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राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई? कौन बना राक्षसों का पहला राजा? रावण संहिता से जानें असुरों का सच


राक्षसों का नाम आते ही दिमाग में एक नकारात्मक विचारों वाले व्यक्ति की छवि उभरती है. राक्षस बलशाली थे और स्वर्ग पर देवता की सत्ता को चुनौती देते थे. देवताओं से उनका छत्तीस का आंकड़ा था. हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, रावण, कुंभकर्ण, बलि, मधु, कैटभ आदि जैसे कई महाबली राक्षस हुए. सभी अपने अहंकार और बल के दुरुपयोग के कारण मारे गए. ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की तो उसमें राक्षसों को क्यों बनाया? राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई? राक्षसों की उत्पत्ति के बारे में कई घटनाओं का वर्णन है, लेकिन आज आपको रावण संहिता की मदद से बताते हैं कि राक्षसों की उत्पत्ति की वजह क्या थी?

राक्षसों की उत्पत्ति
रावण संहिता के अनुसार, जब प्रभु श्रीराम जी अगस्त्य मुनि से मिले तो उनके मन में राक्षसों की उत्पत्ति के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई. उन्होंने अगस्त्य मुनि से कहा कि वे तो यह जानते थे कि महामुनि पुलस्त्य जी के कुल से राक्षसों की उत्पत्ति हुई थी, लेकिन आपने राक्षसों की उत्पत्ति अन्य कुल से होने को बताया है. क्या वे सभी राक्षस रावण, कुंभकर्ण आदि से भी बलशाली थे? प्रभु राम ने अगस्त्य जी से राक्षसों की उत्पत्ति के बारे में बताने को कहा.

इस पर अगस्त्य मुनि ने प्रभु राम को बताया कि जब ब्रह्मा जी कमल से होकर प्रकट हुए थे, तब उन्होने सबसे पहले जल की रचना की थी. फिर उस जल की रक्षा के लिए उन्होंने कई प्रकार के जल वाले जीवों की उत्पत्ति की. इस पर सभी जल-जीव ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्होंने पूछा कि जल-जीव को भूख और प्यास लगे, वे इससे व्याकुल हो जाएं तो क्या करें?

इस पर ब्रह्मा जी ने खुश होकर उनसे कहा कि तुम सभी इस जल की रक्षा करो. तब उन जल जीवों में से कुछ ने कहा कि वे इस जल की रक्षा करेंगे, तो कुछ ने कहा कि वे इस जल की पूजा करेंगे. इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि जो भी जल जीव जल की रक्षा की बात कह रहे हैं, वे सभी राक्षस कहलाएंगे और जो जल जीव इस जल की पूजा की बात कह रहे हैं, वे सभी यक्ष के नाम से प्रसिद्ध होंगे. इस प्रकार से ये जीव दो जातियों में राक्षस और यक्ष में बंट गए.

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कौन बना राक्षसों का पहला राजा?
ब्रह्मा जी ने जब राक्षस और यक्ष की दो जातियां बना दीं तो राक्षसों में हेति और प्रहेति नाम के दो भाई थे. ये दोनों राक्षसों के पहले राजा बने. वे दोनों ही शत्रुओं का संहार करने में मधु और कैटभ के समान शक्तिशाली थे. धर्मात्मा प्रहेति तपस्या करने तपोवन चला गया जबकि हेति ने काल की बहन भया से विवाह कर लिया. उन दोनों से विद्युतकेश नामक पुत्र हुआ. जब वह बड़ा हुआ तो हेति ने उसका विवाह संध्या की पुत्री से करने का निश्चय किया. संध्या ने अपनी बेटी का विवाह विद्युतकेश से कर दिया.

विद्युतकेश की पत्नी ने मंदराचल पर्वत पर एक पुत्र को जन्म दिया और उसे छोड़कर पति के साथ भोग विलास में लग गई. य​ह देखकर माता पार्वती को दया आई, तब शिव जी ने उस बालक को अपनी माता की आयु का बना दिया. उसका नाम सुकेश पड़ा. वह शिव कृपा से विमान से आकाश में भ्रमण करता था. ग्रामणी नामक गंधर्व ने अपनी पुत्री देववती से सुकेश का विवाह किया. देववती और सुकेश से 3 शक्तिशाली पुत्र माल्यवान, सुमाली और माली हुए. उन तीनों भाइयों ने मेरु पर्वत जाकर तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान पाकर और भी बलशाली हो गए.

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दैत्यों की माता दिति
पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप ऋषि का विवाह अदिति और दीति के साथ हुआ था. इनके अलावा उनकी 11 पत्नियां और थीं. अदिति से 12 आदित्यों की उत्पत्ति हुई, जो देवता कहे गए, वहीं दिति से 2 पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप हुए. दिति के पुत्रों को दैत्य कहा गया.



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