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मां बोली- गुर्जर आरक्षण आंदोलन में बेटा खोया: हे भगवान! अब आगे कोई गोली न चले, 2008 में रेलवे ट्रैक पर लाशें बिछ गई थीं – Rajasthan News


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ये दर्द उस मां का है, जिसने 17 साल पहले भरतपुर के पीलूपुरा रेलवे ट्रैक पर गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में अपना बेटा खोया। एक बार फिर रविवार (8 मई) को उसी रेलवे ट्रैक से महज 150 मीटर दूर गुर्जर महापंचायत हुई।

इस बीच भास्कर टीम ने सभास्थल (पीलूपुरा) से 8 किलोमीटर दूर स्थित चौधरियां का नंगला (बयाना) स्थित दिवंगत सोम सिंह गुर्जर के घर का रुख किया। घर पहुंचते ही उनकी मां के शब्द थे- भगवान! अब कोई गोली न चले।

2008 में हिंसा का मंजर अपनी आंखों से देखने वाले लोगों ने भी पूरी कहानीं बयां की..

करीब सौ परिवारों के छोटे से गांव में सन्नाटे जैसा माहौल था। ज्यादातर लोग गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति की ओर से बुलाई गई पीलूपुरा महापंचायत से लौटे नहीं थे। सोम सिंह गुर्जर के घर में दाखिल हुए तो उनके परिवार के लोग घर में ही थे। ये लोग आंदोलन के नाम से ही सहम जाते हैं।

यहां सबसे पहले मुलाकात सोम की बुजुर्ग मां रूपा से हुई। हमने जैसे ही रूपा से उसके बेटे का जिक्र किया, मां के चेहरे की झुर्रियों की दरारों से होकर आंसू बह निकले। सुबकते हुए कई बार वे बोलते-बोलते रुक जा रही थीं।

अपने बेटे सोम सिंह गुर्जर की तस्वीर को झोली में लिए मां का दर्द फिर से झलक उठा।

थोड़ी देर में खुद को संभालते हुए बोलीं- 6 भाई-बहनों में सबसे छोटा और सबसे लाडला बेटा था मेरा ‘सोमा’। 22 साल का जवान। सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मां होने के नाते मैं सबसे छोटे बेटे की शादी के सपने देख रही थी। मई 2008 में आरक्षण के लिए आंदोलन की घोषणा हुई, तो वह घर पर आटा-सब्जियां रख गया। जाते समय बोला कि आंदोलन में शामिल होने रिश्तेदार, दोस्त आदि आएंगे, जब वह घर आएं, तो उनके लिए रोटी बना देना…इसके बाद…’

बेटे की कही आखिरी बात को याद कर मां की आंखों से आंसू छलक पड़े।

सोम की मां के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने बहुत कुछ बोलना चाहा, लेकिन रुंधे गले ने साथ नहीं दिया। उन्हें सुबकता देख पास खड़ी सोम की बड़ी बहन भी अपने आंसू नहीं रोक पाई। बड़ी बहन माया ने भी आंसू से भीगी आंखों के साथ अपनी भावना बयां की…

जब भी गुर्जर आंदोलन की बात होती है, मेरा दिल ऊपर-नीचे हो जाता है। भाई की सूरत आंखों के आगे आ जाती है। घबराहट होने लगती है। आंदोलन के कारण मैंने मेरा सबसे छोटा भाई खो दिया। हम सबसे छोटा होने के कारण पूरा परिवार उसे बेतहाशा प्यार करता था। जो चले गए, अब वह वापस तो नहीं आएंगे। हमने अपना भाई खोया है, लेकिन गुर्जर समाज को अब भी मांगा गया आरक्षण नहीं मिला। जान चली गई, लेकिन गुर्जरों को कुछ नहीं मिला, तो हमें दुख तो होगा ही। मैं तो कहूंगी कि आंदोलन हो, लेकिन गोलियां न चलें।

बहन ने कहा- जब भी आंदोलन की बात सुनती हूं, भाई का चेहरा सामने आ जाता है।

दिवंगत सोम सिंह गुर्जर के परिवार से बातचीत के बाद हम सभास्थल की तरफ बढ़े। यहां उन लोगों से बात की, जिन्होंने कर्नल किरोड़ी बैंसला के साथ 2007-08 के आंदोलनों में कंधे से कंधा मिलाया था। तब महापंचायत में शामिल रहे लोगों ने आंखों देखा हाल भास्कर को बताया…

… ऑन स्पॉट मौत देखी, तीन दिन खाना नहीं खाया मूडिया गांव के भरत सिंह बैंसला बोले- मैं कर्नल किरोड़ी बैंसला के गांव का ही हूं। 2008 में मेरे गांव से 400-500 आदमी आंदोलन में पहुंचे थे। मैं भी कर्नल किरोड़ी बैंसला के साथ आंदोलन में ही था। जैसे आज महापंचायत में शामिल हो रहे हैं, उस समय भी ऐसी ही पंचायत चल रही थी। 23 मई का दिन था। उस समय तो गोलियां चलने से पहले वॉर्निंग तक नहीं दी गई। लोगों में भगदड़ मच गई थी, सभी ने ‘देवनारायण जी की जय’ के नारे लगाए और पटरियों की ओर चले गए। कई लोगों की ऑन दी स्पॉट मौत हो गई थी। फिर समाज के और लोग मौके पर पहुंच गए। वो ऐसा माहौल था कि तीन दिन तक खाना नहीं खाया था। यहीं पीलूपुरा ट्रैक पर धरने पर बैठे रहे थे। गोली चलाने के बाद गुर्जर समाज में आक्रोश था। फिर जो हिंसा भड़की वो सबके सामने है। हम महापंचायत में ये सोच कर आए थे कि गुर्जर समाज को सही तरीके से आरक्षण दो, भले ही गोलियां खानी पड़ें।

ऐसा लगा कि हम तो मर ही गए कल्याण गुर्जर ने बताया- मैं कर्नल साहब के साथ आंदोलन में शामिल था। तब सबकुछ शांति से चल रहा था। पुलिस ने अचानक गोली चला थी। भगदड़ मच गई। तब महापंचायत चल रही थी, लोग छाया में बैठे हुए थे। एक हजार के आस-पास लोग थे। निहत्थों पर गोली चला दी। उस समय ये लगा कि हम तो मर गए…क्या करते? इसके बाद पटरी पर बैठ गए कि हमें मार दे…सरकार से हमारा क्या मुकाबला। इसके बाद एक महीने तक पटरी पर बैठे रहे। पहले रबड़ की गोली चली, लेकिन इसके बाद असली गोलियां बरसा दी। सरकार ने बिजली काट दी। आटा चक्की तक नहीं चल सकती थी। इसके बाद गांवों से रोटियां आती थीं।

हमने अपनी आंखों से देखा कि लोग मर रहे हैं, लेकिन डरे नहीं गिरधारी सिंह ने कहा कि मैं कर्नल साहब से साथ मौजूद था। महापंचायत चल रही थी। अचानक पुलिस की गाड़ियां आ गईं और 25-30 कमांडो गाड़ियों से उतरे। गोलियां चलानी शुरू कर दी। मैं खुद गोलियों की बौछारों के बीच था। पहले रबर की गोलियां चलाई थी, इस बीच पत्थर लेकर हम भी तैयार हो गए। जब पत्थरबाजी हुई, तो बिना चेतावनी पुलिस ने एकाएक असली गोलियों से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।

हमने ये अपनी आंखों से देखा कि लोग मर रहे हैं। कई लोगों ने हमारे सामने दम तोड़ा। लाशों का ढेर लग गया था। लेकिन हमारे मन में इस मंजर के बावजूद कोई डर नहीं था। हम भी तैयार खड़े रहे। गुर्जर मरने से नहीं डरता।

महापंचायत में शामिल अभ्यर्थियों ने भी खुद की और परिजनों के हालत को लेकर दिल पसीजने वाली बात कही…

गुर्जर छात्र ही नहीं परिजन भी मानसिक तनाव में महापंचायत में शामिल होने आए निर्वाण सिंह महरावर रीट की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया- गुर्जर समाज में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र ही नहीं, उनके परिजन भी मानसिक तनाव में हैं। सरकारी नौकरी की तैयारियों के लिए हमारे परिवारों ने खेत-घर गिरवी रखे हैं। कई साथी ऐसे हैं, जिन्होंने मोटे ब्याज पर पैसा उधार लिया है। बच्चों को जयपुर जैसे शहर में तैयारी के लिए भेजा है।

भर्तियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिलने से परिवार पर आर्थिक दबाव आता है। सरकार यदि 100 पोस्ट निकाले तो आरक्षण के पांच प्रतिशत के हिसाब से हमारी 5 सीटें हुईं। सरकार 18 या 19 सीटें निकाले तो आरक्षण प्रतिशत के हिसाब से लाभ एक ही सीट का मिलता है। 15 साल से कई ऐसी भर्तियां हैं कि हमें आरक्षण का पूरा लाभ ही नहीं मिला।

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