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मणिपुर हिंसा- थौबल में NH जाम करके प्रदर्शन: कुकी की कैद में दो युवक, उन्हें छुड़ाने की मांग; प्रदर्शन में पीड़ित की मां बेहोश


मणिपुर14 मिनट पहले

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प्रदर्शनकारियों ने दोपहर करीब 3:15 बजे नेशनल हाईवे-102 या एशियन हाईवे-1 को जाम कर दिया

मणिपुर में कुकी मिलिटेंट्स की कैद से थौबल की दो युवकों को छुड़ाने की मांग को लेकर सोमवार को थौबल मेला ग्राउंड में विरोध प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे (NH) भी जाम कर दिया।

कुकी मिलिटेंट्स ने तीन युवकों को बंदी बनाया था, उनमें से एक को छोड़ दिया है। प्रदर्शनकारियों की मांग है की बाकी दोनों को भी छोड़ा जाए। प्रदर्शन में पीड़ितों के परिवार भी शामिल हुए। प्रदर्शन के दौरान पीड़ित थोकचोम थोइथोइबा की मां बेहोश हो गईं।

जॉइंट एक्शन कमेटी के रिप्रेजेंटेटिव ने CM एन बीरेन सिंह से मुलाकात की। उनका कहना है कि राज्य सरकार को दी गई समय सीमा सोमवार दोपहर 1:30 बजे ही समाप्त हो चुकी है। इसलिए वे विरोध-प्रदर्शन के लिए बाहर जा रहे हैं।

प्रदर्शन के दौरान नेशनल हाईवे ब्लॉक होने की वजह से यात्रियों को दूसरे रास्तों से गुजरना पड़ रहा है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जब तक दो बंधकों को रिहा नहीं किया जाता, तब तक नेशनल हाईवे ब्लॉक रखा जाएगा।

ये तस्वीर मणिपुर हिंसा की अलग-अलग घटनाओं की है।

कुकी-मैतेई के बीच चल रही हिंसा को लगभग 500 दिन हो गए। इस दौरान 237 मौतें हुईं, 1500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए, 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। करीब 11 हजार FIR दर्ज की गईं और 500 लोगों को अरेस्ट किया गया।इस दौरान महिलाओं की न्यूड परेड, गैंगरेप, जिंदा जलाने और गला काटने जैसी घटनाएं हुईं। अब भी मणिपुर दो हिस्सों में बंटा हैं। पहाड़ी जिलों में कुकी हैं और मैदानी जिलों में मैतेई। दोनों के बीच सरहदें खिचीं हैं, जिन्हें पार करने का मतलब है मौत।

स्कूल- मोबाइल इंटरनेट बंद किए गए। मणिपुर में अचानक बढ़ी हिंसक घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने 10 सितंबर को 5 दिन के लिए इंटरनेट पर बैन लगाया था। हालांकि, 12 सितंबर को ब्रॉडबेन्ड इंटरनेट से बैन हटा लिया गया था।

4 पॉइंट्स में समझिए मणिपुर हिंसा की वजह…

मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

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