर रही है । ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बायर्स की याचिका पर दिया है। यह निर्णय उन हजारों घर खरीदारों की शिकायतों के बाद आया है, जो सालों से अपने फ्लैटों का कब्जा नहीं पा सके हैं, जबकि बैंकों द्वारा उन्हें ईएमआई चुकाने के लिए बाध्य किया जा रहा है। इसमें से हजारों की संख्या में ऐसे बायर्स है जो अब डिफाल्टर की श्रेणी में आ चुके है।

इनमें सुपरटेक लिमिटेड की सभी परियोजनाएं, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे, गुरुग्राम, गाजियाबाद की परियोजनाएं तथा मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों में अन्य रियल एस्टेट विकास परियोजनाएं शामिल हैं।

बायर्स को फंसाने के लिए बिल्डर लेकर आया सबवेंशन स्कीम क्या है?

सबवेंशन स्कीम रियल एस्टेट डेवलपर्स द्वारा बैंकों के सहयोग से शुरू की गई एक भुगतान योजना थी। जिसका उद्देश्य घर खरीदने वालों के लिए संपत्ति खरीदना अधिक आसान और आकर्षक बनाना था। इस योजना के तहत खरीदार एक छोटे से शुरुआती निवेश के साथ घर बुक कर सकते थे। जबकि बिल्डर ने कब्जा मिलने तक लोन ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने की जिम्मेदारी ली थी।

सबवेंशन स्कीम कैसे काम करती है

  • घर खरीदने वाला व्यक्ति एक अग्रिम राशि का भुगतान करता था, जो आमतौर पर कुल संपत्ति लागत का 5% से 20% होता था।
  • बैंक शेष राशि के लिए होम लोन स्वीकृत करता था और कुल लागत का 80-95% सीधे डेवलपर को वितरित करता था।
  • बिल्डर परियोजना पूरी होने और कब्जा सौंपे जाने तक लोन पर केवल ब्याज (प्री-ईएमआई) का भुगतान करने के लिए सहमत हुआ।
  • जब खरीदार को संपत्ति का कब्जा मिल गया, तो उसने शेष राशि का भुगतान किया और लोन पर पूरी ईएमआई का भुगतान करना शुरू कर दिया।

कैसे बायर्स हो गए डिफाल्टर

बिल्डर की योजना में बायर्स आ गए। उन्होंने कुल लागत का 5 से 20 प्रतिशत तक पैसा बिल्डर को देकर फ्लैट बुक कराया। इसके बाद बिल्डर ने बैंक से प्रॉपर्टी पर 80 प्रतिशत का लोन दिलाया। ये लोन बिल्डर के पास गया। योजना के तहत बिल्डर को लोन की ईएमआई पर लगने वाले ब्याज का भुगतान बैंक को करना था। कुछ किस्तें भरने के बाद बिल्डर ने ब्याज देना बंद कर दिया। ये पैसा अन्य परियोजना में डायवर्ट किया। साथ ही निर्माण कार्य भी बंद कर दिया। ऐसे में बायर्स को न तो फ्लैट मिला ब्याज और किस्त जमा नहीं होने पर वो डिफाल्टर हो गया।



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