बड़वानी जिले के पाटी विकासखंड में गर्मी में पीने के पानी के लिए ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। राज्य सरकार नल जल योजना पर बड़ी राशि खर्च कर रही है। फिर भी यहां के लोगों को सुरक्षित पेयजल नहीं मिल पा रहा है।
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2-3 किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है
पाटी विकासखंड के चेरवी गांव के थाना फलियां में 50 से ज्यादा मकान हैं। यहां 350 से अधिक लोग रहते हैं। गर्मियों में पानी की व्यवस्था न होने से लोगों को 2-3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।
वे महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित सूखी झराल नदी से पानी लाते हैं। झिरी से डिब्बे में पानी भरना पड़ता है। कई गांवों में चेक डैम बनाए गए थे, लेकिन वे सूख गए हैं। नदी किनारे के कुएं भी सूख चुके हैं।
जलसंकट से आदिवासियों को परेशानी
कलसी बाई और मणिराज के अनुसार, आदिवासी बस्तियों की आबादी एक नाले पर निर्भर थी। अब वह नाला भी सूख गया है। इससे पूरे क्षेत्र में जल संकट गहरा गया है। प्राकृतिक जल स्रोतों के अतिदोहन से पानी खतरनाक तत्वों से प्रदूषित हो रहा है। इससे डायरिया और हैजा जैसी बीमारियां फैल रही हैं। हर साल कई लोगों की मृत्यु हो जाती है। कई इलाकों में लोग नदियों, झरनों और तालाबों से दूषित पानी भर रहे हैं। इससे उनकी जान को खतरा है।
यहां देखिए तस्वीरें….
खच्चरों पर पानी लादकर घर ले जाती हुईं आदिवासी महिलाएं।
2-3 किलोमीटर दूर पथरीले रास्ते से जाता हुआ खच्चर।
महिलाएं सिर पर घड़े में पानी रखकर पहाड़ी रास्तों से होकर जाती हुईं।
हैंडपंप के पास बैठकर ग्रामीण महिलाएं पानी के लिए इंतजार करती हुईं।
झिरी से गंदे पानी भरती हुईं आदिवासी महिलाएं।
घड़े पर कपड़े रखकर गंदे पानी को छानने का काम करती हुई महिलाएं।