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ब्लैकबोर्ड- दहेज का झूठा केस, दो बार पागलखाने गया: 23 साल बाद बरी, किडनी-लिवर दोनों खराब; अतुल सुभाष जैसे मर्दों की कहानी


भरे कोर्ट में चप्पल दिखाकर मेरी 11 साल की बेटी ने मुझसे कहा, इसी से मारूंगी तुझे।

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वहां जितने लोग थे सब लोग हंसने लगे, मेरी खिल्ली उड़ाने लगे।

मैं उसी दिन टूट कर बिखर गया। लगा कि अब जीवन में कुछ नहीं रहा।

इससे पहले भी बेटी मेरे साथ नहीं रहती थी, लेकिन हर साल अपने दोस्तों के साथ मिलकर उसका जन्मदिन मनाता था।

जिस दिन उसने मुझे चप्पल दिखाई एक बाप जीते जी मर गया।

ये साल 2011 की बात है। तब से आज तक शायद ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जब ये बात कचोटती न हो। आंखें बंद करता हूं तो चप्पल लिए बेटी दिखाई देती है, सबके हंसने की आवाज कानों में गूंजती है।

ये कहते ही मुकेश की आंखों में आंसू आ जाते हैं और उनके हाथ कांपने लगते हैं। वो कहते हैं कि बहुत उम्मीदों से मैंने शादी की थी। औरतों के सपनों की सब बातें करते हैं, लेकिन मर्द के सपनों के बारे में कोई बात नहीं करता। एक मर्द भी सुखी जीवन की कल्पना करता है।

ब्लैकबोर्ड में आज स्याह कहानी उन मर्दों की, जिन पर दहेज और घरेलू हिंसा के झूठे केस लगे, कई सालों बाद वो इस केस से बरी हुए …

मुकेश कहते हैं, हम मर्द भी अपने सपनों की राजकुमारी खोजते हैं। एक अच्छा जीवन साथी चाहते हैं। पिछले 23 साल से मैं कोर्ट के चक्कर काट-काट कर थक चुका हूं। डिप्रेशन और एंग्जाइटी की वजह से दो बार पागलखाने में भर्ती होना पड़ा।

6 फुट 2 इंच लंबे 48 साल के मुकेश कुमार झुककर चलते हैं और उनके लिवर में समस्या है। धुंधला दिखाई देता है और याददाश्त भी कमजोर है। उम्र के इस पड़ाव में वो बेरोजगार हैं और कई बीमारियों से जूझ रहे हैं। निराशा इतनी है कि वो हर दिन आत्महत्या करने की सोचते हैं।

मुकेश कहते हैं कि अपना शरीर ही अब बोझ लगता है, खुद को ढो नहीं सकता।

मुकेश कहते हैं कि मेरे ऊपर लाखों का कर्ज है। लोगों के दान किए हुए कपड़े पहनता हूं।

चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए मुकेश कहते हैं, नए कपड़े पिछले साल पहने थे। छोटे भाई की शादी थी, तब उसने मुझे दिलवाए थे।

मुकेश याद करते हैं कि पहले लोगों के घर अखबार डालने का काम करता था। 3000 रुपए महीना कमाता था। इस कमाई में भी खुश था। साल 1999 में रीटा (बदला हुआ नाम) से शादी हुई। धूमधाम से हुई इस शादी से हम बेहद खुश थे।

शादी के कुछ समय बाद ही रीटा और मेरे बीच प्रॉपर्टी को लेकर विवाद होने लगा। रीटा घर अपने नाम करने का दबाव बनाने लगी।

मुकेश कहते हैं कि साल 2000 में रीटा प्रेग्नेंट हुई। तब उसने अच्छे हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाने की बात कही। सैलरी तो इतनी थी नहीं, फिर भी मैंने कोशिश की। अच्छे प्राइवेट हॉस्पिटल में रीटा का इलाज शुरू हुआ। हालांकि वो इस बात से भी खुश नहीं थी। काफी अनबन के बाद मायके चली गई। कुछ समय बाद रीटा ने बेटी को जन्म दिया। रीटा और बेटी से मिलने ससुराल गया और दोनों को साथ लेकर आया।

मुझे लगा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। कुछ दिन ठीक भी रहा सब। फिर रीटा के घरवालों का दखल शुरू हो गया। वो लोग रीटा को घर अपने नाम कराने के लिए भड़काने लगे।

एक दिन हम दोनों की काफी बहस हुई। रीटा 6 महीने की बेटी को सोता हुआ छोड़कर घर से चली गई। मुझे पता भी नहीं चला। उस दिन से मैं अकेले बेटी को पालने लगा। कुछ दिन बाद रीटा ने थाने में शिकायत कर दी और कहा कि मुझे अपनी बेटी चाहिए। कुछ दिन थाना पुलिस हुआ। फिर तय हुआ कि कुछ दिन के लिए बेटी रीटा के साथ जाएगी।

रीटा ने पुलिस को लिखित में दिया कि बेटी को साथ ले जा रही है, 15 दिन बाद उसे लेकर वापस आ जाएगी। महीने बीत गए, लेकिन वो नहीं आई। मैं कई दिनों तक इंतजार करता रहा। जब उसके लौटने की कोई उम्मीद नहीं दिखी तो पुलिस को इस बारे में बताया।

मैं पुलिस के पास गया, इस बात से रीटा और नाराज हो गई। उसने मेरे और परिवार के खिलाफ दहेज और घरेलू हिंसा का केस कर दिया। बेटी को घर बुलाने की चाहत में हम सब सलाखों के पीछे पहुंच गए। मुश्किल से 66 हजार देकर हमारी बेल हुई। हमें ही पता है कि वो पैसे हमने कैसे भरे हैं।

रीटा ने झूठे डॉक्यूमेंट दिखाकर केस किया था। आखिर एक दिन सच सामने आया। केस झूठा साबित हुआ और हम सब बरी हो गए।

कुछ दिन बाद रीटा ने मेंटेनेंस का केस डाल दिया। तब मेरी कमाई एक रुपए भी नहीं थी इसलिए पैसे नहीं दे पाया। मुझे जेल हो गई। जेल में ही मेरी तबीयत खराब हो गई, ऑपरेशन करवाना पड़ा।

धीरे-धीरे मैं डिप्रेशन में चला गया। काम, करीबी रिश्ते सब कुछ छूट गया। मेरी शादी के समय छोटा भाई सिर्फ 7 साल का था। वो अच्छे से पढ़ना चाहता था, लेकिन घर के कलेश की वजह से मैं ध्यान नहीं दे पाया। इस बात की टीस भाई के मन में आज भी है।

आज वो पूरे परिवार का खर्च उठा रहा है, मेरी जरूरत का भी ध्यान रखता है, लेकिन इन 23 सालों में मुश्किल से 6 या 7 बार ही हमारे बीच ठीक से बात हुई।

ये सुनते ही पास बैठी मुकेश की मां गंगा देवी रोने लगती हैं, कहती हैं, पैसे पैसे पैसे, पूरा घर बर्बाद कर दिया। छोटा बेटा संभल गया तो हमें रोटी मिल रही है। बहू का कोई सुख तो मिला ही नहीं। पोती को छोड़कर भी चली जाती थी। कभी घर में टिकती नहीं थी। कभी छत से कूदकर तो कभी पीछे के दरवाजे से भाग जाती थी।

मुकेश की मां कहती हैं कि जब से बेटे की शादी हुई, हम परेशान ही रह गए।

कई बार पुलिस घर आई, मोहल्ले के सामने हमारी इतनी बेइज्जती हुई। बेटे की जिंदगी खराब हो गई। मुकेश दो बार जेल में और दो बार पागलखाने रहकर आया।

मुकेश की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं कि डॉक्टर ने बताया इसके अंदर अब कुछ नहीं बचा। किडनी, लिवर खराब है, शरीर में खून भी नहीं है। कभी-कभी ये इतना बीमार पड़ जाता है कि पैंट में पेशाब कर देता है और इसे पता भी नहीं चलता।

बेटे की शादी से हम बुरी तरह टूट गए हैं। 24 साल से हमें जिस केस में फंसाए रखा आज वो झूठा साबित हुआ। अब तलाक का केस चल रहा है। इंसाफ मिलने में इतनी देर हो गई कि सब कुछ लुट गया।

मुकेश सिर्फ अकेले नहीं हैं जिनकी शादी के बाद जिंदगी बर्बाद हुई, कई लोग हैं जिन पर झूठे केस लगाए गए, कई सालों बाद वो बरी हुए। झूठे केस में इनकी जिंदगी इतनी बिखर गई कि दोबारा कभी समेट नहीं पाए।

दक्षिण-पूर्वी दिल्ली में रहने वाले राजेंद्र (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि 24 मई 2007, हमारे घर में पूजा चल रही थी। घर में करीब 250 मेहमान थे, पुलिस आई और मुझे उठाकर ले गई। शादी के 9 साल बाद मेरी बीवी ने दहेज उत्पीड़न की शिकायत की थी। सबके लिए हजम करना मुश्किल था। उसने जानबूझकर ये दिन चुना था ताकि मुझ पर दबाव बना सके। उसका आरोप था कि मैंने उसके साथ मारपीट की और घर से निकाल दिया। जबकि एक सप्ताह पहले ही वो मुझे और 5 साल के जुड़वां बच्चों को छोड़कर जा चुकी थी।

राजेन्द्र कहते हैं कि 6 महीने तक मेरी बीवी बच्चों से न तो मिलने आई, न फोन पर बात की।

थाने पहुंचा तो उसने मुझ पर जान से मारने की कोशिश का आरोप भी लगाया। लेडी कॉन्स्टेबल ने कहा कि मारपीट हुई है तो निशान दिखाओ, मेडिकल करवाओ। फिजिकल एग्जामिनेशन में झूठ पकड़ा गया। उसके कुछ दिन बाद मेरे खिलाफ 498 के अंतर्गत एफआईआर करवा दी गई।

अब मुझ पर, मेरी शादी-शुदा बहन, उसके पति और मेरे बड़े भाई साहब पर मारपीट और दहेज लेने का केस था। विमेन सेल में भी इन्हें बहुत समझाया गया, लेकिन वो एक मकान और 5 लाख नगद लेने पर अड़ी थी। इतना सब देना मेरे बस में नहीं था। उसने मेरी बेल डिसमिस करवा दी। 75000 रुपए जुर्माना देने के बाद मुझे बेल ग्रांट हुई। मेरे 5 साल के बच्चे रोज पूछते थे कि मां कहां है तो मैं झूठ बोलता कि नाना की तबीयत खराब है इसलिए गई है।

आपकी बीवी को आपसे क्या नाराजगी थी? मेरी बीवी का कहना था कि मैं उसको पर्याप्त समय नहीं देता और कहीं घुमाने नहीं ले जाता। हम जॉइंट फैमिली में रहते थे और वो कहती थी कि अलग घर लेकर रहो।

मेरी बीवी 6 महीने तक न तो बच्चों से मिलने आई और ना ही फोन पर बात की। मेरे ऊपर सिर्फ बच्चों की नहीं, मेरी मां की भी जिम्मेदारी थी। मेरी मां को कैंसर था, कीमो चलता था। रोज रात में बच्चे मेरे गले लगकर रोते और कहते प्लीज पापा, मां को ले आओ।

हर त्योहार और बर्थडे पर बच्चे घंटों बालकनी में खड़े होकर मां का इंतजार करते। इतना कहते ही राजेंद्र का गला भर आता है। वो कहते हैं बच्चों को ऐसे देखना मेरे लिए बहुत पेनफुल था। मैं सुबह उठकर बच्चों के लिए नाश्ता बनाता, उन्हें स्कूल भेजता, फिर मां को दवाई देकर कोर्ट के लिए निकल जाता।

अपने हाथ देखते हुए राजेंद्र कहते हैं कि कई बार हाथों और नाखूनों पर आटा भी लगा रह जाता था।

जज को अपने हाथ दिखाकर बताता कि मैं कैसे अपने बच्चे पाल रहा हूं। अगर आज जिंदा हूं तो सिर्फ अपने बच्चों की वजह से। वर्ना हर रोज आत्महत्या करने के बारे में सोचता था।

मेरी जिंदगी जैसी भी हो, लेकिन ये ठान लिया था कि बच्चों कि जिंदगी बनानी है। मेरे सिवा इनका कोई नहीं है। आज मेरे बच्चे वेल सेटल्ड हैं और अच्छी नौकरी कर रहे हैं। मैं अपने सारे केसेस में बाइज्जत बरी हुआ, पत्नी ने तलाक लेकर दूसरी शादी भी कर ली।

आपने दूसरी शादी नहीं की? मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। मुझे मालूम था कि वो जगह मैं किसी और को नहीं दे पाऊंगा। कहीं न कहीं ये डर भी था कि बच्चों को दूसरी बीवी अपनाएगी नहीं। मैं इतना ज्यादा टूट चुका था कि दोबारा कोई झटका बर्दाश्त नहीं करना चाहता था इसलिए दूसरी शादी नहीं की।

मैं अब जिंदगी की आखिरी पारी खेल रहा हूं। जब भी पीछे मुड़कर देखता हूं तो बहुत इमोशनल हो जाता हूं। एक मर्द को झूठे केस में फंसाकर किस तरह उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी जाती है। कई लोग सुसाइड कर लेते हैं, मेंटली रिटार्डेड हो जाते हैं, जॉब खो देते हैं, रिश्ते-परिवार खो देते हैं।

इन केस के चक्कर में लोग कंगाल हो जाते हैं। लड़कों के प्रति सोसाइटी का व्यवहार बहुत क्रूर होता है। उनको लगता है कि गलती लड़के की ही होगी। मेरे अपने रिश्तेदारों ने ये फब्तियां कसीं कि थाने में बैठाकर इसको तो लठ पड़ना चाहिए। मैंने कुछ गलत नहीं किया, फिर भी माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया।

बच्चों के लिए बीवी को घर लाने की कोशिश भी की, लेकिन उसकी शर्तें ऐसी थीं कि चाहकर भी पूरा नहीं कर सका। अपनी लाइफ में अकेला रह गया। आज बच्चे बड़े हो गए, लेकिन एक अच्छे लाइफ पार्टनर की कमी मुझे जिंदगी भर खलती रही।

मुकेश और राजेंद्र के बाद मुझे मनमीत सिंह मिले। मनमीत के भाई गुरप्रीत की शादी मुश्किल से महीने भर चली, लेकिन आज वो किसी से बात करने की हालत में नहीं है। इसलिए गुरप्रीत की जगह मनमीत हमसे बात करने आए।

वो कहते हैं कि शादी के बाद मेरा भाई आधा इंसान और आधा भगवान जैसा विलोम है। बीवी, शादी या कोर्ट जाने की बात पर वो सीधा कहता है कि मुझे अब नहीं जीना। वो बताते हैं कि मेरी भाभी ने शादी के पहले दिन से ही मेरी मां से डिमांड शुरू कर दी। मुझे बेड पर ही चाय दो, मेरे लिए नाश्ता बनाकर ला दो।

मां-पापा के लिए ऐसी बातें कहीं जो मैं बता भी नहीं सकता। मां-पापा से तू-तड़ाक करके बातें करना और उन्हें कहना तुम तो भिखारी हो, मेरी जरूरतें ही पूरी नहीं कर पा रहे हो। मेरी मां डिप्रेशन में चली गई। रिश्तेदार हमसे बात करने में भी डरते थे कि उन पर भी केस न हो जाए।

मेरा भाई सेल्स की जॉब करता था। तीन बार उसकी जॉब छूटी क्योंकि कोर्ट के मना करने के बाद भी भाभी ने उसके ऑफिस में जाकर हंगामा किया। पुलिस ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया।

वो बताते हैं कि अप्रैल 2015 में मेरे छोटे भाई की शादी हुई, तब से आज तक हम कोर्ट-कचहरी के धक्के खा रहे हैं। खुद को बेकसूर साबित करने में हमने जिंदगी के 8 साल बिता दिए। मेरे पिताजी इतने ज्यादा ट्रॉमा में थे कि वो चल बसे। घरेलू हिंसा और दूसरे केस में हम बरी हो चुके हैं। अब केवल तलाक का केस चल रहा है।

मनमीत कहते हैं कि भाई की शादी के बाद पूरा परिवार ट्रॉमा में था। पिताजी ये ट्रॉमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और चल बसे।

मनमीत कहते हैं कि उसने मेरे पिताजी पर हाथ उठाया था, ये बात उन्हें खा गई। उसने सिर्फ भाई पर ही नहीं बल्कि मुझे और मेरे जीजा को भी नहीं बख्शा। मुझ पर छेड़छाड़ का केस लगवाया था। भाई मुझसे 10 साल छोटा है। मैं कभी सपने में भी उसकी बीवी को गलत नजरों से नहीं देख सकता। वो केस भी झूठा साबित हुआ। उसने पूरे परिवार को डिस्टर्ब कर दिया।

इस केस ने हमें इतना बर्बाद किया कि हम सड़क पर आ गए। हम मेंटली, फिजिकली और फाइनेंशियली बहुत वीक हो गए। मनमीत सिंह कहते हैं कि क्यों हम ब्रिटिश एरा का कानून आज भी फॉलो कर रहे हैं। क्या वक्त के हिसाब से हमारे कानून नहीं बदलने चाहिए। क्या वाकई किसी केस में इतना समय लगना चाहिए। और कितने अतुल सुभाष जाएंगे तो ये सरकार जागेगी?

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