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भक्ति का अर्थ है प्रेम और वात्सल्य से भरा हुआ हृदय। भगवान की भक्ति संसार में सर्वोत्तम है। भक्ति का एक रूप प्रेम और वात्सल्य भी है। भक्ति तक पहुंचने के लिए हृदय को वात्सल्य से भरना जरूरी है। यह बात मुनि श्री अविचल सागर जी महाराज ने सुभाष गंज में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि कल हनुमान जयंती थी श्री हनुमान जी की एक छाया प्रति देखी होगी। जगत जब प्रभु श्री राम को रत्नों में ढूंढ रहा था तब हनुमान जी भी उस रत्न की माला में प्रभु को ढूंढने लगे और किसी ने कह दिया कि अपने ह्रदय में ढूंढ़ो तो सीना चीर दिया और जगत जानता है कि हनुमान जी के हृदय में विराजमान प्रभु प्रकट हो गए। भक्ति कैसे की जाती है इसे समझना होगा।
इससे पहले श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर वृहद परीक्षा का आयोजन किया गया। इसमें 15 वर्ष से 80 वर्ष तक के महिला-पुरुषों ने भाग लिया। मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय जैन ने कहा कि मुनि सुधासागर जी महाराज की प्रेरणा से देशभर में प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा मिल रहा है। द्वादश वार्षिक पाठ्यक्रम एक बड़ी उपलब्धि है। 60 से 80 वर्ष तक के सैकड़ों परीक्षार्थी इसमें भाग ले रहे हैं। उनके अंदर ज्ञान की ललक जागी है। यह उन्हें धर्म, संस्कृति और संस्कार से जोड़ रही है। कुछ वर्षों में युवा, महिला और पुरुष सभी इसमें भाग लेने लगे हैं। यही माताएं और बहनें आगे चलकर समाज को ज्ञान की गंगा से सुशोभित करेंगी।
शिक्षकों को किया सम्मानित इस अवसर पर शिक्षकों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। संयोजक किरण जैन, मंत्री विजय धुर्रा, ब्रह्मचारी रिक्कू भैया, नीलेश भैया, आलोक भैया ने परीक्षा में सहयोग किया। आचार्य श्री के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित किया गया। पुस्तिकाओं का विमोचन भी किया गया। जो लोग संस्कृति और साहित्य के नाम तक नहीं जानते थे, वे अब इनका अध्ययन कर रहे हैं। मुनिश्री की सोच के कारण प्रौढ़ उम्र में भी ज्ञान की ललक जगी है।