बिहार के ऐतिहासिक पर्यटक स्थल राजगीर के जंगलों में हर साल आग लगने की घटनाएं वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन जाती हैं। इन अग्निकांडों से न केवल कीमती जड़ी-बूटियां नष्ट होती हैं, बल्कि वन्यजीवों और प्राचीन स्मारकों को भी गंभीर खतरा उत
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पिछले तीन सालों में राजगीर के विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में आग लगने की बड़ी घटनाएं सामने आई हैं। सबसे हालिया घटना इसी साल 29 मार्च को अजातशत्रु किला मैदान के पश्चिमी भाग में देखी गई, जहां आग ने लगभग 2 किलोमीटर क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया था। तेज पछुआ हवा के कारण आग तेजी से फैली, जिससे कई पशु-पक्षी झुलस गए।
पेड़-पौधे जलकर हुए थे नष्ट
साल 2024 में 19 अप्रैल को विपुलाचलगिरी पर्वत के समीप चेतनालय के पास के जंगल में भीषण आग लगी थी। भीषण गर्मी और तेज हवा के कारण आग ने विकराल रूप धारण कर लिया था। इस घटना में एक वनरक्षी रजनीकांत झुलस गए थे और काफी संख्या में पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो गए थे।
इससे एक साल पहले, 2023 में 18 अप्रैल को वैभारगिरी पर्वत के जंगल में आग लगी थी, जिसने 4 किलोमीटर क्षेत्र के जंगल को अपनी चपेट में ले लिया था। इस आग को बुझाने में तीन दिन का समय लगा था और डेढ़ सौ वनकर्मियों और 50 मजदूरों की मदद लेनी पड़ी थी।
राजगीर के जंगल मे आग बुझाते वनकर्मी की फोटो।
खतरे में महत्वपूर्ण विरासत स्थल
राजगीर के पहाड़ी क्षेत्रों में कई ऐतिहासिक धरोहरें मौजूद हैं, जिनमें सप्तपर्णी गुफाएं, सिद्धनाथ मंदिर, प्राचीन जैन मंदिर, सोन भंडार की गुफाएं, राजा जरासंध की बैठक स्थली और लगभग 2500 वर्ष पुरानी प्राचीन साइक्लोपिन दीवार प्रमुख हैं। इन अमूल्य धरोहरों की सुरक्षा वन विभाग और पुरात्व विभाग की प्राथमिकता है।
वन विभाग पूरी तरह से सतर्क
नालंदा वन विभाग के राजगीर अनुमंडल के रेंजर ऋषिकेश ने बताया की पिछले सालों की अग्निकांड घटनाओं को देखते हुए वन विभाग पूरी तरह से सतर्क है। 12 लोगों की एक विशेष टीम 24 घंटे वन क्षेत्र में गश्त लगाती है।
रेंजर ने आगे बताया कि विभाग ने आधुनिक उपकरणों का भी प्रबंध किया है। हमने वाटर ब्लोअर मशीन शामिल की है, जो काफी हल्की होती है और इसमें 10 से 15 लीटर का पानी टैंक लगा रहता है। इस मशीन से आग के संभावित क्षेत्रों में झाड़ियों पर पानी का छिड़काव कर नमी बनाई जाती है, जिससे आग आगे नहीं बढ़ पाती। इसका प्रेशर करीब 8 से 10 फीट तक का है।
वन क्षेत्र में सैटेलाइट से भी निगरानी
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान के माध्यम से वन क्षेत्र में सैटेलाइट से भी निगरानी रखी जाती है। इस तकनीक से किसी भी प्रकार की आग लगने की सूचना तुरंत मिल जाती है, जिससे जल्द कार्रवाई संभव हो पाती है।
वन विभाग वन क्षेत्र से लगे गांवों में जागरूकता अभियान भी चलाता है और संदिग्ध गतिविधियों पर निगरानी रखता है।
दो साल पहले राजगीर के वैभार गिरी पहाड़ियों में फैली आग को बुझाने के लिए डेढ़ सौ अग्निशमन कर्मी, 25 अधिकारी, 40 दमकल गाड़ियां, दो हाइड्रोलिक प्लेटफार्म और कई अन्य प्रकार के अग्निशमन उपकरण लगाए गए थे। पटना, गया, नवादा समेत अन्य जिलों से भी दमकल की गाड़ियां बुलाई गई थीं।
राजगीर के जंगलों में अक्सर आग लगने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कभी-कभी स्थानीय लोगों द्वारा अवैध रूप से लकड़ियों और जड़ी-बूटियां इकट्ठा करने के लिए जानबूझकर आग लगाई जाती है।
राजगीर का ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व
राजगीर न केवल बिहार का महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है, बल्कि इसका ऐतिहासिक और प्राकृतिक महत्व भी अद्वितीय है। यहां के नेचर सफारी, जू सफारी और अन्य रमणीय स्थलों को जंगल में लगने वाली आग से बचाने की चुनौती वन विभाग हर साल सामना करता है।