इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि स्वेच्छा से पेंशन गणना को स्वीकार करने वाले कर्मचारी को बाद में उसे चुनौती देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने चुनौती याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा तथा न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने अशोक क
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मालूम हो कि मेरठ के अशोक कुमार अग्रवाल व 48 अन्य पंजाब नेशनल बैंक से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अपनी पेंशन का एक तिहाई हिस्सा 15 साल के लिए बेच दिया था। पेंशन बहाली की अवधि को घटाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। तर्क दिया कि नेशनल बैंक (कर्मचारी) पेंशन विनियमन, 1995 में उल्लिखित 15 साल की बहाली अवधि अधिक है। इसे घटाकर 10 साल किया जाना चाहिए। भुगतान की गई एकमुश्त राशि 10-11 वर्षों के भीतर कटौती के माध्यम से वसूल हो गई है।
इसलिए 15 साल की बहाली अवधि को अनिवार्य करने का प्रावधान मनमानी है। कोर्ट ने कहा कि विकल्प चुनने से पहले शर्तों को पूरी तरह से समझने का अवसर प्रदान किया गया। एकमुश्त राशि के लिए परिवर्तित पेंशन केवल 15 वर्षों के बाद बहाल की जाएगी। यह तर्क की दी गई राशि 10 साल में ही पूरी हो जाएगी, स्वीकार नहीं है। एक बार जब याचिकाकर्ताओं ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तो इसकी गणना में बदलाव बदलाव नहीं किया जा सकता।