Homeदेशयूपी के ठाकुर-मिश्रा ने हजारों कन्नड़ परिवारों को रोजगार दिया: जिस...

यूपी के ठाकुर-मिश्रा ने हजारों कन्नड़ परिवारों को रोजगार दिया: जिस धारवाड़ पेड़ा की मोदी ने तारीफ की, उसके लोकल से ग्लोबल बनने की कहानी


धारवाड़/हु्ब्बल्ली15 मिनट पहलेलेखक: राम राज डी

  • कॉपी लिंक

ऐसा कौन होगा, जिसने एक बार धारवाड़ पेड़ा का स्वाद लिया हो और उसका मन दोबारा खाने का न किया हो।

मार्च, 2023 में PM नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक के धारवाड़ में IIT कैंपस के उद्घाटन के दौरान यह बात कही थी। बेंगलुरु से करीब 430 किलोमीटर दूर स्थित धारवाड़ अपने साहित्य, कला और संगीत के लिए मशहूर है।

यहां पंडित भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल, बसवराज राजगुरु जैसे संगीतकारों, पंडित कुमार गंधर्व, पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर जैसे शास्त्रीय गायकों और डॉ. डी.आर. बेंद्रे जैसे बड़े लेखकों का जन्म हुआ। हालांकि धारवाड़ दुनिया भर में एक खास मिठाई के लिए भी मशहूर है। वह मिठाई है- धारवाड़ पेड़ा।

करीब 178 साल का इतिहास समेटे धारवाड़ पेड़ा से यूपी के तीन परिवारों की विरासत जुड़ी हुई है। इनमें एक ठाकुर और दो मिश्रा परिवार है। इन्होंने धारवाड़ पेड़ा को सिर्फ देश ही नहीं, दुनियाभर में पहचान दिलाई।

साल 2007 में यह GI टैग वाली मिठाइयों की लिस्ट में भी शामिल हो गया था। यूपी के तीन परिवारों ने कर्नाटक में अपनी सफलता से यह धारणा भी तोड़ दी है कि उत्तरी राज्यों के लोग दक्षिण में सिर्फ नौकरी लेने के लिए जाते हैं, क्योंकि इन्होंने हजारों कन्नड़ परिवारों को रोजगार भी दिया है।

धारवाड़ पेड़ा की पहचान उसके ऊपर चीनी की परत से की जाती है।

धारवाड़ में कैसे हुई पेड़ा बनाने की शुरुआत? धारवाड़ में ठाकुर पेड़ा, ट्रू मिश्रा पेड़ा और बिग मिश्रा पेड़ा नाम से यूपी का तीन परिवार अपने पूर्वजों की विरासत को कई सालों से आगे बढ़ा रहे हैं। ठाकुर परिवार के पूर्वज लखनऊ के रहने वाले थे। दोनों मिश्रा परिवार की जड़ें प्रतापगढ़ से जुड़ी हैं। इनके कर्नाटक में पेड़ा बनाने का किस्सा पढ़िए…

1. ठाकुर परिवार: 1846 में महामारी से बचने के लिए धारवाड़ पहुंचा था ठाकुर परिवार की 5वीं पीढ़ी के सदस्य दुर्गा प्रसाद ठाकुर बताते हैं, ‘लखनऊ में 1846 के दौरान हैजा महामारी फैली थी। लोग अपनी जान बचाने के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे थे। उसी दौरान हमारे पूर्वज रामरतन सिंह ठाकुर अपने परिवार को लेकर लखनऊ से धारवाड़ आ गए।’

‘रामरतन सिंह का परिवार धारवाड़ में बसने वाला लखनऊ का पहला परिवार था। उन्हें यहां की भैंस के दूध का स्वाद बिल्कुल लखनऊ की भैंस के दूध जैसा लगा। उन्होंने छोटे पैमाने पर पेड़ा बनाना शुरू किया। आस-पड़ोस के लोगों को इसका स्वाद काफी पसंद आया।’

दुर्गा प्रसाद और उनके बेटे धारवाड़ पेड़ा बनाने वाले अपने परिवार की 5वीं और छठी पीढ़ी हैं।

दुर्गा प्रसाद के मुताबिक, ‘धीरे-धीरे मांग बढ़ने लगी और ठाकुर पेड़ा धारवाड़ शहर में मशहूर हो गया। रामरतन सिंह ने अपने बेटे मोहन सिंह और फिर पोते बाबूसिंह ठाकुर को पेड़ा बनाना सिखाया। बाबूसिंह मेरे दादा थे। उनके नेतृत्व में धारवाड़ पेड़ा एक ब्रांड बन गया। उनके घर के बाहर लोग पेड़ा खरीदने के लिए सुबह से कतार में खड़े हो जाते थे। कुछ मिनटों में पूरा स्टॉक खत्म हो जाता था।’

‘फिर मेरे पिता रामरतन सिंह ने पेड़ा बनाने का काम संभाला। 1975 में मैंने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला किया। पहले सिर्फ हाथ से पेड़े बनाए जाते थे। बढ़ती मांग को देखते हुए मैंने मशीनें खरीद लीं। अभी मैं और मेरा बेटा बेटे करण सिंह पेड़ा बिजनेस संभाल रहे हैं।’

धारवाड़ के लाइन बाजार में ठाकुर पेड़ा की यह दुकान 175 साल से ज्यादा पुरानी है।

2. ट्रू मिश्रा: प्रतापगढ़ से घोड़े पर धारवाड़ पहुंचे थे हरिनारायण मिश्रा ट्रू मिश्रा परिवार के एक करीबी पारिवारिक सूत्र ने बताया, ‘​​1920 के दशक में प्रतापगढ़ के हरिनारायण मिश्रा धारवाड़ आए थे। वे ब्रिटिश सरकार में रेलवे ठेकेदार थे और पटरियां बिछवाने का काम करते थे। वे काम के सिलसिले में प्रतापगढ़ से घोड़े पर सवार होकर धारवाड़ आए थे। उन्हें धारवाड़ का मौसम काफी पंसद आया और वे यहीं बस गए।’

‘1933 में उन्होंने पेड़ा बनाने का काम शुरू किया। शुरुआत में उन्होंने परिवार और पड़ोसियों के लिए पेड़ा बनाया था। लोगों को उनके पेड़े पंसद आने लगे। धीरे-धीरे हरिनारायण ने बड़े पैमाने पर पेड़ा बनाना शुरू कर दिया। उनके बेटे द्वारकाप्रसाद भी इसी काम में लग गए। आज उनके परिवार की 5वीं पीढ़ी के संजय मिश्रा उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।’

ट्रू मिश्रा परिवार के पूर्वज हरिनारायण मिश्रा, जो 1920 के दशक में धारवाड़ आए थे।

3. बिग मिश्रा: धारवाड़ में पेड़ा बनाने वाला यूपी का तीसरा परिवार प्रतापगढ़ से धारवाड़ पहुंचे पंडित अवधबिहारी मिश्रा ने भी 1933 में ही पेड़ा बिजनेस में कदम रखा था। उन्होंने लाइन बाजार में धारवाड़ मिश्र पेड़ा नाम से एक छोटी सी दुकान खोली थी। उनके परिवार का कोई सदस्य कैमरे के सामने आने के लिए तैयार नहीं हुआ।

अवधबिहारी मिश्रा के पोते संजय मिश्रा ऑफ कैमरा कहते हैं, ‘मैं पेड़ा बनाने की कला सीखने वाला अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी हूं। हमने धारवाड़ पेड़े के लिए ग्राहकों की मांग को समझा है। हमने धारवाड़ पेड़ा को एक ब्रांड के रूप में लॉन्च किया है, ताकि इसकी गुणवत्ता को लेकर ग्राहकों के मन में किसी भी तरह का भ्रम न हो। हमें पूरे भारत से लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।’

धारवाड़ पेड़े की खासियत

धारवाड़ पेड़ा सिर्फ भैंस के दूध और चीनी से बनता है। दूध से गहरे भूरे रंग का खोया तैयार किया जाता है। इसके लिए दूध को लकड़ी के चूल्हे या बिजली पर चलने वाली मशीनों में तब तक पकाया जाता है, जब तक खोया की कंसिस्टेंसी गूंथे हुए आटे की तरह न हो जाए।

फिर हाथ से खोया के छोटे-छोटे पेड़े बनाए जाते हैं। मिठास के लिए इस पर चीनी पाउडर की परत चढ़ाई जाती है। ठाकुर और मिश्रा परिवार की मानें तो पेड़े की बनावट, कोमलता और अनोखा स्वाद सिर्फ भैंस के दूध से ही आ सकता है।

पेड़ा फैक्ट्री में मशीनों के जरिए दूध से गहरे भूरे रंग का खोया तैयार किया जाता है।

कर्नाटक के कई शहरों में धारवाड़ पेड़ा की दुकानें ठाकुरों और मिश्रा परिवार के मुताबिक, करीब 18 साल पहले तक, धारवाड़ पेड़ा सिर्फ धारवाड़ में ही मिलते थे। 2007 में GI टैग मिलने के बाद तीनों परिवारों ने इसे पूरे कर्नाटक में बेचना शुरू कर दिया। उन्होंने राज्य के प्रमुख शहरों में अपनी और फ्रेंचाइजी बेस्ड कई दुकानें खोलीं।

ट्रू मिश्रा के मुताबिक, 2007 से पहले वे हर दिन धारवाड़ में 400 किलोग्राम पेड़ा बेचते थे। GI टैग मिलने के बाद पेड़ों की डिमांड अचानक बढ़ गई। हालांकि उन्होंने क्वालिटी से समझौता न करते हुए रोजाना 400 किलोग्राम पेड़ा बनाने का ही टारगेट रखा।

ठाकुर और बिग मिश्रा ने बाजार की जरूरत के हिसाब से अपना प्रोडक्शन बढ़ा दिया है। ठाकुर परिवार के मुताबिक, पेड़ों की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई थी। सप्लाई न रुके, इसलिए उन्होंने प्रोडक्शन बढ़ा दिया।

तीन परिवारों ने हजारों लोगों को रोजगार दिया

यूपी के तीन परिवारों के जरिए पूरे कर्नाटक में डेयरी किसानों, दुकानों और फैक्ट्री के मजदूरों, फ्रेंचाइजी से लेकर ट्रांसपोर्टरों तक, सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। मौजूदा समय में, अकेले बिग मिश्रा पेड़ा के लिए 2 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। इससे धारवाड़ के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिल रहा है।

धारवाड़ से लगभग 14 km दूर बेलूर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित ट्रू मिश्रा फैक्ट्री में पेड़ा बनाते मजदूर।

बिग मिश्रा परिवार का सालाना 150 करोड़ का कारोबार बिग मिश्रा के मार्केटिंग और सेल्स डिपार्टमेंट में काम करने वाले श्रीधर पाटिल ने बताया कि वित्त वर्ष 2021-2022 में उनका कारोबार लगभग 150 करोड़ का रहा।

ठाकुर पेड़ा के मालिक दुर्गाप्रसाद सिंह ठाकुर ने अपनी कमाई तो नहीं बताई, लेकिन कहा कि GI टैग, बिक्री और प्रोडक्शन में तेजी के कारण पिछले 10 सालों में उनका व्यापार 60 से 80 प्रतिशत बढ़ा है।

तीनों परिवार को धारवाड़ पेड़ा के लिए कई अवॉर्ड्स मिले पेड़ा बनाने की विरासत और उसकी गुणवत्ता को बरकरार रखने के लिए ठाकुर और मिश्रा परिवारों को कई अवॉर्ड्स और सर्टिफिकेट्स भी मिल चुके हैं। चूंकि, ठाकुर परिवार ने पेड़ा बनाने की शुरुआत सबसे पहले की थी, इसलिए उनके पास अवॉर्ड्स और सर्टिफिकेट्स की संख्या भी ज्यादा है। ठाकुर परिवार को 1913 में बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड विलिंगटन ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट दिया था।

ठाकुर परिवारों को धारवाड़ पेड़ों के लिए मिले अवॉर्ड्स और सर्टिफिकेट्स।

लोग बोले- धारवाड़ पेड़ा हमारी संस्कृति का हिस्सा

धारवाड़ की भाग्य चवन्नावर कहती हैं, ‘मैं बचपन से ही धारवाड़ पेड़े का स्वाद ले रही हूं। खासकर मिश्रा पेड़े मुझे पसंद हैं। उन्होंने दशकों से पेड़े की क्वालिटी को बरकरार रखा है। इतने सालों में भी उनके पेड़े का स्वाद नहीं बदला है। सबसे अच्छी बात यह है कि धारवाड़ पेड़ा अब कहीं भी आसानी से मिल जाता है।’

गुरुराज शूरपाली नाम के एक कस्टमर ने कहा, ‘हम धारवाड़ पेड़ा खाकर बड़े हुए हैं। यह हमारे रोजमर्रा के जीवन और संस्कृति का एक हिस्सा है।’

…………………………….

ये खबरें भी पढ़ें…

कर्नाटक का KGF मिनी इंग्लैंड से भूतिया शहर बना: 30 लाख टन सोने का भंडार, पर माइनिंग बंद; लोग बोले- कुली जैसी जिंदगी

KGF यानी कोलार गोल्ड फील्ड्स। यह कर्नाटक के कोलार जिले में स्थित एक शहर है। बेंगलुरु से करीब 100 KM दूर इस जगह का इतिहास और वर्तमान फिल्म से काफी अलग है। ब्रिटिश और भारत सरकार ने 1880 से 2001 तक, 121 सालों के दौरान KGF से 900 टन से ज्यादा सोना निकाला। 2001 में गोल्ड माइनिंग पर रोक लग गई। कभी मिनी इंग्लैंड नाम से मशहूर KGF को अब भूतिया शहर कहा जाता है। पूरी खबर पढ़ें…

ये हैदराबादी बिरयानी नहीं, जोधपुरी काबुली है: हफ्तेभर इंतजार करना पड़ता है, बुकिंग भी एडवांस; 60 साल से नहीं बदली रेसिपी

दक्षिण भारत का एक मशहूर जायका है बिरयानी… नाम आपने भी सुना होगा। हो सकता है कई लोगों ने स्वाद भी चखा हो। शताब्दियों पुरानी इसी पाक शैली में राजस्थान की एक रॉयल डिश भी तैयार होती है। जोधपुरी काबुली। यूं तो जोधपुरी काबुली बनाने की शैली एक जैसी ही है। जोधपुर में एक खास शॉप है, जहां इसे देसी घी और दूध में तैयार किया जाता है। पूरी खबर पढ़ें…

खबरें और भी हैं…



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version