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ब्लैकबोर्ड- कूड़े का पहाड़ ढहा, इकलौता बेटा मर गया: हर दूसरे घर में कैंसर पेशेंट, बदबू से दम घुटता है


मेरी बहन की कैंसर से मौत हो गई और मां को अस्थमा है। इस कॉलोनी में कई घर ऐसे हैं जिनके यहां की शादी रुक गई। लोग यहां शादी नहीं करना चाहते। मेरी बहन की जब शादी हुई तो हमने यहां से बाहर जाकर उसकी शादी की।

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हम यहीं घर पर उसकी शादी करना चाहते थे। भारी मन से हमने बाहर से शादी करने का फैसला किया। अगर यहां से शादी होती तो टूट जाती। हमने एक हफ्ते के लिए बाहर होटल में बुकिंग की। हमारे बजट से दोगुना पैसा खर्च हो गया। हम लोग कर्ज में चले गए।

शादी के बाद भी उसके ससुराल वाले यहां कभी नहीं आए। अगर बहन को घर आना होता है तो वो आज भी अकेली आती है। उसे कोई यहां छोड़ने तक नहीं आता। हम लोगों को इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि हम उसे अपने घर से विदा नहीं कर पाए।

स्याह कहानियों की सीरीज ब्लैकबोर्ड में आज कहानी गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास बसे उन लोगों की, जिनकी जिंदगी कूड़े के ढेर ने बर्बाद कर दी…. पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर ‘लैंडफिल’ साइट यानी कचरा इकट्ठा करने की जगह। इस लैंडफिल साइट के पास कई मोहल्ले बसे हैं जिनमें राजवीर कॉलोनी, मुल्ला कॉलोनी, गाजीपुर डीडीए फ्लैट भी शामिल हैं। ब्लैकबोर्ड में आज कहानी गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास बसे मोहल्ले के लोगों की परेशानियों की।

सुषमा गाजीपुर डीडीए फ्लैट में रहती हैं। वो अपने घर की छत पर बैठकर हमसे बात कर रही हैं जहां से कूड़े का पहाड़ साफ दिखता है। इसकी वजह से लोग बीमार हो रहे हैं। हर दूसरे घर में एक कैंसर पेशेंट मिल जाएगा। उनके मोहल्ले से कुछ ही दूर कूड़े की सफाई करने वाली मशीन भी लगी है। मशीन की तरफ इशारा करते हुए वो कहती हैं कि इन मशीनों से भी बहुत दिक्कत होती है। जब भी ये मशीन चलती है तो बहुत शोर होता है।

सुषमा कहती हैं कि हमारी परेशानी की जड़ ये कूड़े का पहाड़ है।

सुषमा कहती हैं ये डीडीए फ्लैट है जिसे सरकार ने ही बनवाया है। हमने जब फ्लैट खरीदा तो क्या पता था कि यहां रहना मुश्किल हो जाएगा। कई लोग यहां से पलायन कर रहे हैं। वही लोग बचे हैं जिनके पास कहीं और बसने के लिए पैसे नहीं हैं। मैं यहां आने से पहले ठीक थी, लेकिन अब हार्ट में ब्लॉकेज है। हम भी मजबूरी में यहां रह रहे हैं वर्ना ऐसी जगह कोई नहीं रह सकता।

रिश्तेदार, दोस्त कोई भी इस मोहल्ले में नहीं आना चाहता। हमारे कई रिश्तेदार हमारे मुंह पर कहते हैं, कौन उस कूड़े के खत्ते में अपनी तबीयत खराब करने आएगा। हमारे बच्चे भी इस बात को समझते हैं और वो अपने स्कूल के किसी दोस्त को घर पर नहीं बुलाते। यहां तक कि उन्हें अपने घर की लोकेशन बताने में भी शर्म आती है।

सुषमा कहती हैं यहां इतनी गंदगी है कि रिश्तेदार घर आने से भी मना कर देते हैं।

इसी के पास बसी राजवीर कॉलोनी की संकरी गलियों से होते हुए मैं एक घर के सामने पहुंची। दरवाजा खटखटाते ही एक महिला बाहर आई। बिना कुछ पूछे ही कहने लगी 2017 के बाद अब समय मिला, कहां थे इतने साल। हम लोग मीडिया से बात नहीं करते, यहां से जाइए। मैं कुछ कह पाती, इससे पहले ही उसने दरवाजा बंद कर लिया। इस घर के एक युवक की 2017 में मौत हो गई थी। इसी वजह से घर के लोगों में नाराजगी है।

दरअसल, 1 सितंबर 2017 को गाजीपुर का ये कूड़े का पहाड़ ढह गया था। 22 साल के एक युवक की मौत हो गई थी। उस युवक के एक रिश्तेदार हरिप्रसाद के घर पहुंची।

2017 में गाजीपुर लैंडफिल साइट में कूड़े का पहाड़ ढहा तो सड़क पर चल रही गाड़ियां नहर में जा गिरीं। इसमें दो लोगों की मौत हो गई थी।

हरिप्रसाद कहते हैं कि घटना के वक्त उसके परिवार से कोई नहीं था। मैं ही उसे अस्पताल लेकर गया। उस समय भी मीडिया ने मुझसे ही बात की थी। इतना कहते ही उनका गला रुंध सा गया। गला साफ करते हुए कहते हैं, ‘मेरा लड़का अमित और मेरे साले का लड़का अभिषेक दोनों बाइक से मुर्गा मंडी से वापस आ रहे थे। अचानक ये कूड़े का पहाड़ फटा और दोनों गाड़ी समेत नहर में गिर गए। अमित तो बच गया। अभिषेक वहीं मर गया।’

हरिप्रसाद कहते हैं कि घटना के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि इस कूड़े के पहाड़ को हटा देंगे, हुआ कुछ नहीं। उन्होंने एक लाख रुपए का चेक दिया, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। कहा था कि सरकार से और रुपए दिलाएंगे। इतने साल हो गए नौकरी तो दूर की बात है आज तक सरकार की तरफ से जो रुपए दिलाने का वादा किया था, वो भी नहीं मिला।

जिसका बच्चा चला जाता है उसका गम सिर्फ वही समझ सकता है। एक ही लड़का था कमाने वाला जो चला गया, उसका बूढ़ा बाप जैसे-तैसे गाड़ी चलाकर परिवार चला रहा है। उनकी बहुत ही बुरी हालत है।

हरिप्रसाद कहते हैं कि मेरे साले के जवान बेटे की मौत हो गई। घर में कमाने वाला भी कोई नहीं बचा।

हरिप्रसाद कहते हैं कि मजदूर आदमी तो दो दिन खाली बैठ जाए तो भी कर्ज हो जाता है। हम तो काम से भी गए और बेटे से भी। दोनों लड़के एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे। मेरा बेटा अमित दोस्त जैसे भाई अभिषेक के न रहने से शॉक में चला गया, उसने घर से निकलना ही बंद कर दिया। कई महीने वो बेरोजगार रहा। उसका इलाज कराने और घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा।

समय के साथ ये कचरे का ढेर हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। इसकी बदबू से यहां रहना मुश्किल है। जब इसमें आग लगती है तो हमारी क्या पूरी दिल्ली की हालत खराब हो जाती है। घर में रहें या घर से बाहर, हर समय दम घुटता रहता है। कई लोग बीमार हो गए, लेकिन क्या करें किसी के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। अगर पैसे होते तो कोई यहां क्यों रहता।

ये पहाड़ हमें देखकर हंसता है और हम रोते हैं क्योंकि हम गरीब लोग हैं। जब सरकार ही कुछ नहीं कर रही तो हम क्या करें। दिल्ली की सरकार हम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है।

केजरीवाल से बहुत उम्मीद थी, तभी उनकी पार्टी को पब्लिक ने जिताया। उनकी सत्ता का कार्यकाल बढ़ने के साथ-साथ ये कचरे का पहाड़ भी बढ़ गया। केजरीवाल कहते हैं मशीनें लगवा दी हैं। कचरे का ढेर खत्म हो रहा है। हमें तो ये हर रोज बढ़ता ही दिख रहा है। इस चुनाव में तो इस कचरे के पहाड़ की कोई बात ही नहीं कर रहा है।

कूड़े का पहाड़ दूर से ही नजर आता है।

हरिप्रसाद कहते हैं कि नेता आते-जाते रहेंगे, कोई कुछ नहीं करेगा। हमारे घर का जवान लड़का मौत के मुंह में चला गया। कितने लोग बीमार हो रहे हैं। हमारे लिए सोचने वाला कोई नहीं है। जब ये लोग मुआवजा नहीं दे सकते तो पहाड़ क्या हटाएंगे। केजरीवाल ने एक लाख का चेक दे दिया और समझ लिया कि काम खत्म हो गया।

हमारे घर के सामने थोड़ा सा कूड़ा रखा हो, वही देखकर बुरा लगता है, यहां तो पूरा पहाड़ है। हम कुछ कर भी नहीं सकते। कुछ महीने से मेरा काम बंद हो गया है इसलिए अभी हम नेताओं की रैली में घूम रहे हैं। हमें रैली में जाने के डेली 300 मिलते हैं जिससे अभी दो वक्त की रोटी मिल जाती है।

गाजीपुर लैंडफिल साइट के पास मुल्ला कॉलोनी में रहने वाले आयुब अंसारी बताते हैं कि 1 सितंबर 2017 को गाजीपुर लैंडफिल का कूड़ा गिरकर सड़क पर आ गया। कचरे के धक्के से सड़क पर चलने वाली गाड़ियां नहर में गिर गई थीं।

उस दिन को याद कर आयुब कहते हैं कि मैं घर से महज 200-300 मीटर की दूरी पर था। अचानक ये पहाड़ टूटकर नहर में गिर गया जिसकी वजह से पानी तेज प्रेशर से बाहर आया और सड़क पर चलने वाली गाड़ियों को अपने साथ दूसरी तरफ बहा ले गया। उस वक्त मुझे उम्मीद नहीं थी कि जिंदा बचूंगा। लोगों ने मुझे रस्सी से खींचकर नहर से निकाला। कई जगह चोट लगी।

आयुब कहते हैं कि जब मैं बच्चा था तो ये कूड़े का पहाड़ महज 15 फीट का रहा होगा। आज ये 150 फीट का हो चुका है

मैं तो बच गया लेकिन मेरा मिनी ट्रक डूब गया। घटना के 6 महीने पहले ही लोन पर लिया था। मेरा तो काम ही इससे चलता था, वो भी बंद हो गया। किस्त भी नहीं दे पाया। इंश्योरेंस मिला नहीं। बैंक वालों ने परेशान करना शुरू कर दिया।

घायल हालत में ही कंपनी गया, तब कहीं जाकर उन्होंने कुछ मोहलत दी। ब्याज पर साढ़े तीन लाख रुपए लेकर गाड़ी ठीक कराई। कर्ज में डूबता गया। मेरे घर पर लोग पैसे मांगने के लिए आने लगे। बैंक वाले मेरी गाड़ी ले गए।

कर्ज बढ़ने लगा तो लोग दरवाजे पर आने लगे। इससे गुस्साए अब्बू ने मुझे, बीवी और बच्चों सहित घर से निकाल दिया। इस बात का गुस्सा मुझे आज भी है। मैं बेघर हो गया। अब तो अब्बू भी नहीं रहे।

मेरे 3 बच्चे हैं, उनकी पढ़ाई भी नहीं करवा पा रहा हूं। सोचा था कि बच्चों को बहुत पढ़ाऊंगा, लेकिन उस घटना ने मुझे तोड़ दिया और मेरी इतनी औकात नहीं कि उन्हें पढ़ा सकूं।

मेरी किसी ने कोई मदद नहीं की, सरकार ने भी कोई पैसा नहीं दिया। हर दफ्तर के चक्कर काटे, एमपी, एमएलए, सीएम ऑफिस हर जगह गया, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। चाहता हूं कि मेरी कहीं से मदद हो, साथ ही इस हादसे का शिकार हुए और भी लोगों को मुआवजा मिलना चाहिए। कितने नेता आए-गए, लेकिन ये कूड़ा हटा नहीं बल्कि बढ़ता ही गया।

आयुब कहते हैं यहां गंदगी की वजह से हर घर में कोई न कोई बीमार है।

आयुब अपने बैग से नेबुलाइजर निकालकर दिखाते हुए कहते हैं, ‘मेरे अब्बू की मौत अस्थमा से हुई। मुझे भी 20 साल से अस्थमा है, इसलिए नेबुलाइजर साथ में लेकर चलता हूं। नेता बस इलेक्शन के टाइम आते हैं और इसे हटाने का वादा करते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं करता।’

2017 में यहां के एमपी महेश गिरी थे वो घटना के बाद हमसे मिलने आए और वादा किया कि अभी एलजी से कहकर ये कूड़ा हटवा दूंगा। कितनी बार उनके ऑफिस गया, लेकिन वे एक बार भी मुझसे नहीं मिले।

गौतम गंभीर जब यहां से सांसद बने तो उन्होंने भी कुछ खास नहीं किया। हालांकि उन्होंने जो मशीनें लगवाईं वे चलती ही नहीं। जब मशीन चलती ही नहीं तो लगाने का क्या फायदा। हमारा पैसा बर्बाद हो रहा है। थक हार कर बैठ गया और अब मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं।

सीएम अरविंद केजरीवाल से बहुत उम्मीदें थी। उन्हें अपनी जेब से चंदा और वोट भी दिया। जब घटना हुई तो वो भी मिलने आए थे और उनका भी वही जवाब था कि एलजी के पास जाकर अभी इसे हटवाऊंगा। मुझे लगा कि यहां से तो कुछ मदद होगी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। उनके जनता दरबार के तीन चक्कर लगाए, लेकिन वहां भी कुछ नहीं हुआ।

अब तो बस यही चाहता हूं कि मेरे बच्चों का किसी भी तरह से एडमिशन हो जाए, उन्हें सही एजुकेशन मिल जाए। दिल्ली में बाहर से आने वाले फ्री में एजुकेशन ले रहे हैं, लेकिन मेरे बच्चों का एडमिशन भी नहीं हो पा रहा है। मेरे ऊपर अभी भी लगभग 6 लाख का कर्ज है। मैं अपने जन्मस्थान नहीं जा सकता क्योंकि कर्ज की वजह से लोग मेरी जान ले लेंगे। मैंने अपनी बर्बादी झेल ली और आगे की जिंदगी भी चला लूंगा। मेरे बच्चों को सही शिक्षा मिल जाए।

आयुब बताते हैं कि बरसात में तो यहां नर्क जैसी स्थिति हो जाती है। सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता है।

आयुब की बहन फातिमा भी मुल्ला कॉलोनी में रहती हैं। वो कहती हैं कि इसकी वजह से सांस की दिक्कत होती है। इसमें अक्सर आग लग जाती है जिससे पॉल्यूशन और बढ़ जाता है। वो कहती हैं यहां हर घर के बाहर कूड़ा फैला हुआ मिल जाएगा। नालियां चोक हो चुकी हैं। यहां तो कई बार सप्लाई का पानी भी गंदा आता है। एक बार बच्चे ने गलती से टंकी से पानी पी लिया इसके बाद वो बीमार हो गया था।

बच्चे बीमार न पड़ जाएं इसलिए हम बच्चों को घर से बाहर नहीं जाने देते। यहां बच्चों के खेलने के लिए जगह तो है, लेकिन वो खेल नहीं सकते। बच्चों को घर में कैद कर रखना मुश्किल होता है वो तो मना करने पर भी बाहर चले जाते हैं। हमने तो अपनी जिंदगी जी चुके बस बच्चों को लेकर मन परेशान रहता है कि जानते हुए भी हम उन्हें अच्छी जिंदगी नहीं दे पा रहे हैं।

लोग तो हमारे मोहल्ले को भी डंपिंग यार्ड समझते हैं। यहां से गुजरने वाला भी बिना सोचे-समझे गंदगी फैलाता हुआ जाता है। जैसे यहां इंसान नहीं कीड़े-मकोड़े रहते हैं। हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं है। हमने अपना घर यहां बना लिया है तो कहीं और नहीं जा सकते। अब तो इसी हाल में जिंदगी कटेगी।

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